बढ़नी,सिद्धार्थनगर। ढेबरुआ थाना क्षेत्र के ग्राम पंचायत दुधवनिया बुजुर्ग में एक मामला प्रकाश में आया है। मिली जानकारी के अनुसार दुधवनिया बुजुर्ग निवासी अजीजुलकद्र द्वारा अपने ही लगभग 16 वर्षीय पुत्र फौजान को मारने पीटने शारीरिक एवं मानसिक रूप से प्रताड़ित करने के कारण वह लड़का घर छोड़ कर भाग गया है।
मिली जानकारी के अनुसार वह लड़का ललितपुर जिला चिकित्सालय में भर्ती है लेकिन उसका हाल खबर लेने वाला कोई है या नहीं यह जांच का विषय है।
मिली जानकारी के अनुसार कुछ लोगों द्वारा जब इस खबर की पुष्टि के लिए हमारी टीम ने पड़ताल की तो लोगों द्वारा ये बताया गया की लड़का पहले बिल्कुल ठीक ठाक रहता था लेकिन उसे उसके बाप द्वारा आए दिन जंजीर में बांध कर रखने मारने पीटने एवं टार्चर करने के कारण वह डिप्रेशन में रहने लगा था आज वह लड़का जिला चिकित्सालय ललितपुर अस्पताल में भर्ती है लेकिन उसके बाप द्वारा उसकी सुधि नहीं ली जा रही है।
अब सवाल ये उठता है कि आखिर कोई बाप अपने बेटे को इस प्रकार शारीरिक एवं मानसिक रूप से क्यूं प्रताड़ित करेगा। यह मामला कितना सत्य है इसकी जांच हो तभी पता चल सकता है इसमें सच्चाई क्या है।
अगर मामला सही पाया जाता है तो दोषियों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही होना सुनिश्चित किया जाना न्याय संगत होगा।
पेरेंट्स का अपने बच्चों के साथ किस प्रकार का व्यवहार करना उचित है।
“पैरेंट्स हमेशा सोचते हैं कि बच्चों को अनुशासन सिखाना बहुत ज़रूरी है. हां ये एक हद तक बहुत ज़रूरी है, क्योंकि बच्चों का ये जानना कि क्या उनकी बाउंड्रीज़ हैं, क्या अनुशासन में उन्हें रहना चाहिए, उनकी एक पूरी ज़िंदगी आगे शेप होती है. पर उसके लिए हम बच्चों को मारे, पीटे, चिल्लाएं ये ज़रूरी नहीं है. काउंसलिंग करके पैरेंट्स को समझाया जा सकता है कि पॉज़िटिव पैरेंटिंग स्ट्रैटजी बनाएं. हेल्दी बाउंड्रीज़ बनाई जाएं. पैरेंट्स को समझाना ज़रूरी है कि मार-पीट का बच्चों की मानसिकता पर क्या असर होता है. और हमें कैसे उन्हें बिना मार-पीट के डिसिप्लीन में रहना सिखाना होगा. किसी भी पैरेंट को अपने बच्चे को मारना नहीं चाहिए. मारने से बच्चे पर बहुत बुरा असर होता है. हर बच्चा इससे अच्छाई की तरफ नहीं जाता. पैरेंट्स को बच्चों से बात करनी चाहिए. सबसे पहले ऐसा बॉन्ड बनाना चाहिए जिसमें उनको बच्चों को समझना चाहिए, और समझने के लिए उन्हें एक एक्टिव लिसनिंग करना चाहिए. बच्चों को क्वालिटी टाइम देना चाहिए, जिसमें वो पूरी तरह बच्चे के साथ रहें, और दूसरे काम न करें, ताकि बच्चे को लगे कि माता-पिता की सारी अटेंशन उसके ऊपर ही है. तब बच्चा खुलकर अपनी सोच, विचार, फीलिंग्स, कन्सर्न्स और दिक्कतें मां-बाप को बताएगा. बच्चे को समझते हुए हल देने चाहिए.”।
इस तरह ही मार-पीट और टॉक्सिक पैरेंटिंग का बच्चों पर बहुत निगेटिव असर पड़ सकता है. उनकी फिज़िकल इमोशनल और मेंटल ग्रोथ पर बहुत असर पड़ता है. ऐसे निगेटिव माहौल में रहने से बच्चों में काफी लॉन्ग टर्म निगेटिव इफेक्ट देखा जाता है. निगेटिव क्रिटिसिज़्म की वजह से बच्चों का कॉन्फिडेंस और सेल्फ वर्थ पर प्रभाव पड़ता है. और जब बच्चे अपने इमोशन्स को एक्सप्रेस नहीं कर पाते, तो अब्यूज़, डिप्रेशन और एंग्ज़ायटी का शिकार हो जाते हैं. एक ट्रस्ट डेफिसिट जैसी कंडिशन उनकी लाइफ में आ जाती है. कई बार वो खुद भी अग्रेसिव हो जाते हैं और एंटी-सोशल पर्सनेलिटी बन जाते हैं.”