सिद्धार्थ नगर – सुनने के बाद बोलने भी लगी बुसरा तो परिवार में लौट आईं खुशियां
शोहरतगढ़ क्षेत्र के महमूंदवा ग्रांट की बुसरा को मिला नया जीवन
राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम मूक बधिर बच्चों की बदल रहा जिंदगी
kapilvastupost reporter सिद्धार्थनगर, 20 दिसंबर 2022
राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) मूक बधिर बच्चों की जिंदगी बदल रहा है। शोहरतगढ़ क्षेत्र के महमूंदवा ग्रांट की बुसरा (6) जन्म के बाद न तो बोल पा रही थी और न ही सुन पा रही थी। आरबीएसके टीम ने बुसरा का इलाज कराया तो वह सुनने के साथ-साथ बोलने भी लगी। बच्ची को सुनने के साथ बोलते हुए देख परिवार में खुशियां लौट आईं।
बुसरा की मां कमरजहां बताती हैं कि 22 दिसंबर 2016 को बुसरा ने जन्म लिया। जन्म के लगभग डेढ़ साल तक बच्ची के सुनने व बोलने में दिक्कत की जानकारी ही नहीं हुई। परिजन यह समझते रहे कि अभी छोटी है इसलिए बुलाने पर नहीं बोल रही है।
इस दौरान आंगनबाड़ी कार्यकत्री शाकिरा खातून व सहायिका माजिदा खातून ने जिला अस्पताल जाकर परामर्श लेने की सलाह दी। जिला अस्पताल पहुंचने पर चिकित्सकों ने गोरखपुर भेजकर जांच कराने को कहा। गोरखपुर में वर्ष 2018 में हुई जांच में बच्ची के मूकबधिर होने की दी गयी जानकारी ने परिवार को परेशान कर दिया।
वह बताती हैं कि घर की माली हालत भी इस तरह नहीं थी कि बड़े शहर ले जाकर उपचार कराया जाए, लेकिन आरबीएसके ने न सिर्फ बेटी की बल्कि परिवार की जिंदगी बदल दिया है। कानपुर के डॉ. लालचंदानी नाक, कान, गला एवं ह्रदय रोग सेंटर में उपचार के बाद बुसरा अब सुनने के साथ बोलने भी लगी है। बच्ची के उपचार पर लगभग आठ लाख रुपये खर्च हुए हैं, जिसे स्वास्थ्य विभाग व शासन ने वहन किया है।
गुड़, रोटी और चुकंदर से बढ़ाया खून
कमरजहां बताती हैं कि कानपुर की टीम द्वारा उपचार के लिए बुलाने पर बेटी को लेकर गई, लेकिन उन्हें बच्ची में दो बार खून की कमी के चलते वापस आना पड़ा। पहली व दूसरी बार शरीर में मात्र पांच प्वाइंट खून था। इसके बाद गुड़, रोटी व चुकंदर खिलाना शुरू की तो खून की मात्रा पांच से बढ़कर 12 प्वाइंट पहुंच गयी। इसके बाद बच्ची का उपचार हो सका।
इन्होंने किया प्रयास
सीएचसी शोहरतगढ़ में तैनात आरबीएसके चिकित्सक डॉ. पंकज व डॉ. मनक ने महमूंदवा ग्रांट क्षेत्र भ्रमण के दौरान आंगनबाड़ी कार्यकत्री शाकिरा खातून से सम्पर्क किया तो कार्यकत्री ने टीम को बुसरा के बारे में जानकारी दी थी। इसके बाद जिले में कानपुर की टीम आने पर आरबीएसके चिकित्सकों ने बुसरा की स्क्रीनिंग कराई थी।
डेढ़ साल बाद भी बच्चा न बोले तो लें परामर्श
जिला अस्पताल में बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. शैलेंद्र कुमार बताते हैं कि अमूमन बच्चा एक साल में बोलना शुरू कर देता है। कभी-कभी कुछ बच्चे डेढ़ साल में बोलते और हरकत पर रिस्पांस करते हैं, लेकिन डेढ़ साल बाद भी बच्चे का न बोलना और न ही रिस्पांस करना नकारात्मक संकेत है। ऐसी स्थिति में तत्काल चिकित्सकीय परामर्श लेना जरूरी है।
आरबीएसके के तहत पांच साल तक के बच्चों को नया जीवन देने का प्रयास हो रहा है। सत्र 2022-23 में 53 मूकबधिर बच्चों का उपचार होगा। सभी को कानपुर की टीम निर्धारित समय पर बुलाकर उपचार कर रही है। उपचार के बाद बच्चों की स्पीच थेरैपी बेहद जरूरी है, तभी वह सुनने के बाद बोल सकेंगे।
अनंत कुमार, डीईआईसी मैनेजर (आरबीएसके)