इक जान है सो ये अमानत उसी की है । कुछ भी नहीं हमारा तुम्हारा ज़मीन पर। मशहूर पत्रकार इरशाद अहमद को पत्रकारों ने दी श्रद्धांजलि
ओजैर खान
सिद्धार्थनगर। दैनिक जागरण के पूर्व पत्रकार इरशाद अहमद का शनिवार की रात इलाज के दौरान निधन हो गया था।
उनके निधन से हर कोई गहरे सदमे में था।वो बहुत ही खुश मिजाज़ व मिलनसार थे।आज पत्रकार उन्हें खिराजे अकीदत पेश करने के लिए बढ़नी डाक बंगले पर एकत्र हुए।लेकिन जब बोलने चले तो लफ़्ज़ों ने साथ छोड़ दिया ।ज़बान लड़खड़ा गयी ।दिल बैठ गया।पत्रकार भावुक हो गए और रो पड़े।
पत्रकार डॉ राजन उपाध्याय संचालन के लिए उठे, दो शब्द इस से पहले कि वो बोलते खुद रोने लगे।वरिष्ठ पत्रकार अजय गुप्त भी खड़े हुए ज़रूर बोलने के लिए लेकिन वो भी भावुक हो गए बोलने का साहस नहीं जुटा पाए।डॉ कुद्दुस का भी यही हाल हुआ।रुहांसे हो गए।अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार सलमान हिंदी ने खुद को किसी तरह संभाल रखा था।ज़ाहिरी तौर पर थोड़ा मजबूत दिख रहे थे लेकिन उनका भी धैर्य जल्द ही जवाब दे गया।वो भी लंबे समय तक खुद को संभाल नहीं पाए । साथी पत्रकारों को रोता देख वो खुद भी रुंहासे हो गए।
कमोवेश सभी पत्रकरो का यही हाल था।हर कोई उदास व गमगीन।शोकसभा के बाद पत्रकरो का समूह इरशाद अहमद के आवास पर पहुंचा व परिजनों से मुलाकत की।78 वर्षीय उनके पिता मास्टर करम हुसैन इदरीसी पत्रकरो में अपने बेटे के प्रति स्नेह व प्रेम देख कर पल भर के लिए खुश हुए लेकिन वो भी अपने बेटे को याद करके रो पड़े।जो ढांढस बंधाता वो खुद रोने लगता।
इरशाद अहमद का यूँ ही असमय चले जाना सबको अखर गया।बहुत याद आओगे इरशाद भाई,आपको भुलाना आसान नहीं है।
इक जान है सो ये अमानत उसी की है ।
कुछ भी नहीं हमारा तुम्हारा ज़मीन पर।