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हमारा इतिहास हमारे साहित्य में सुरक्षित है
kapilvastupost reporter
सिद्धार्थनगर। अखिल भारतीय साहित्य परिषद की सिद्धार्थनगर इकाई द्वारा सिद्धार्थनगर जनपद के बड़गो गांव में सन्ध्याकालीन बौद्धिक परिचर्चा का आयोजन किया गया। आयोजन में बोलते हुए परिषद् के गोरक्षप्रान्त के प्रान्तीय उपाध्यक्ष प्रो. हरीशकुमार शर्मा ने कहा कि साहित्य में सबके हित का भाव समाहित है, परन्तु इसका उद्देश्य तभी पूरा होगा जबकि साहित्यकार लोक-मंगल के ध्येय को लेकर साहित्य-रचना करें और वह साहित्य लोक तक पहुंचे।
आज साहित्य लिखा तो खूब जा रहा है, छप भी रहा है, पर जनता से नहीं जुड़ पा रहा है। उन्होंने कहा कि हमारा समाज साहित्य से बना हुआ समाज है, हमारा इतिहास हमारे साहित्य में सुरक्षित है, हमारी संस्कृति हमारे साहित्य में रची-पगी है। पर, दुर्भाग्य से तकनीक-प्रधान आज के युग में हमारी दूरी हमारे साहित्य और संस्कृति से बढ़ रही है, जिसका प्रभाव समाज पर भी पड़ रहा है।
प्रमुख वक्ता के रूप में बोलते हुए प्रो. शर्मा ने समाज को बांटने-तोड़ने वाली शक्तियों और विखण्डनवादी तथा हीन भावो-विचारों से युक्त साहित्य से सावधान करते हुए युवाओं को सत्साहित्य पढ़ने का आह्वान किया। सभी को मातृ-दिवस की बधाई देते हुए उन्होंने अपने व्याख्यान के अन्त में मां पर लिखा अपना एक मार्मिक गद्यगीत भी सुनाया।
अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए परिषद् की सिद्धार्थनगर इकाई के अध्यक्ष डॉ. ब्रजेशमणि त्रिपाठी ने कहा कि साहित्य मानवीय विवेक देता है। यह उपदेशक के उपदेश से अधिक प्रभावशाली है। सैकड़ों-हजारों वर्षों की थाती लोक साहित्य और लोक कलाओं के सिमटते बजूद पर चिंता जताते हुए उन्होंने इस क्षेत्र में काम करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
कार्यक्रम का संचालन परिषद के महामंत्री डॉ. जयसिंह यादव ने किया और कहा कि हमारे ऐसे आयोजनों का उद्देश्य युवाओं को साहित्य से जोड़ना और उनमें रचना-संस्कार विकसित करना है। युवा देश की धुरी हैं। उनकी सकारात्मक सोच और रचनात्मक क्षमता ही देश को आगे ले जायेगी।
कार्यक्रम में बड़गो गांव के कुबेर नाथ उपाध्याय ने भी अपने विचार रखे। परिषद् की सिद्धार्थनगर इकाई के कोषाध्यक्ष और कार्यक्रम के आयोजनकर्ता शिवेंद्र सिंह ने अन्त में आभार-ज्ञापन किया तथा भविष्य में और भी बड़े आयोजन की प्रतिबद्धता जताई। इस अवसर पर अच्छी संख्या में प्रबुद्ध और साहित्य-प्रेमी ग्रामवासियों की उपस्थिति रही।
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