रमजान की सत्ताइस वीं रात की इबादत का इस्लाम में बहुत महत्वपूर्ण स्थान – हाफिज सेराज

मो अमान अंसारी

कस्बा स्थित जामा मस्जिद शोहरतगढ़ से नवाब खान और नेता अल्ताफ हुसैन के नेतृत्व में रात लगभग बारह बजे मुसलमानों का जुलूस कब्रिस्तान पहुंचा जहां लोगों ने अपने परिवार के बिछड़े हुवे लोगों के लिए दुवाएं की ।

शांतिपूर्ण तरीके से जामा मस्जिद से निकला यह जुलूस सीधे पुलिस बूथ होता हुवा गड़ाकुल और अल्ताफ सुरती वाले के गली से मुड़कर टीचर कॉलोनी होते हुवे कब्रिस्तान पहुंचा।

इस दौरान हाफिज सेराज साहब ने बताया कि इस रात की फजीलत क्या है।
इस्लाम धर्म में रमजान माह महत्त्वपूर्ण होता है और इस माह में सत्ताईसवां रमजान की रात का भी विशेष महत्त्व होता है। सत्ताइसवां रमजान को लयलतुल क़दर भी कहा जाता है और यह रमजान के महीने में सबसे महत्वपूर्ण रात मानी जाती है।

लयलतुल क़दर रात में पूरे रमजान माह में हुई सभी भलाईयों का हिसाब किया जाता है और अगले साल के भविष्य में होने वाली घटनाओं को भी तय किया जाता है। यह रात मुसलमानों के लिए बहुत ही पवित्र होती है और इसे मनाने के लिए लोग नमाज पढ़ते हैं और कुरान पढ़ते हैं।

इस रात का महत्व इस्लाम धर्म में इतना उच्च होता है कि इसे पूरे रमजान माह में खोजने के लिए लोग अपनी इबादत और दुआओं में विशेष प्रयास करते हैं। इस रात का महत्व इस्लाम धर्म के अनुयायियों के लिए बहुत ही अधिक होता है और वे इस रात को बहुत ही ध्यान से मनाते हैं।

लयलतुल कदर रात का महत्व इस्लाम धर्म में बहुत ही ऊंचा होता है और इस रात का महत्व इस्लाम धर्म के प्रवर्तक और नबी हजरत मुहम्मद सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के लिए भी बहुत ही अधिक होता है। हज़रत मुहम्मद सलल्लाह अलैहि वसल्लम ने इस रात के महत्व को स्पष्ट रूप से बताया था और इसे मनाने के लिए मुसलमानों को प्रेरित किया था।

हज़रत मुहम्मद सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बताया था कि लयलतुल क़दर रात को ध्यान से मनाने वाले लोगों के सभी गुनाह माफ हो जाते हैं और इस रात में कोई भी एक भी नमाज पढ़ी जाए तो वह 1000 महीनों की नमाज के बराबर होती है।
हज़रत मुहम्मद सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस रात के महत्व को बहुत ही ऊंचा बताया था और इसे मनाने की सलाह दी थी।

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