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Nizam Ansari
सिद्धार्थनगर, 19 मार्च 2021 – होम्योपैथिक चिकित्सा क्षेत्र में अपनी अद्वितीय सेवा और शोध कार्यों के लिए प्रसिद्ध डॉ. भास्कर शर्मा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया गया है। उन्हें यूनाइटेड नेशन वेलफेयर फाउंडेशन, अमेरिका (एक यूनिट ऑफ इंटर गवर्नमेंटल ऑर्गेनाइजेशन) द्वारा एक लाख रुपये का चेक और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया।
नई दिल्ली में आयोजित इस सम्मान समारोह में डॉ. शर्मा की होम्योपैथी चिकित्सा में अभूतपूर्व योगदान और उनकी रिसर्च को विशेष रूप से सराहा गया। इस उपलब्धि के बाद जब वे सिद्धार्थनगर के इटवा स्थित अपने क्लिनिक पहुंचे, तो वहां उनके चाहने वालों और मरीजों ने उन्हें बधाइयों से नवाजा।
होम्योपैथी चिकित्सा में डॉ. भास्कर शर्मा का योगदान
डॉ. भास्कर शर्मा ने वर्षों से होम्योपैथी चिकित्सा को बढ़ावा देने और इसे मुख्यधारा में लाने के लिए कार्य किया है। उनके द्वारा किए गए शोध कार्यों ने कई असाध्य रोगों के इलाज में नई संभावनाओं को जन्म दिया है। उन्होंने विशेष रूप से क्रॉनिक बीमारियों, त्वचा रोग, एलर्जी, और मानसिक तनाव से जुड़े मामलों में होम्योपैथी की प्रभावशीलता पर शोध किया है।
उनके रिसर्च पेपर्स को अंतरराष्ट्रीय होम्योपैथिक सम्मेलनों में भी सराहा गया है। इसके अलावा, उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में होम्योपैथिक चिकित्सा को बढ़ावा देने के लिए कई निःशुल्क चिकित्सा शिविर भी लगाए हैं, जिससे हजारों मरीज लाभान्वित हुए हैं।
पुरस्कार मिलने पर डॉ. शर्मा की प्रतिक्रिया
पुरस्कार प्राप्त करने पर डॉ. भास्कर शर्मा ने कहा,
“यह सम्मान केवल मेरा नहीं, बल्कि पूरे होम्योपैथी चिकित्सा समुदाय का है। मेरा उद्देश्य है कि होम्योपैथी को और अधिक वैज्ञानिक प्रमाणों के साथ जन-जन तक पहुँचाया जाए। यूनाइटेड नेशन वेलफेयर फाउंडेशन का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ, जिन्होंने मेरे कार्य को मान्यता दी।”
स्थानीय लोगों में खुशी की लहर
डॉ. शर्मा की इस उपलब्धि से इटवा और सिद्धार्थनगर के लोगों में हर्ष का माहौल है। स्थानीय लोगों ने इसे होम्योपैथी चिकित्सा की एक बड़ी जीत बताया और उनके क्लिनिक पर पहुँचकर उन्हें बधाइयाँ दीं।
आगे की योजना
डॉ. शर्मा अब होम्योपैथी पर आधारित एक रिसर्च सेंटर स्थापित करने की योजना बना रहे हैं, जहाँ नए चिकित्सकों को प्रशिक्षण और अनुसंधान करने का अवसर मिलेगा। उनका उद्देश्य होम्योपैथी को और अधिक वैज्ञानिक आधार पर स्थापित करना और इसे वैश्विक स्तर पर प्रभावशाली चिकित्सा प्रणाली बनाना है।
उनकी इस उपलब्धि से सिद्धार्थनगर ही नहीं, बल्कि पूरे देश में होम्योपैथी चिकित्सा को एक नई पहचान मिली है।