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nizam ansari
देश में जहां एक ओर राजनीतिक समीकरण तेज़ी से बदलते नजर आ रहे हैं, वहीं उत्तर प्रदेश के गोंडा और बलरामपुर जिलों के सियासी गलियारों में अचानक एक मुलाक़ात ने सबका ध्यान खींच लिया है। उतरौला विधानसभा के पूर्व प्रत्याशी और समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता हसीब ख़ान की मनकापुर राजघराने की राजकुमारी शिवाली सिंह से हुई मुलाक़ात अब चर्चाओं का बड़ा कारण बन गई है।
राजनीतिक जानकारों की मानें तो वक्फ अमेंडमेंट बिल के पारित होने के बाद से ही हसीब ख़ान प्रदेश में कई छोटे राजनीतिक दलों के साथ गठबंधन की संभावनाएं तलाशते नज़र आ रहे हैं। इन मुलाक़ातों और चर्चाओं ने उन्हें यूपी की राजनीति में एक उभरते हुए “गठबंधन साधक” की भूमिका में ला खड़ा किया है।
इसी बीच जब मनकापुर राजघराने की वारिस और स्वर्गीय कुंवर विक्रम सिंह की बहन शिवाली सिंह के साथ उनकी मुलाक़ात की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुईं, तो यह घटना सिर्फ एक व्यक्तिगत भेंट से कहीं आगे निकल गई। यह तस्वीर अब बलरामपुर, गोंडा और उतरौला की राजनीति में संभावित बदलावों के संकेत के रूप में देखी जा रही है।
कौन हैं शिवाली सिंह?
शिवाली सिंह, न केवल मनकापुर राजघराने से ताल्लुक रखती हैं, बल्कि उनका रिश्ता जयपुर के शाही खानदान से भी जुड़ा है। स्वर्गीय कुंवर विक्रम सिंह के देहांत के बाद उन्हें राजघराने की राजनीतिक और सामाजिक विरासत को संभालने वाली मुख्य उत्तराधिकारी माना जाता है।
यही नहीं, मनकापुर राजपरिवार के कई सदस्य वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी से जुड़े हुए हैं और केंद्र सरकार में अहम भूमिका निभा रहे हैं। ऐसे में शिवाली सिंह की समाजवादी नेता हसीब ख़ान से मुलाक़ात को हल्के में नहीं लिया जा रहा।
क्या बदलेंगे सियासी समीकरण?
राजनीतिक हलकों में यह चर्चा जोरों पर है कि यह मुलाक़ात 2027 के विधानसभा चुनाव की रणनीति का हिस्सा हो सकती है। कई अटकलें इस ओर भी इशारा कर रही हैं कि शिवाली सिंह भविष्य में समाजवादी पार्टी में शामिल हो सकती हैं। अगर ऐसा होता है तो यह कदम गोंडा और बलरामपुर जैसे क्षेत्रों में बीजेपी के पारंपरिक वोटबैंक पर सीधा असर डाल सकता है।
हालांकि अभी तक न तो इस मुलाक़ात की कोई औपचारिक घोषणा हुई है और न ही किसी राजनीतिक गठबंधन की पुष्टि। लेकिन सियासी गलियारों में कहा जा रहा है कि राजनीति में कई बार तस्वीरें बयान से ज़्यादा असर डालती हैं, और यह तस्वीर उसी श्रेणी की मानी जा रही है।
क्या यह व्यक्तिगत भेंट थी या रणनीतिक चाल?
अभी यह स्पष्ट नहीं है कि यह भेंट सिर्फ सामाजिक और पारिवारिक सौजन्य के तहत थी या इसके पीछे कोई बड़ा चुनावी खेल रचा जा रहा है। मगर जिस तरह से चर्चा तेज़ है, उससे यह साफ है कि आने वाले समय में यह मुलाक़ात कोई बड़ी भूमिका निभा सकती है।
अब सभी की निगाहें इस ओर टिक गई हैं कि क्या शिवाली सिंह सियासत में सक्रिय होंगी? क्या समाजवादी पार्टी और छोटे दलों के गठजोड़ में हसीब ख़ान की भूमिका निर्णायक होगी?
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