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गुरु जी की कलम से
बढ़नी सिद्धार्थनगर
भारत नेपाल सीमापर स्थित मदरसा सिराजुल उलूम झंडा नगर की खूबसूरत ईमारत पर अल्लामा इक़बाल साहब का ये शेर आज भी सुनहरे लफ़्ज़ों में लिखा हुआ है। बचपन से ये शेर हम लोग पढ़ते आये है शेर के नीचे लिखा हुआ है बानी हाजी नेमतुल्लाह खान।बचपन में इस शेर का मतलब् समझ मैं नही आता था ।
धीरे धीरे जैसे बड़े हुए और समझ बढ़ी फिर इस शेर का मतलब समझ में आया। किसी बड़े इदारे को कायम करने और उसे पाए तकमील तक पहुंचाने में कितनी जद्दोजहद और कुर्बानी देनी पड़ती है,इसकी ज़िंदा मिसाल थे|
हाजी नेमतल्लाह खान जिन्होंने करीब सवा सदी पहले नेपाल में इस्लामिक तालीम की शमा रोशन की।कहा जाता है कि उन्होंने इस मदरसे की बुनियाद अपने बच्चों की तालीम के लिए रखी थी लेकिन दूर दूर तक तालीमी मर्केज़ न होने की वजह से बहुत से तालिब इल्मों ने दाखिला ले लिया धीरे धीरे यह इदारा नेपाल का सबसे बड़ा इस्लामिक शिक्षण संस्थान बन गया।
आज से लगभग 125 वर्ष पहले यूपी के जिला बलरामपुर में एक किसान हुआ करते थे नाम था हाजी नेमतुल्लाह साहब वह कई भाई थे उन की रिशतेदारियां नेपाल में भी थीं|
नेपाल में उस समय राजतंत्र था और जमीनदारी व्यवस्था थी नेमतुल्लाह साहब ने सुना कि नेपाल में कई गांव पर मुश्तमिल एक जमींदारी नीलाम हो रही है हाजी साहब के रिश्तेदारों ने हाजी साहब से कहा कि आप के पास पैसे हैं आप नीलामी में भाग लिजिए हाजी साहब ने भाग लिया और नीलामी उन के नाम हो गई इस तरह हाजी साहब नेपाल के एक बड़े जमीनदार बन गए।
नेपाल भारत बार्डर से 20 किलोमीटर दूर यह जमीनदारी थी उन गांवो में कुदरबेटवा नाम का गांव सबसे बड़ा था हाजी साहब उसी गांव में आबाद हो गए उन्होंने अपने दो भाइयों को नेपाल बुला लिया और बाक़ी भाइयों ने भारत की जमीनें संभाल लीं।
हाजी साहब को अपने बच्चों और भतीजों के तालीम की फिक्र थी वह पिछड़ा क्षेत्र था वहाँ स्कूल वगैरह नहीं थे इस जरूरत को देखते हुए कुदरबेटवा गांव में एक मकतब कायम किया जहां भारत से दो मौलवियों को बुला कर उस्ताद रखा|
बच्चे बड़े हो रहे थे शुरुआती शिक्षा के लिए मकतब ठीक था लेकिन बड़े क्लास के लिए कोई इंतजाम न था।
इस जरूरत को देखते हुए उन्होंने नेपाल इंडिया बार्डर के बिल्कुल नजदीक झंडा नगर नाम के गांव में एक जमीन खरीदी और एक मदरसा1914. मे कायम किया जिस का नाम मदरसा सिराजुल उल्लूम रखा गया | हाजी साहब ने वह मदरसा अपने बच्चों के लिए खोला था लेकिन बार्डर के दोनों तरफ यानी भारत के बढ़नी और नेपाल के झंडानगर व कृष्ण नगर के काफी बच्चों ने मदरसा में प्रवेश ले लिया।
हाजी साहब ने अपने जमींदारी के नेपाल के सोनपुर नामक गांव को मदरसा के नाम कर दिया आज भी हिमालय की तराई में स्थित यह सोनपुर गांव मौजूद है जिस में कई सौ एकड़ जमीन मदरसा पर वक्फ है उस की जिम्मेदारी मदरसा संभालता है और उस की पैदावार से मदरसा का खर्च चलता है।
मदरसा चलाने के लिए हाजी साहब केपास समय नहीं था उस की देखभाल के लिए वह समय नहीं दे सकते थे और इलाके में शिक्षित लोगों की कमी थी जो मदरसा को संभाल कर आगे ले जा सकें।
इस के लिए हाजी साहब ने अपने चारों बच्चों में से सबसे बड़े बच्चे अब्दुर रऊफ को भी मदरसा पर वक्फ कर दिया बेटे अब्दुर रऊफ को दिल्ली भेज कर आला तालीम दिलाई उन्हें जमीनदारी से दूर रखा और कहा कि तालीम हासिल करने के बाद तुम्हें घर और कारोबार नहीं मदरसा संभालना है और दीन की खिदमत करनी है|
हाजी साहब बड़े मुखलिस और अल्लाह वाले थे उन की सबसे बड़ी खूबी सच बोलना थी जो भी मामला हो वह सच बोलने से नहीं हटते थे|
हाजी साहब के बड़े बेटे मौलाना अब्दुर रऊफ रहमानी आलिमी शोहरत याफ्ता इस्लामिक स्कॉलर बन कर उभरे उन की यह खूबियां अल्लाह के यहाँ मकबूल हो गई हाजी साहब के बेटे अब्दुर रऊफ रहमानी झंडानगरी बहुत बड़े आलिम बन कर निकले, सिर्फ नेपाल व भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में मशहूर हुए कई अंतरराष्ट्रीय इस्लामी संगठनों के मेंबर बने खाना काबा की सेहन में उन्होंने दर्स दिया 50 से अधिक किताबें लिखीं जिन में कुछ किताबों का अरबी में तर्जुमा भी हुआ।
यह हाजी नेमतुल्लाह के इखलास व कुर्बानी और बेटे की मोहब्बत का असर था कि आज कुदरबेटवा खानदान का नाम पूरे नेपाल में इज़्ज़त से लिया जाता है।
हाजी नेमतुल्लाह साहब ने बेटे अब्दुर रऊफ रहमानी झंडानगरी को मदरसा के लिए वक्फ कर दिया और पोते अबदुर्रशीद की परवरिश खुद की पोते भी बड़े हो कर शानदार शख्सियत के मालिक बने दीनी और समाजी कामों में शोहरत पाई अपने वालिद के बाद लडकियों के मदरसा की जिम्मेदारी संभाली।
18 जनवरी ,2025 शनिवार को हाजी नेमतुल्लाह साहब के पोते हाजी अबदुर्रशीद साहब का इंतकाल हो गया है। आप जामिया आइशा सिद्दीका का नाज़िम थे। उन्होंने आपने आबाई वतन कुदरबेटवा में 95 साल की उम्र में आखिरी सांस ली आज उन्हें कृष्णा नगर नेपाल में दफना दिया गया|
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