जिले की अधिकांशतः दुकानों पर नहीं दी जाती पक्की रशीद
गुरु जी की कलम से
सिद्धार्थनगर। जीएसटी विभाग की रहमोकरम पर जिले के अधिकांशतः शातिर किस्म के दुकानदार प्रतिदिन उपभोक्ताओं की जेब को पलीता लगा रहे हैं। जिसका खामियाज़ा उपभोक्ताओं को भुगतना ही पड़ रहा है।
लेकिन ऐसे में इस तरफ किसी जिम्मेदार अफसर का ध्यान ना जाना अपने आप में बहुत ही आश्चर्यजनक एवं चिंतास्पर्ध की बात है कि जब अफसर ही उपभोक्ताओं के शोषण को नहीं रोकेंगे तो उपभोक्ताओं के शोषण का जिम्मेदार आखिर कौन बनेगा।
प्राप्त समाचार के अनुसार जिले में अधिकांशत: दुकानों पर दुकानदारों द्वारा उपभोक्ताओं को खरीदे हुए सामग्रियों की जीएसटी बिल व पक्की रसीद नहीं दिया जाता है। बताते चलें कि बोलचाल की भाषा में हम जिसे जीएसटी कहते है इसका मतलब ,वस्तु एवं कर है। बताया जाता है कि एक कर एक देश योजना के तहत मई 2017 में जीएसटी लागू किया गया है।
जिसे तीन श्रेणियों में बांटा गया है। इसमें छोटे कारोबारियों से लेकर दूसरे देशों में कारोबार कर रहे कारोबारियों को भी शामिल किया गया है। यह अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था है जिसे सरकार व अर्थशास्त्रियों द्वारा इस स्वतंत्रता के पश्चात सबसे बड़ा आर्थिक सुधार बताया गया है।
जबकि जिले में जीएसटी चोरी और वसूली के लिए आयकर विभाग की टीमें भी गठित हैं। इसके बावजूद भी इस काले कारोबार यानि जीएसटी की चोरी शातिर दुकानदारों द्वारा बेखौफ होकर जोरों पर की जा रही है। इसके रोकथाम को बनी टीमें नाकाम साबित हो रही है।
इन दिनों जिले में सीमेंट सरिया बर्तन व कपड़े किराने आदि दुकानों पर धड़ल्ले से जीएसटी की चोरी की जा रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर प्रदेश व केंद्र स्तरीय कारोबार में आयकर विभाग की जीएसटी देश के विकास में सहायक होती है।
जीएसटी से मिले रुपये को गरीबों, असहायों को जीवन जीने की मदद और अनाथ बच्चों की शिक्षा समेत जन हित का विकास किया जाता है। इसी लिए कर को महादान भी कहा जाता है। लेकिन जिले के शातिरानें किस्म के कारोबारियों ने तो कर चोरी करना ही सर्वश्रेष्ठ कार्य मान रखा है।
उनका हर प्रयास जीएसटी चोरी के लिए ही होता है। सूत्रों के अनुसार कुछ शातिर व्यापारियों द्वारा किसी भी सामग्रियों की खरीदारी करते समय 15 फीसद की वस्तु को पक्के पर्चे पर जीएसटी कटाकर व 85 फीसद की वस्तु को कच्चे पर्चे पर खरीदारी करके जीएसटी की लंबी रकम हजम कर लिया जाता हैं।
ऐसे में अब देखना है कि जीएसटी विभाग की निष्क्रियता से उपभोक्ताओं को दुकानदारों के ठगी का शिकार कब तक होना पड़ेगा।