होली बनाम जुमा: 14 मार्च को सुरक्षा की बड़ी चुनौती, प्रशासन अलर्ट , बिना परमिशन निकलने वाले जुलूसों पर प्रशासन का शिकंजा

शोहरतगढ़ और डुमरियागंज में बिना परमिशन निकलने वाले जुलूसों पर जिला प्रशासन रोकने में कहाँ तक कामयाब हो पायेगा यह बड़ा मामला है ? शोहरतगढ़ में डी एम् साहब को मस्जिद के पास और डुमरियागंज में एस पी साहब को संभालनी होगी कमान !

Democrates 

14 मार्च 2025 को एक ओर रंगों का त्योहार होली मनाया जाएगा, तो दूसरी ओर मुस्लिम समुदाय के लिए खास जुमा (शुक्रवार की नमाज) भी होगा। दोनों पर्व एक ही दिन पड़ने से कानून-व्यवस्था को बनाए रखना प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती बन गया है। देश के कई हिस्सों में इसको लेकर माहौल संवेदनशील हो सकता है, जिससे प्रशासन ने अभी से सख्त तैयारियां शुरू कर दी हैं।

संभावित चुनौतियां

साम्प्रदायिक सौहार्द्र की परीक्षा – त्योहार और धार्मिक अनुष्ठान के टकराव से असामाजिक तत्व माहौल बिगाड़ने की कोशिश कर सकते हैं।

मस्जिदों के पास होली खेलने पर विवाद की संभावना – कई स्थानों पर मस्जिदों के पास से होली के जुलूस गुजरते हैं, हल्ला गुल्ला शोर और यदि नारेबाजी होने जिससे टकराव की स्थिति बन सकती है।

अफवाहों का खतरा – सोशल मीडिया पर झूठी खबरें और भ्रामक वीडियो माहौल को भड़काने का काम कर सकते हैं।

सड़क व यातायात प्रबंधन – होली के रंगों के साथ शुक्रवार की नमाज को लेकर भीड़-भाड़ होगी, जिससे जाम और अव्यवस्था की आशंका है।

प्रशासन की तैयारियां

संवेदनशील इलाकों में अतिरिक्त पुलिस बल तैनात , ड्रोन और सीसीटीवी से निगरानी , सोशल मीडिया मॉनिटरिंग टीम सक्रिय

धार्मिक व सामाजिक संगठनों से बैठक कर अपील , संभावित हॉटस्पॉट इलाकों में धारा 144 लागू करने पर विचार करने की जरूरत है | कई दशों से देश में होली और जुमा एक ही दिन पड़ता रहा है लेकिन इस बार जिस तरह से होली को एक इवेंट कि तरह प्रचार प्रसार किया जा रहा है ऐसे में प्रशासन कि तैयारियां कितनी कारगर होंगी यह तो आने वाला समय ही बताएगा  |

सामाजिक समरसता की जरूरत 

देश में सबसे बड़ी समस्या आइडियोलोजी की है जो एक तरफ अपने समाज और धर्म को विश्व में सबसे सर्वश्रेष्ठ साबित करने के लिए दुसरे धर्मों के धार्मिक अल्पसंख्यकों के खान पान व्यापर धार्मिक आज़ादी पर निशाना साढ़े हुवे है उन्हें मिटाने की कोशिशें की जा रही है वहीँ दूसरी और देश के अब्दुल को अपने खुदा के इंसाफ पर पूरा भरोषा है उसे इस बात का विश्वास है कि परेशानी और कितनी ही कठिनाई आये चाहे जितना जुल्म और बर्बरता अत्यचार कर लें इस्वर का इंसाफ होकर रहेगा हर काली रात के बाद सुबह जरूर होती है |

ऐसे समय में देश के नागरिकों को आपसी भाईचारा और समझदारी दिखाने की जरूरत है। त्योहारों का मकसद प्रेम और सौहार्द्र को बढ़ावा देना है, न कि टकराव पैदा करना। सनातन प्रेमियों को अपने धर्म के अनुसार आचरण करते हुवे मानवता को बढ़ावा देते हुवे धर्म के हृदयतल मानव सेवा को प्रेम सद्भाव के साथ आगे आना होगा और त्योहारों को शांतिपूर्ण उद्देश्यों की प्राप्ति करनी चाहिए धर्म में नफरत की जगह नहीं है | प्रशासन अलर्ट है, लेकिन असली जिम्मेदारी समाज की भी है कि शांति और सौहार्द्र बनाए रखें।

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