बाल विवाह सभ्य समाज के माथे पर कलंक

👉इस वर्ष अक्षय तृतीया पर बाल विवाह मुक्त भारत बनाने का सपना जन सहयोग से होगा पूरा।

👉बाल विवाह को समाप्त करने के लिए प्रबुद्ध वर्ग को भी आगे बढ़कर करना होगा सहयोग: आशा त्रिपाठी

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सिद्धार्थनगर। मानव सेवा संस्थान सेवा द्वारा कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में सिद्धार्थनगर के 50 ग्राम पंचायत में बाल विवाह को समाप्त करने के लिए बृहद रूप से जनचौपाल, बैठको का आयोजन किया गया। उक्त जागरूकता कार्यक्रम अक्षय तृतीया के अवसर पर 01मई से प्रारम्भ होकर आज 10 मई को समापन हुआ जिसमें धार्मिक गुरु, पंडित, मौलवी , ग्राम प्रधान, आशा, आगनवाड़ी, समूह की महिलाएं और गांव के लोगों ने एक साथ मिलकर बालविवाह को समाप्त करने के लिए पुरजोर समर्थन देने का संकल्प लिया।
संस्थान की अध्यक्ष श्रीमती आशा त्रिपाठी ने बताया कि आज भी बाल विवाह समाज में व्याप्त है जो कि सभ्य समाज के लिए कलंक है, इस कुप्रथा को रोकने और जड़ से समाप्त करने के लिए सरकार एवं गैर सरकारी संगठन एक साथ मिलकर कार्य कर रही है साथ ही बाल विवाह के प्रति लोगों को जागरूक कर रही है।
इसी प्रयास की कड़ी में मानव सेवा संस्थान “सेवा” एवं कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन (नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी जी ) के साथ मिलकर संयुक्त रूप बच्चों के विरुद्ध हिंसा, बाल यौन शोषण की रोकथाम, बाल दुर्व्यव्यापार और बाल विवाह को समाप्त करने के लिए कार्य कर रही हैं जहां बच्चे स्वतंत्र, सुरक्षित, स्वस्थ और शिक्षित होकर समाज की मुख्य धारा से जुड़ सकें।
उक्त जानकारी संस्थान की अध्यक्षा श्रीमती आशा त्रिपाठी ने जारी विज्ञप्ति में बताया कि हमारे समाज में बाल विवाह एक सामाजिक बुराई होने के साथ-साथ कानुनन अपराध भी है, जो बच्चों के अधिकारों और उनके बचपन को छीन लेती है। 2019-2021 में आयोजित पांचवें राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण से पता चला कि 20 से 24 वर्ष की आयु के बीच की 23.3ः लड़कियों की शादी 18 वर्ष की कानूनी उम्र से पहले हो जाती है। यह गंभीर चिंता का कारण है और इस पर तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है। इस पर अंकुश के लिए सरकार ने 2006 में बाल विवाह निषेध अधिनियम कानून लागू किया है जो कम उम्र में विवाह से बच्चों की रोकथाम और सुरक्षा प्रदान करता है।
परन्तु इसे कानून के प्रभावी कार्यान्वयन के साथ-साथ समाज से बाल विवाह को समाप्त करने के लिए जन जागरूकता और संवेदनशीलता भी आवश्यक है।
इस वर्ष अक्षय तृतीया से पूर्व राजस्थान हाई कोर्ट ने बाल विवाह के खिलाफ पूरे देश में कदम उठाए जाने का आदेश दिया है। बाल विवाह को रोकने में विफलता पर पंचों व सरपंचों को भी जवाबदेह ठहराया जाएगा यह आदेश राजस्थान हाई कोर्ट ने जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस की जनहित याचिका पर फौरी सुनवाई करते हुए जारी किया है । जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस के सहयोगी संगठन मानव सेवा संस्थान सेवा ने राज्य सरकार से अपील की है कि वह भी इस नजीर का अनुसरण करते हुए सुनिश्चित करे कि इस वर्ष अक्षय तृतीया के दौरान कहीं भी बाल विवाह नहीं होने पाए। इन संगठनों ने अपनी याचिका में इस वर्ष 10 मई को अक्षय तृतीया के मौके पर होने वाले बाल विवाहों को रोकने के लिए तत्काल हस्तक्षेप की मांग की थी।
न्यायमूर्ति शुभा मेहता और पंकज भंडारी की खंडपीठ ने कहा सभी बाल विवाह निषेध अफसरों से इस बात की रिपोर्ट मंगाई जानी चाहिए कि उनके अधिकार क्षेत्र में कितने बाल विवाह हुए और इनकी रोकथाम के लिए क्या प्रयास किए गए। खंडपीठ का यह आदेश अक्षय तृतीया से महज 10 दिन पहले आया है।
याचियों द्वारा बंद लिफाफे में सौंपी गई अक्षय तृतीया के दिन होने वाले 54 बाल विवाहों की सूची पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने राज्य सरकार को इन विवाहों पर रोक लगाने के लिए ‘बेहद कड़ी नजर’ रखने को कहा है। यद्यपि इस सूची में शामिल नामों में कुछ विवाह पहले ही संपन्न हो चुके हैं लेकिन 46 विवाह अभी होने बाकी हैं।
जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस के संस्थापक भुवन ऋभु ने कहा, “बाल विवाह वह घृणित अपराध है जो सर्वत्र व्याप्त है और जिसकी हमारे समाज में स्वीकार्यता है। बाल विवाह के मामलों की जानकारी देने के लिए पंचों व सरपंचों की जवाबदेही तय करने का राजस्थान हाई कोर्ट का यह फैसला ऐतिहासिक है। पंच व सरपंच जब बाल विवाह के दुष्परिणामों के बारे में जागरूक होंगे तो इस अपराध के खिलाफ अभियान में उनकी भागीदारी और कार्रवाइयां बच्चों की सुरक्षा के लिए लोगों के नजरिए और बर्ताव में बदलाव का वाहक बनेंगी। बाल विवाह के खात्मे के लिए भारत सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदम पूरी दुनिया के लिए एक सबक हैं और राजस्थान हाई कोर्ट का यह फैसला इस दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम है।
जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस पांच गैरसरकारी संगठनों का एक गठबंधन है जिसके साथ 120 से भी ज्यादा गैरसरकारी संगठन सहयोगी के तौर पर जुड़े हुए हैं जो पूरे देश में बाल विवाह, बाल यौन शोषण और बाल दुर्व्यापार जैसे मामले से बच्चों की सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर काम कर रहे हैं।
मानव सेवा संस्थान सेवा गोरखपुर की अध्यक्ष आशा त्रिपाठी ने कहा, “राजस्थान हाई कोर्ट का यह आदेश ऐतिहासिक है जिसके दूरगामी नतीजे होंगे। देश में शायद पहली बार ऐसा हुआ है जब पंचायती राज प्रणाली को यह शक्ति दी गई है कि वह सरपंचों को अपने क्षेत्राधिकार में बाल विवाहों को रोकने में विफलता के लिए जवाबदेह ठहरा सके। जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस के सहयोगी के तौर पर हम पूरे उत्तर प्रदेश के जिलाधिकारियों से इसी तरह के कदम उठाने की अपील करते हैं। जमीनी स्तर पर हमारी पहलों ने यह साबित किया है कि बाल विवाह जैसे मुद्दों के समाधान में सामुदायिक भागीदारी सबसे अहम है। यह अदालती आदेश बच्चों की सुरक्षा के लिए समुदायों को लामबंद करने में स्थानीय नेतृत्व की जवाबदेही की जरूरत को रेखांकित करता है।
जारी विज्ञप्ति के अनुसार मानव सेवा संस्थान के द्वारा बाल विवाह को समाप्त करने को लेकर अक्षय तृतीया पर धार्मिक स्थलों, धार्मिक नेताओं एवं ग्राम पंचायतो के साथ मिलकर बाल विरोधी प्रथा को जड़ से समाप्त करने की दिशा में एक सकारात्मक प्रयास किया गया है। जिसे जन सहयोग के बिना सफल बनाना नामुमकिन है।
श्री मती त्रिपाठी ने कहा कि संस्थान जनपद गोरखपुर , महराजगंज, सिद्धार्थनगर और संतकबीरनगर को बाल विवाह मुक्त करने में और इस अभियान को सफल बनाने में जनता जनार्दन से सहयोग एवं समर्थन हेतु अपील एवम निवेदन किया जिससे की इस कुप्रथा को समाप्त किया जा सके। उक्त कार्यक्रम में मयंक त्रिपाठी, धर्मेंद्र सिंह, जयप्रकाश गुप्ता, सुनीता कुमारी, कमलेश कुमार चौधरी, अनवारुलहक, आनन्द, सुमित सिंह, आलोक कुमार मिश्र, सत्य प्रकाश मद्धेशिया, अजय चौधरी, आदि मौजूद रहीं।

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