फरिश्तों और कुरान के नुजल की रात है शबे क़दर – मौलाना हाशिम सल्फी

पवित्र माह रमजान अमन और दुवाओं का महीना है

जाकिर खान

सिद्धार्थनगर । जनपद सिद्धार्थनगर में पवित्र माह रमजान की तीसरे जुमा की नमाज ग्रामीण और नगर के मस्जिदों में बड़े ही अकीदत के साथ अदा की गई । जिला मुख्यालय के खैर पब्लिक स्कूल कैम्पस में स्थित जामा मस्जिद में जुमा की
नमाज की इमामत युवा मुस्लिम आलिम मौलाना हाशिम सल्फी ने की ।
सल्फी साहब ने कहा कि माहे रमजान अमन , सलामती और इबादत का महीना होता है । जिसमे लोग 30 दिन भूखे और प्यासे रहकर रातो को जागकर अल्लाह की इबादत करते हैं । उन्होंने कहा कि रमजान के महीने में 3 अशरे ( खंड ) होते हैं । जिनमे 2 अशरे आज समाप्त हो रहे हैं । तीसरे अशरे की शुरुआत आज रात से शुरू हो जाएगी ।
उन्होंने मस्जिद में मौजूद लोगों से अपील करते हुए कहा कि भाइयों रमजान के तीसरे अशरे में ही शबे कदर की रात होती है । जिसकी अहमियत यह है कि एक रात की इबादत 1 हजार महीने की इबादत के बराबर है । अधिकाधिक संख्या में लोगों को जागकर अपने गुनाहों की मगफिरत और माफी तलाफी करना चाहिये । ऐसा न करने वालों के बड़ी खराबी और बदनशींबी होगी । क्योंकि
आने वाले समय मे न जाने किसकी जिन्दगी रहे न रहे । इसलिए अपने वक्त को गनीमत समझो । उन्होंने कहा कि अल्लाह की हुक्म से कदर की रात में आसमान से जमीम पर जिबरेल -ए – अमीन और फरिशते उतरते हैं । और इबादत करने वालों के लिए अल्लाह पाक से दुआ करते हैं ।

आगे उन्होंने कहा कि इसी कदर वाली रात में ही कुरान -ए- पाक भी उतरा है । इसलिए कहा जाता है कि रमजान कलाम पाक के नुजल की रात व महीना है । शबे कदर का मतलब ( पूरी रात जागकर इबादत करना और कलाम पाक का तेलावत करना )
रोजा का मतलब सिर्फ खाने पीने से रुकना नही ।बल्कि अपने हर गलत और पाप के कार्यों से रुकने और छोड़ने का नाम है । और तो और रोजा से हमे अपने पड़ोसियों के साथ अच्छे व्यवहार / संबंध रखना भी रोजा के श्रेणी में आता है ।
आखिरी अशरे के अंदर एतकाफ का बड़ा शवाब और सुनत है । फितरा ईद की नमाज से पहले ही अदा करना चाहिए । वरना फितरा का असल मकसद से काफी दूर हो जाएगा । और वार्षिक सदका के समूह में आ जाता है । लोगो को ईद की नमाज से पहले ही सदका अदा करना चाहिए ।
जो मुस्लिम माह रमजान के महीनों पाकर अपने गुनाहों से तौबा नहीं किया तो समझ लो कि दुनिया का वही सबसे बदनसीब इनसान है । अभी भी वक्त है सुधर जाओ । अपने माता पिता और पूरे खानदान सहित अपने लिए और अपने कौम मिल्लत के लिए विधिवत दुवाएं मांगो । अल्लाह से अपने लौ को लगा लो । पता नही कब ज़िंदगी खत्म हो जाय । क्या मालूम कि अगला रमजान हमे नसीब हो या न हो ।

  
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