भारत और नेपाल की घनिष्ठता में बुद्ध दर्शन का है महत्त्वपूर्ण योगदान
जे पी गुप्ता
सिद्धार्थनगर। जनकपुर भगवान राम और मां सीता से संबंधित अत्यंत ऐतिहासिक स्थल होने के कारण भारत-नेपाल संबंधों को प्रगाढ़ करने में महत्वपूर्ण है। नेपाली भाषा और संस्कृत भाषा का अनुपम एकात्म भाव है। आज भी नेपाल में जब कोई आध्यात्मिक अनुष्ठान होता है तो भारत खंडे जम्मू दीपे की बात होती है। इससे हम सहज अनुमान भारत और नेपाल के ऐतिहासिक धरोहरों के बारे में लगा सकते हैं।
उक्त बातें सिद्धार्थ विश्वविद्यालय कपिलवस्तु में आयोजित हेरिटेज कांक्लेव में अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन समापन समारोह को संबोधित करते हुए लुंबिनी बौद्ध विश्वविद्यालय नेपाल के कुलपति प्रोफ़ेसर हृदय रत्न बज्रचार्य ने कही।
उन्होंने कहा कि भारत और नेपाल की घनिष्ठता में महात्मा गौतम बुद्ध का दर्शन और उनके जीवन से जुड़ी हुई ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक स्थलों का महत्व अत्यंत ही महत्वपूर्ण है। 2000 वर्ष पूर्व पहले नालंदा और तक्षशिला में देश-दुनिया के विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने, शोध करने के लिए आते थे। निश्चित रूप से ऐसे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों को न केवल सजोने की जरूरत है अपितु उसे और समझने और विस्तार करने की जरूरत है।
सम्राट अशोक की नेपाल यात्रा भी भारत नेपाल संबंध और उसके ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक सम्बन्ध को उजागर करता है। अशोक स्तंभ में ऐसी तमाम ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत लिपि बंद है। भारत नेपाल ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को आत्मसात करने के लिए आवश्यक है कि बौद्ध दर्शन और बौद्ध शिक्षा से संबंधित ग्रंथों का अध्ययन किया जाना चाहिए।
उस पर और अधिक शोध की आवश्यकता है। विशेष रुप से कपिलवस्तु का यह परिक्षेत्र जो नेपाल से लगा हुआ लुंबिनी के मध्य है। वृहत्तर स्तर पर संबंध स्थापित करने की आवश्यकता है। इस तरह के गोष्ठियों से न केवल ऐतिहासिक धरोहरों को संजोने में काम सम्भव हो सकेगा बल्कि अन्य सांस्कृतिक और पुरातात्विक तथ्यों को स्पष्ट करने में सहायता प्रदान करेगा।
उन्होंने महात्मा गौतम बुद्ध की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में अहिंसा और करुणा का उल्लेख करते हुए विश्व शांति की कामना की और कहा कि जिस तरह से आज दुनिया तृतीय विश्व युद्ध की तरफ बढ़ रही है। ऐसे में भगवान बुद्ध का संदेश पूरे विश्व के लिए एक उपदेश है। जिसको आत्मसात कर हम शांति के साथ विकास की यात्रा पर बढ़ सकते हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सिद्धार्थ विश्वविद्यालय कपिलवस्तु के कुलपति प्रो हरि बहादुर श्रीवास्तव ने कहा कि भारत दुनिया के उन गिने-चुने देशों में है जिसकी बहुत ही गहरी और विकसित ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक विरासत रही है। भगवान गौतम बुद्ध और उनके जीवन से जुड़ी हुई अनेक स्मृतियां और उपदेश कपिलवस्तु परिक्षेत्र देश दुनिया के लिए आकर्षण का केंद्र बना रहा है।
सिद्धार्थ विश्वविद्यालय पुरातात्विक दृष्टि से और सांस्कृतिक विरासत की दृष्टि से इस परिक्षेत्र में शोध के नए अवसरों को ढूंढने का प्रयास करेगा । भारत नेपाल कैसे सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को सहेजने की दृष्टि से दोनों देशों के विद्यार्थी और शिक्षक एक दूसरे को ज्ञान बांट सके। इसके लिए जल्द ही लुंबिनी बौद्ध विश्वविद्यालय के साथ समझौते पत्र पर हस्ताक्षर कर कार्य प्रारंभ किया जाएगा।
कार्यक्रम में विशेष अतिथि के रुप में नॉर्थ ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी शिलांग के कुलपति प्रोफेसर प्रभा शंकर ने बताया कि भारत का ऐतिहासिक अतीत वह बहुत ही गौरवशाली रहा है। संपूर्ण भारत हेरिटेज की दृष्टि से दुनिया के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। आज भौगोलिकरण के युग में भारत की सांस्कृतिक धरोहरों का महत्व और भी बढ़ गया है।
भारत के इन सांस्कृतिक धरोहरों के मूल में सामाजिक एकता के तत्व सन्निहित है। जिस तरह से भारत वर्ष में समाज में विविधता विद्यमान है उसको जोड़ने में और राष्ट्रीय एकता को बनाने में इन पुरातात्विक एवं सांस्कृतिक विरासत की अपनी एक अलग समृद्धि है।
कार्यक्रम को सीसीआरटी मिनिस्ट्री आफ कल्चर भारत सरकार के प्रवचन हेमलता एस मोहन ने भी संबोधित किया तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉक्टर बुद्ध रश्मि मनी जो पूर्व वाइस चांसलर नेशनल म्यूजियम इंस्टीट्यूट नई दिल्ली के हैं उन्होंने भी संबोधित किया ।कार्यक्रम में आभार ज्ञापन सिद्धार्थ विश्वविद्यालय के वाणिज्य संकाय के अधिष्ठाता प्रोफेसर दीपक बाबू ने किया। जबकि स्वागत भाषण कार्यक्रम संयोजक डॉ नीता यादव ने किया।
इस अवसर पर लुंबिनी विश्वविद्यालय के आचार्य तथा सिद्धार्थ विश्वविद्यालय के बौद्ध अध्ययन केंद्र के कार्यकारी अध्यक्ष प्रोफेसर सुशील, तिवारी अधिष्ठाता कला संकाय प्रोफेसर हरीश कुमार शर्मा, डॉ. अविनाश प्रताप सिंह, डॉक्टर जय सिंह यादव, डॉक्टर सरिता सिंह, डॉ रेनू त्रिपाठी, डॉ सुनीता त्रिपाठी, डॉ आभा द्विवेदी, डॉक्टर हरेंद्र शर्मा, डॉ यशवंत यादव,
डॉ शरदेंदु त्रिपाठी, डॉ.बन्दना गुप्ता, डॉ सत्येंद्र दुबे, डॉ हृदय कांत पांडेय, डॉ अमित साहनी, डॉक्टर देवबक्श सिंह, डॉ प्रज्ञेस त्रिपाठी, डॉ.संतोष सिंह, डॉक्टर अरविंद रावत, डॉ विमल वर्मा, डॉ नीरज सिंह सहित अनेक शोधार्थी और शिक्षक उपस्थित रहे। समापन समारोह से पूर्व ऑनलाइन मोड और ऑफलाइन मोड में शोधार्थियों ने पांच समानांतर सत्रों में अपना शोधपत्र प्रस्तुत किया।