सिद्धार्थ नगर – पूर्वजों की परंपरा को निभाते ग्राम प्रधान रिंकू चौधरी, 1662 में बने ऐतिहासिक मंदिर में भंडारे का आयोजन

सामाजिक और धार्मिक मान्यताओं का पालन करते हुए, ग्राम प्रधान रिंकू चौधरी का ऐतिहासिक मंदिर के संरक्षण और भंडारे के आयोजन में महत्वपूर्ण योगदान

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सिद्धार्थ नगर जनपद के विकास खण्ड बढनी अंतर्गत ग्राम  ढेकहरी में स्थित 1662 ईस्वी में बने ऐतिहासिक मंदिर में हर साल चार बार भंडारे का आयोजन किया जाता है। इस पवित्र आयोजन को निभाने और परंपरा को जीवित रखने में ग्राम प्रधान रिंकू चौधरी का बड़ा योगदान है। वे न केवल अपने पूर्वजों की धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं का पालन करते हैं, बल्कि गांव में एकता, सहयोग और सामूहिकता की भावना को बढ़ावा देने का काम भी कर रहे हैं।

मंदिर का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व:

यह मंदिर गांव के इतिहास और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। 1662 ईस्वी में बने इस मंदिर की धार्मिक महत्ता सिर्फ गांव तक ही सीमित नहीं है, बल्कि दूर-दूर से भक्त यहां आकर अपनी आस्था व्यक्त करते हैं। यहां साल में चार बार भंडारे का आयोजन किया जाता है, जिसमें गांव के लोग बड़ी संख्या में भाग लेते हैं। इस आयोजन के पीछे धार्मिक मान्यता है कि भंडारे से गाँव की समृद्धि और शांति बनी रहती है, और देवता की कृपा से गांव में खुशहाली आती है।

ग्राम प्रधान रिंकू चौधरी का योगदान:

ग्राम प्रधान रिंकू चौधरी अपने पूर्वजों की परंपरा को आदरपूर्वक निभाते हुए मंदिर में भंडारे का आयोजन करते आ रहे हैं। उनका मानना है कि यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि समाज को जोड़ने का एक महत्वपूर्ण माध्यम भी है। रिंकू चौधरी अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाते हुए हर बार भंडारे के आयोजन को सफल बनाने के लिए तन, मन और धन से सहयोग करते हैं।

रिंकू चौधरी के नेतृत्व में गांव के लोग इस आयोजन में पूरी तरह से शामिल होते हैं। भंडारे में गरीब और जरूरतमंदों को विशेष रूप से आमंत्रित किया जाता है, ताकि सभी को समान रूप से सेवा और सहयोग का अवसर मिल सके। उनका प्रयास है कि इस आयोजन के जरिए गांव में आपसी सद्भाव और भाईचारे को बढ़ावा मिले।

सामाजिक और धार्मिक महत्व:

भंडारे का आयोजन गांव के सामाजिक ताने-बाने को और मजबूत बनाता है। इस आयोजन के जरिए गांव में सामूहिकता, आपसी सहयोग और भाईचारे की भावना प्रबल होती है। ग्रामीण एकजुट होकर इस कार्यक्रम का हिस्सा बनते हैं और अपने पूर्वजों की परंपरा को आगे बढ़ाते हैं।

धार्मिक दृष्टिकोण से भी यह आयोजन बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें धार्मिक अनुष्ठान और देवता की पूजा अर्चना के साथ-साथ जरूरतमंदों की सेवा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि भंडारे में किए गए दान और सेवा से जीवन में शांति, समृद्धि और संतोष प्राप्त होता है।

बताते चलें कि ग्राम प्रधान रिंकू चौधरी ने न केवल एक सामाजिक नेता के रूप में, बल्कि एक धार्मिक और सांस्कृतिक संरक्षक के रूप में अपनी भूमिका को निभाया है। उनके योगदान से गांव में न केवल पूर्वजों की परंपरा जीवित है, बल्कि सामाजिक सद्भाव और धार्मिक आस्था भी मजबूत बनी हुई है। 1662 में बने इस ऐतिहासिक मंदिर में होने वाला भंडारा गांव की पहचान और गौरव का प्रतीक बन चुका है, और रिंकू चौधरी का प्रयास है कि यह परंपरा आने वाली पीढ़ियों तक यूं ही जारी रहे।

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