कपिलवस्तु की पहचान के लिए आयोजित हुई आन लाइन प्रदर्शनी
जे पी गुप्ता
सिद्धार्थनगर। आजादी का अमृत महोत्सव एवं चौरी चौरा शताब्दी महोत्सव के अंतर्गत राजकीय बौद्ध संग्रहालय पिपरहवा सिद्धार्थनगर द्वारा शुक्रवार को कपिलवस्तु की एक पहचान विषयक ऑनलाइन छायाचित्र प्रदर्शनी का आयोजन किया गया।
बौद्ध ग्रंथ महावंश के अनुसार प्राचीन कपिलवस्तु की स्थापना इक्ष्वाकु ओकाक के पुत्रों द्वारा कपिल मुनि के आश्रम के निकट की गई थी इस स्थान का नाम कपिलवस्तु पड़ा। इसके निकट से बहने वाली रोहड़ी नदी शाक्य व कोलिय राज्यों की सीमा रेखा थी।
बौद्ध साहित्य एवं पुरातात्विक साक्ष्यों के अनुसार कपिलवस्तु की पहचान पिपरहवा के रूप में की गई है। 19 वी एवं बीसवीं शताब्दी के मध्य कारलायल कनिंघम फ्यूहरर आदि ब्रिटिश पूराविदो ने कपिलवस्तु की पहचान के लिए पिपराहवा व उसके समीपवर्ती स्थलो पर सर्वेक्षण किया।
सर्वप्रथम सन 1897 ईस्वी में बर्डपुर के जिमीदार डब्लू सी पेपे द्वारा इस स्थल पर पुरातात्विक कार्य प्रारंभ किया गया, पिपराहवा में कराए गए उत्खनन से अनेक वस्तु अवशेषों के साथ एक वृहदाकार स्तूप की संरचना प्राप्त हुई। चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में अभिलिखित धातु मंजूषा प्राप्त हुई।
मुख्य स्तूप के दक्षिणी भाग में स्थित बौद्ध विहार के समीप दो छोटे मनौती स्तूप काफी संख्या में मिट्टी की मोहरे तथा कपिलवस्तु लेख युक्त एक पात्र का ढक्कन प्राप्त हुआ, स्तूप के मध्य में रखें पात्रों से जली अस्थियां मिली, यहां से कुषाण एवं अयोध्य के शासकों की मुद्राएं मटके थालियां कटोरिया मुखोटे व मुहरें तथा उत्तरी काली चमकीली पात्र परंपरा एन बी पी के अवशेष प्राप्त हुए|
यहां से प्राप्त मिट्टी की मोहरो पर ओम देवपुत विहारे कपिलवस्तु भिक्षु सघस अथवा महा कपिलवस्तु भिखु सघस अंकित है, गनवरिया राजप्रासाद से स्थानक बुद्ध प्रतिमा अलंकृत तशतरिया अभिलिखित सीलिंग आहत सिक्के प्रथम शताब्दी के लाल बलुआ पत्थर से निर्मित पुरुष मस्तक मिट्टी की मूर्तियां कॉपर युक्त चूड़ियां रिंग मनके कृषि के योग्य हाशिया मातृदेविया मिट्टी से निर्मित जानवरों आदि की सामग्रियां उत्खनन से प्राप्त हुई हैं।
उक्त को ऑनलाइन प्रदर्शनी के माध्यम से कपिलवस्तु की पहचान की जानकारी हेतु प्रदर्शित किया गया है उक्त जानकारी राजकीय बौद्ध संग्रहालय पिपरहवा के वीथिका सहायक रामानंद प्रजापति ने दी।