सिद्धार्थनगर। सिद्धार्थ विश्वविद्यालय कपिलवस्तु, सिद्धार्थनगर के कला संकाय के अंतर्गत शोध परिविधि अधिनातम आयाम विषय पर सात दिवसीय कार्यशाला का आयोजन का शुभारम्भ शनिवार को किया गया।
कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर सुनीता त्रिपाठी सहयुक्त आचार्य लोकप्रसाशन विभाग द्वारा किया जा रहा है।
कार्यक्रम के उद्घाटन समारोह में समन्वयक डॉक्टर सच्चिदानंद चौबे सहयुक्त आचार्य इतिहास विभाग ने सभी अतिथियो, शिक्षकों तथा शोध विद्याथियों का स्वागत करते हुए कार्यक्रम की शुरूआत हुई।
कार्यक्रम के अगली कड़ी में संयोजक डॉक्टर प्रज्ञेश नाथ त्रिपाठी सहायक आचार्य अर्थशास्त्र विभाग ने विषय प्रस्तावना पर बात करते हुऐ बताया कि इस कार्यशाला में 18 व्याख्यान हाइब्रिड मोड पर होने हैं जिसमे शोध समस्या, एथिक्स, डाटा, एसपीएसएस एव ऑनलाइन लाइब्रेरी के एक्सेस के बारे में शोधार्थियों को सिखाया जाएगा।
कार्यशाला में मुख्य वक्ता के रूप में प्रोफेसर हिमांशु चतुर्वेदी इतिहास विभाग दीन दयाल उपाध्याय यूनिवर्सिटी गोरखपुर ने बताया की जब हम शोधार्थियों से बात करते है तो टू वे कम्युनिकेशन होना चाहिए न कि वन वे, प्रोफेसर चतुर्वेदी ने प्री तथा पोस्ट 1987 के संदर्भ में बात करते हुए बताया की जैसे सोशल साइंसेज शोध में मिक्सड मैथड बहुत ज़रूरी है शोध में कल्चर का प्रभाव होता है, इसलिए लोकल सोर्स बहुत लाभदायक होता है। आधुनिकतावाद ने हमे यह बताया की हमारी परिकल्पना भी गलत हो सकती है और शोधार्थी को इस के लिए तैयार रहना चाहिए। एक शोधार्थी को निर्णायक नहीं होना चाहिए, इसकी परिकल्पना सही और गलत दोनो हो सकती है।
प्रोफेसर चतुर्वेदी ने बताया की आपका वस्तुनिष्ठ कार्यप्रणाली आपका पर्यवेक्षक होता है। सभी शोधार्थी को कम से कम 6 माह साहित्य की समीक्षा करने के बाद ही कार्यप्रणाली पर आना चाहिए।
कार्यशाला में प्रोफेसर हरीश कुमार शर्मा अधिष्ठाता कला संकाय ने अध्यक्षीय उद्बोधन के दौरान बताया की किसी भी शोध में दृष्टि बहुत महत्पूर्ण होती है। प्रोफेसर शर्मा ने यह भी बताया की सूचनाएं बहुत है पर उनका चयन बहुत कठिन है। जिसके बारे में शोधार्थियों को अवगत कराया जायेगा। अंत में डॉक्टर नीता यादव सहयुक्त अचार्य प्राचीन इतिहास विभाग ने धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यशाला के विशिष्ट अतिथि के रूप में वित्त अधिकारी अजय कुमार सोनकर एवम कला संकाय के सभी शिक्षकगण उपस्थित रहे।