भारत की ऐतिहासिक धरोहर अत्यंन्त ही उन्नत एवं उत्कृष्ट है

सिद्धार्थ विश्वविद्यालय कपिलवस्तु में शनिवार को ग्लोबल हेरिटेज कान्क्लेव 2022 के प्रथम अंतर्राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस के उद्धघाटन समारोह को ऑनलाइन संबोधित करते हुए आयरलैंड में भारत के राजदूत अखिलेश मिश्र ने कहा कि भारत की ऐतिहासिक धरोहर अत्यंन्त ही उन्नत एवं उत्कृष्ट है |

सिद्धार्थनगर। सिद्धार्थ विश्वविद्यालय कपिलवस्तु में शनिवार को ग्लोबल हेरिटेज कान्क्लेव 2022 के प्रथम अंतर्राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस के उद्धघाटन समारोह को ऑनलाइन संबोधित करते हुए आयरलैंड में भारत के राजदूत अखिलेश मिश्र ने कहा कि भारत की ऐतिहासिक धरोहर अत्यंन्त ही उन्नत एवं उत्कृष्ट है ।

भारत की इस गौरवशाली ऐतिहासिक समाज जीवन में सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास निहित है। भारतीय संस्कृति और ऐतिहासिक धरोहर को निश्चित रूप से संरक्षित एवं सुरक्षित कर उसे और व्यवस्थित बनाने का प्रयास प्रत्येक शोधकर्ता के लिए महत्वपूर्ण होना चाहिए।

भारत की यही ऐतिहासिक परंपरा की कड़ी ही है कि आज आजादी का अमृत महोत्सव माध्यम से केवल उन लाखों स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों को श्रंद्धांजलि दी जा रही है अपितु स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों के आदर्शों की माध्यम से भारत की ज्ञान परंपरा में चेतना विकसित करने की रही है।

राजदूत अखिलेश मिश्र ने कहा कि सिद्धार्थनगर की यह भूमि पुरातात्विक दृष्टि से न केवल उन्नत रही है बल्कि भविष्य में दर्शनीय स्थल के रूप में विकसित करने की अभूतपूर्व संभावनाएं निहित है।

कार्यक्रम को आरा विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ताबस प्रो डी पी तिवारी ने कहा कि गौतम बुद्ध भारतीय इतिहास दर्शन के पर्याय माने जा सकते हैं ।नेपाल से लेकर मगध तक के लंबे क्षेत्र में महात्मा गौतम बुध्द से सम्बन्धित मिलते रहे हैं। इसमें बिहार उत्तर प्रदेश विशेष रुप से श्रावस्ती सिद्धार्थ नगर गोरखपुर का स्थान उलेखनीय है।

यहां पर उस समय की अनेक विकसित बस्तियां रही है। नालंदा विश्वविद्यालय के साथ ही इस प्रकार के अन्य महत्वपूर्ण विश्वविद्यालय उस समय थे । जहां भारत के महान विद्वान ऐसे ही शिक्षा संस्थानों की उपज रहे है। इन क्षेत्रों में काम करने की बहुत आवश्यकता है।

कार्यक्रम में विशेष वक्त के रूप में दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो राजवंत राव ने कहा भारत की ऐतिहासिक परंपरा सांस्कृतिक उत्तराधिकार है। धार्मिक राजनीतिक और सांस्कृतिक चेतना के साथ शब्दों में परिवर्तन होता रहा है। बुद्ध के समय में उत्तराधिकार का अर्थ दाय से लिया जाता है।

पुरातत्व की सही सही समझ पैदा करने के लिए ऐतिहासिक ज्ञान और विरासत को जानने में साहित्य की बड़ी भूमिका होती है। बुद्धकालीन स्तूप को बनाने वाले परिवार आज भी उसी परंपरा मैं अपना जीवन यापन कर रहे हैं। उसे समितियां क्षेत्र सिद्धार्थ नगर के इस क्षेत्र में लगभग 56 अभिलेख इन क्षेत्रों से प्राप्त हुए।

इस पर शोध कार्य किया जाना महत्वपूर्ण है। चतुरआश्रम व्यवस्था भी इसी पूर्वी क्षेत्र की देन है। यहां पर वैचारिक सहिष्णुता के अपार उदाहरण हम सबके सामने इतिहास में उपलब्ध है।

कार्यक्रम में विशेष अतिथि के रुप में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के आचार्य प्रो दीनबंधु पांडेय ने कहा कि बौद्ध धर्म का ज्ञान और उसमें शोध करने के अनंत अवसर आज बहुत आवश्यक है। परंपरा का बहुत प्रभाव मानव समाज स्पष्ट दिखाई पड़ती है । भारत में सिद्ध योग की परंपरा बहुत ही उन्नत रही है ।

अध्ययन की अनेक दिशाएं हो सकती हैं। महात्मा गौतम बुद्ध की ऐतिहासिकता में कपिलवस्तु का बहुत ही महत्त्व है। महात्मा गौतम बुद्ध की सबसे महत्वपूर्ण प्राप्ति उनके महापरिनिर्वाण है । कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सिद्धार्थ विश्वविद्यालय कपिलवस्तु कुलपति प्रो हरि बहादुर श्रीवास्तव ने कहा कि सिद्धार्थ विश्वविद्यालय का मूल मंत्र अत्त दीपो भव जो भारत की ज्ञान परंपरा के केंद्र में निहित रही है।

सिद्धार्थ विश्वविद्यालय भारत के ऐतिहासिक और पर्यटन की दृष्टि से शोध कार्य को बढ़ावा देने के लिए आगे बढ़कर कार्य करेगा। महात्मा गौतम बुद्ध से संबंधित यह क्षेत्र एक प्रकार से गौतम बुद्ध अध्ययन की प्रयोगशाला है। इसी कारण से सिद्धार्थ विद्यालय ने उत्तर प्रदेश शासन को बुद्ध स्टडी सेंटर से संबंधित पत्रावली भेजी है।

ताकि महात्मा गौतम बुद्ध से संबंधित सोध कार्यों को सफलतापूर्वक संचालित किया जा सके। भारत का इतिहास सदियों पुराना है। भारत के प्राचीन समाज जीवन में समृद्ध वैज्ञानिक दृष्टिकोण देखा और समझा जा सकता है ।समाज जीवन के छोटे से छोटे व्यवहार में वैज्ञानिक दृष्टि परिलक्षित होती है। लोग जीवन में किसी भी प्रकार की गणना उसका उदाहरण है।

इससे पूर्व कार्यक्रम में विषय प्रस्तावना हेरिटेज सोसाइटी पटना के डायरेक्टर प्रोफ़ेसर अनंत आशुतोष द्विवेदी ने किया । आभार ज्ञापन सिद्धार्थ विद्यालय कपिलवस्तु के अधिष्ठाता कला संकाय प्रो हरीश कुमार शर्मा ने तथा संचलन कार्यक्रम की संयोजक डॉ नीता यादव ने किया। इस अवसर पर दीपक बाबू प्रो अलका राय डॉ प्रज्ञेस डर सन्तोष शरदेंदु त्रिपाठी अरविंद रावत डॉक्टर देव वक्स सिंह डॉक्टर कपिल गुप्ता मनीषा बाजपेई बंदना गुप्ता अखिलेश दिक्षित विमल कुमार डॉ नीरज सहित अनेक शिक्षक और विद्यार्थी उपस्थित रहें।

समारोह के बाद पांच समानांतर सत्र में किए गए। जिसमें वियतनाम कंबोडिया सहिद देश विदेश के अनेक प्रतिभागी ऑनलाइन माध्यम से शोध पत्र का वाचन किए। कल संगोष्ठी के दूसरे दिन प्रात ऑफ लाइन ऑन माध्यम से संचालित किए जाएंगे। इसके उपरांत समापन समारोह संपन्न होगा। समापन समारोह में नेपाल स्थित लुंबनी बुद्ध विश्वविद्यालय कुलपति मुख्य अतिथि रूप में उपस्थित रहेंगे।

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