गुरु अर्जुन देव जी की शहादत: धर्म, सत्य और मानवता के लिए सर्वोच्च बलिदान
तारीख: 30 मई | पर्व: जेष्ठ शुक्ल पक्ष की चतुर्थी रिपोर्ट: परमात्मा प्रसाद उपाध्याय
आज 30 मई को, जेष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के पावन अवसर पर देश-विदेश के गुरुद्वारों में श्रद्धा और भक्ति के साथ सिखों के पांचवें गुरु श्री गुरु अर्जुन देव जी का शहीदी दिवस मनाया जा रहा है। इस दिन गुरुद्वारों में विशेष पाठ, कीर्तन, अरदास और संगतों का आयोजन होता है।
गुरु अर्जुन देव जी की शहादत इतिहास में धार्मिक स्वतंत्रता, सत्य और सिद्धांतों की रक्षा का ऐसा अध्याय है, जो आज भी प्रासंगिक बना हुआ है। उन्होंने अपने धर्म, विचार और मूल्य से कभी समझौता नहीं किया। उनका जीवन “प्राण जाए पर धर्म न जाए” की भावना का प्रत्यक्ष उदाहरण है।
गुरु जी का जीवन: मानव सेवा और करुणा की मिसाल
गुरु अर्जुन देव जी का जीवन समाज के लिए समर्पित रहा। उन्होंने सिखों को संगठित किया, श्री हरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) की नींव रखी और श्री गुरु ग्रंथ साहिब का संपादन कर सिख धर्म की आध्यात्मिक धरोहर को संरक्षित किया।
उन्होंने समाज के हर वर्ग को समान दृष्टि से देखा और हमेशा दया, करुणा, सेवा और समर्पण के सिद्धांतों पर चले।
साजिशें और बलिदान की कहानी
गुरु अर्जुन देव जी के अपने ही भाई प्रीथी चंद ने उनके खिलाफ मुगल दरबार में साजिशें रचीं। चंदू शाह द्वारा रिश्ता ठुकराए जाने का अपमान भी एक बड़ा कारण बना, जिससे चंदू ने गुरु जी के विरुद्ध जहरीले बीज बोए।
इसी दौरान शहजादा खुसरो, जो सम्राट अकबर का पोता था, अपने पिता जहांगीर के विरुद्ध बगावत कर बैठा और गुरु जी की शरण में आया। गुरु अर्जुन देव जी ने मानवता के नाते उसे शरण दी, भोजन व धन दिया और आशीर्वाद स्वरूप तिलक किया।
यह बात मुगल सम्राट जहांगीर को नागवार गुज़री। पहले से ही भड़काए गए जहांगीर ने गुरु जी को विद्रोह का समर्थन देने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया।
अमानवीय यातनाएं और शहादत
गुरु अर्जुन देव जी को लाहौर में अमानवीय यातनाएं दी गईं:
पहले दिन भोजन और पानी से वंचित किया गया
दूसरे दिन उन्हें उबलते पानी में डुबोया गया
तीसरे दिन उनके शरीर पर गर्म रेत और तेल डाली गई
चौथे दिन गर्म लोहे की तवे पर बैठाया गया
पांचवे दिन उन्हें ठंडे पानी में फेंक दिया गया अंततः, विक्रम संवत 1663 की जेठ शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गोइंदवाल साहिब में उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। आज गुरुद्वारा डेरा साहिब, जो पाकिस्तान में स्थित है, उनकी स्मृति को संजोए हुए है।
आज की प्रासंगिकता: गुरु जी के आदर्शों को आत्मसात करने का समय
आज के दौर में, जब दुनिया उथल-पुथल और मूल्यविहीनता से जूझ रही है, गुरु अर्जुन देव जी के सिद्धांत और बलिदान हमें मानवता, सेवा, सत्य और धार्मिक स्वतंत्रता की राह पर चलने की प्रेरणा देते हैं। उनके आदर्शों को अपनाकर ही हम समाज को न्याय, करुणा और समरसता की ओर ले जा सकते हैं।
विशेष संदेश: गुरु अर्जुन देव जी की शहादत हमें यह सिखाती है कि धर्म की रक्षा और मानव सेवा ही सच्चा जीवन है।