सिद्धार्थ नगर : स्वास्थ्य विभाग , कुपोषण की जंग हार गया पुष्टाहार विभाग

जनपद में कुल  3112 आंगनबाड़ी केंद्र हैं जहाँ पर तीन लाख 75 हजार 609 बच्चों का नामांकन है।

मो अरशद खान

सिद्धार्थनगर। कुपोषित बच्चों को स्वस्थ बनाये जाने के उद्देश्य से शासन द्वारा नित नई नई योजनाओं के साथ फरमान जारी किए जा रहे हैं,  वही जिम्मेदारों की उदासीनता से योजनाओं पर ग्रहण लगता दिखाई दे रहा है। योजनाओं के लागू करने सहित पारदर्शिता के साथ क्रियान्वयन किये जाने से शायद कुपोषण से जंग पर फतह मिल सके।

प्राप्त जानकारी के मुताबिक, जनपद में करीब 68 हजार बच्चे कुपोषण से ग्रसित हैं, जिसमें अतिकुपोषित बच्चों की संख्या लगभग 17 हजार 4 सौ 66 है। इन कुपोषित बच्चों को कुपोषण से मुक्त करने की कोशिशें लगातार जारी हैं, मग़र योजनाएं जिम्मेदार की उदासीनता की भेंट चढ़ कर रह गई हैं। जिले में स्थित आंगनबाड़ी केंद्रों का हाल देखा जाए तो अधिकतर केंद्र की हालत जीर्ण शीर्ण ही हैं।

अभी हाल ही में बच्चों को कुपोषण से मुक्त किये जाने को लेकर सुपोषण योजना का शुभारंभ किया है। हालांकि, समय समय योजनाओं को लागू किया गया, पर क्या योजनाओं के लागू करने मात्र से कुपोषण बच्चों को स्वस्थ बनाया जा सकता है, या योजनाओं को पारदर्शिता के साथ क्रियान्वयन से। कही आंगनबाड़ी केन्द्र ही जर्जर है, जहां महीने क्या साल साल भर तैनात जिम्मेदार झांकने तक कि जहमत नही उठाते। ऐसे में केंद्र खोलने, योजनाएं लागू करने से कुपोषण से जंग नही जीती जा सकती, बल्कि जिम्मेदारो द्वारा अपने कर्तव्य के प्रति संवेदनशील होने की आवश्यकता है।

   उदाहरण के तौर पर विकास खण्ड उसक बाज़ार के ग्राम नागव, सोहास खास, फुलवरिया, परसपुर, मुडिला, बनजरहा सहित लोटन के भिटपरा, नेतवर, परसौना, आदि आंगनबाड़ी केंद्रों पर कोई कर्मी झांकने तक नही आते, केवल अभिलेखीय कोरम पूरा कर धन का बंदरबांट कर रहे हैं। यह तय मात्र उदाहरण हैं, जनपद के सभी आंगनबाड़ी केंद्रों का लगभग यही हाल है। बावजूद इसके जिम्मेदार केंद्र के निरीक्षण तक करना उचित नही समझते।

सूत्रों की माने तो गरमा गरम भोजन और पौष्टिक आहार को बाज़ार में कालाबाजारी कर मोटी रकम विभाग के जिम्मेदार  को पहुँचाई जाती है, ऐसे में निरीक्षण की बात करना बेईमानी होगी। ऐसे में जिम्मेदारो की उदासीनता से शासन की योजनाओं पर ग्रहण लग गया है। विभागीय सूत्रों की माने तो ब्लाक स्तर पर तैनात सीडीपीओ और डीपीओ द्वारा मोटी रकम वसूल किया जाता है।ऐसे में शासन लाख योजनाओं को लागू करे, कुपोषण की जंग से निजात मिलना मुश्किल ही नही नामुमकिन है।

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