समय से इलाज मिला तो सत्यम ने दे दी इंसेफेलाइटिस को मात

प्राइवेट चिकित्सक ने लक्षण दिखने पर भेजा था सरकारी अस्पताल

इन्द्रेश तिवारी


सिद्धार्थनगर, 08.09.2022
खुनियांव ब्लॉक क्षेत्र के मऊ नानकार गांव के गोविंद के साढे़ चार वर्षीय पुत्र सत्यम इंसेफेलाइटिस की चपेट में आ गए थे। परिजनों ने बच्चे के उपचार के लिए प्राइवेट चिकित्सक से संपर्क किया तो जांच में इंसेफेलाइटिस का संदेह हुआ। चिकित्सक ने बगैर देर किए सरकारी अस्पताल में ले जाकर उपचार कराने की सलाह दी। चिकित्सक की सलाह पर परिजन सरकारी अस्पताल का रूख किए और मरीज का इलाज हुआ। सत्यम ने समय से इलाज मिलने पर इंसेफेलाइटिस को मात दे दी। उसका इलाज पूरी तरह नि:शुल्क हुआ है।
बच्चे की मां दुलारमती बताती हैं कि अगस्त माह में वह बस्ती जिले के रूधौली ब्लॉक के मझौवा कला गांव अपने मायके गई थी। अचानक 19 अगस्त को बेटे सत्यम को बुखार चढ़ गया। परिजनों ने सामान्य बुखार समझ स्थानीय स्तर पर इंजेक्शन लगवाकर दवा दिया, लेकिन शाम तक सुधार नहीं हुआ। इसी शाम वह अपने ससुराल मऊ नानकार गांव आ गई। इस दौरान बच्चे को उल्टी हुई तो लोग डर गए। सेहत में सुधार न देख परिजनों ने अगले दिन 20 अगस्त को ब्लॉक क्षेत्र के मऊ मझौंवा गांव के चौराहे पर स्थित निजी अस्पताल के चिकित्सक से संपर्क किया और बच्चे की समस्या बताई। अस्पताल के चिकित्सक ने बच्चे के खून की जांच कराया तो उसे इंसेफेलाइटिस का संदेह हुआ। चिकित्सक ने बिना देर किए मरीज को बांसी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) पर दिखाने की सलाह दी। परिजन 21 अगस्त को सीएचसी पहुंचे तो बिना देर किए मरीज को अस्पताल के मिनी पीडियाट्रिक इंटेशिव केयर यूनिट (मिनी पीआईसीयू) में भर्ती कर लिया गया। इस दौरान बच्चे का उपचार प्रारंभ हुआ लेकिन वह आंख पलट चुका था। एक-दो बार झटके भी आ चुके थे। शाम तक राहत न मिलने पर मरीज को जिला अस्पताल रेफर किया गया। यहां लगातार दस दिनों की उपचार के बाद सत्यम ने एक सितंबर को एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) को मात दिया। दुलारमती बताती हैं कि सरकारी अस्पताल में न सिर्फ उनके बच्चे का नि:शुल्क इलाज हुआ है, बल्कि बच्चे को चिकित्सकों ने नया जीवन दिया है। समय से इलाज मिल जाने से बेटे ने इंसेफेलाइटिस को हरा पाया है।
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जटिलताएं टालने के लिए कराएं समय से भर्ती
जिला अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. शैलेंद्र कुमार बताते हैं कि बुखार में देरी नुकसान दायक साबित हो सकती है। ऐसे में बच्चे को बुखार आने पर कपड़ा भीगों कर शरीर को पोछें और तत्काल नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र के ईटीसी (इंसेफेलाइटिस ट्रीटमेंट सेंटर) पर भर्ती कराएं। घर पर बच्चा अगर झटका मारता है तो उसे करवट लिटा दें और जितना जल्दी हो सके उसे सरकारी अस्पताल में भर्ती कराएं। प्राइवेट में इसका उपचार नहीं है। समय से इलाज मिल जाने से बच्चे में दिव्यांगता, मानसिक रूप से कमजोरी, बोलने और सुनने में होने वाली दिक्कत को रोका जा सकता है।
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खून की कमी, बुखार न उतरता देख किया रेफर
सत्यम का बुखार न उतरने पर परिजन खुनियांव क्षेत्र के मझौवा के एक निजी अस्पताल पर गए थे। अस्पताल के चिकित्सक डॉ. वसीम अहमद ने उसे देखते ही रेफर कर दिया था। चिकित्सक ने बताया कि बच्चे के अस्पताल पहुंचने के दौरान खून की कमी थी, हाईग्रेड फीवर और हीमोलाइसिस हो रहा था। यह जानलेवा भी हो सकता है। चार घंटे के भीतर दो बार पैरासिटामॉल देने के बाद भी बुखार नहीं उतर रहा था। इससे समझ आ गया था कि इसे हायर सेंटर भेजने की जरूरत है और बगैर देर किए सरकारी अस्पताल के लिए रेफर कर दिया। उन्होंने बताया कि वह लखनऊ के एक निजी हॉस्पिटल में नौकरी के दौरान इस तरह के लक्षण वाले मरीज देखें है। ऐसे में उन्होंने बगैर देर किए रेफर करना ही उचित समझा।
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ठीक हुए हाईग्रेड फीवर के रोगी एक नजर में-
सेंटर हाईग्रेड फीवर के रोगी
पीआईसीयू 117
मिनी पीआईसीयू 330
ईटीसी 1290
कुल 1737
(आंकड़े जनवरी 2022 से अगस्त 2022 तक)

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