कृष्णनगर नेपाल में ऐतिहासिक बंदी: आत्मसम्मान, हक और न्याय की बुलंद आवाज

गुरु जी की कलम से

बढ़नी (सिद्धार्थनगर)।

पड़ोसी मित्र राष्ट्र नेपाल के सीमावर्ती कस्बे कृष्णनगर में सोमवार को हुए ऐतिहासिक बंद को जबरदस्त जनसमर्थन मिला। यह बंद उद्योग वाणिज्य संघ कृष्णनगर नेपाल के आह्वान पर आयोजित किया गया था, जिसका उद्देश्य छोटे व्यापारियों, किसानों, रेहड़ी-पटरी वालों और मेहनतकश लोगों के साथ हो रहे उत्पीड़न के खिलाफ आवाज़ बुलंद करना था।

नेपाली नागरिकों का कहना है कि भारत से खाद लाने को मजबूर किसान हर बार सुरक्षा बलों द्वारा अपमानित किए जाते हैं। वहीँ, रिक्शा चालक, होटल व्यवसायी और आम मजदूर जो रोज़मर्रा का सस्ता सामान भारत से लाते हैं, उन्हें भी तस्करी के आरोपों का सामना करना पड़ता है। यह विरोध उस व्यवस्था के खिलाफ है, जो मेहनतकश को अपराधी बना रही है।

सरहद पर बढ़ते अविश्वास के साए
यह वही भारत-नेपाल की सीमा है जहाँ कभी रोटी-बेटी के रिश्ते की मिसाल दी जाती थी। अब वहीं विवाह के उपहार स्वरूप लाई गई भारतीय नंबर की मोटरसाइकिल पर भी सवाल उठाए जाते हैं। ट्रैफिक विभाग और भंसार (कस्टम्स) के अधिकारियों का व्यवहार आम नागरिकों की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला बताया जा रहा है।

यह बंद भय नहीं, बदलाव की पुकार है – मौलाना मशहूद खां नेपाली
माओवादी केंद्र लुंबिनी प्रदेश के सदस्य मौलाना मशहूद खां नेपाली ने इस बंद का समर्थन करते हुए कहा, “जब रक्षक ही भय का प्रतीक बन जाएँ, किसान की खाद और व्यापारी की मेहनत शक की नजर में आ जाए तो बंद करना ज़रूरी हो जाता है। यह बंद आत्मसम्मान और अधिकारों की पुनः स्थापना के लिए है।”

बंद नहीं, एक जनचेतना की शुरुआत
कृष्णनगर का यह शांतिपूर्ण बंद वास्तव में वर्षों से दबे आक्रोश और पीड़ा की सार्वजनिक अभिव्यक्ति है। यह महज व्यापार का ठहराव नहीं, बल्कि किसानों, मजदूरों और छोटे व्यापारियों की गरिमा, न्याय और हक के लिए एक सामूहिक जनचेतना है। बंद के दिन शहर की खामोशी ने एक आवाज़ बनकर उन नीतियों पर सवाल उठाए, जो आमजन को ही अपराधी बना रही हैं।

राज्य की संवेदनहीनता पर सवाल
यह सवाल उठाता है कि क्या आज का राज्य इतना असंवेदनशील हो चुका है कि मेहनतकश का पसीना उसे अपराधी ठहराने का कारण बन जाए? क्या कानून अब सिर्फ ताकतवरों की ढाल बन चुका है?

एक दीवार पर लिखा पैगाम
कृष्णनगर नेपाल के बंद बाजारों की खामोशी, मानो दीवारों पर लिखा वह पैगाम है जिसे पढ़ने की ज़रूरत सत्ता को है। यह विरोध, यह बंद, यह जनसंगठित आंदोलन एक चेतावनी है—आत्मसम्मान की बहाली, न्याय की मांग और मेहनतकश के हक की वापसी के लिए।

error: Content is protected !!
Open chat
Join Kapil Vastu Post
17:43