इबादत, तिलावत और गुनाहों से मगफिरत की रात है, शब ए बरात
कलीमुल्लाह खान
सिद्धार्थनगर 18 मार्च। मजहबे इस्लाम के मानने वाले मुस्लिम सम्प्रदाय के लोग इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक आठवें महीने शाबान की पंद्रहवीं तारीख को शब ए बरात का त्यौहार मनाते हैं। शब ए बरात दो शब्दों से मिलकर बना है, शब के माने रात, और बरात के माने बरी/निजात होता है।
शब ए बरात के रात की बड़ी फजीलत (महिमा) है। सारे जहां के मुसलमान पूरी रात कसरत से यानी ज्यादा से ज्यादा नफली नमाज अदा करके, और कुरआन की तिलावत करके दुआएं मांगते हैं, और अपने गुनाहों से तौबा करते हैं।
इबादत, तिलावत और सखावत (दान पुण्य) के अलावा मस्जिदों और कब्रिस्तानों में रौशनी से सजावट की जाती है। और रात के वक्त ईशा नमाज के बाद लोग कब्रिस्तान पर जाकर मरने वाले लोगों के गुनाहों से मगफिरत (माफी) के लिए उनके हक़ में दुआएं करते है।
मजहब ए इस्लाम के मुताबिक शब ए बरात की रात में इंसानों के किए गए पिछले आमाल (कर्मों) का हिसाब किताब और आने वाले साल में जिन्दगी, मौत और लोगों की तक़दीर तय की जाती है। इसलिए पूरी रात लोग जगाकर, तस्बीह यानी अल्लाह के जिक्र, इबादत और तिलावते कुरआन में गुजारते हैं। और गुनाहों से तौबा करते हैं, कब्रों पर जाकर अपने परिजनों जो दुनिया से रुखसत हो चुके हैं उनके हक में मगफिरत( मोक्ष) के लिए दुआ करते हैं, और अपनी हैसियत के मुताबिक गरीबों मिस्कीनों में सदका खैरात (दान पुण्य) करते हैं।
मजहब ए इस्लाम में बेहयाई, रयाकारी यानी दिखावा कत्तई पसंद नही हैं, कुरआन और हदीस में इस बात का कोई जिक्र नहीं है कि कब्रों पर जाकर ही उनके हक में दुआएं की जाएं, घर पर या मस्जिद में इबादत और कुरआन की तिलावत और तसवीह यानी अल्लाह का जिक्र करके गुनाहों से तौबा और मगफिरत के लिए दुआ की जा सकती है।
रात को जागकर इधर उधर घूमने और बेफुजूल कामों में वक्त को गुजारने, की सख्त ममानियत है। मजहब ए इस्लाम, अमन और सलामती का मजहब है। इसलिए नौजवानों को चाहिए कि वह बेहयाई और फुजूल काम से बचें, और सारी रात इबादत में गुजारकर अल्लाह की राजा और खुशनूदी हासिल करें।