हिंदी भाषा और साहित्य भारत के लिए है मूल्यवान

kapilvastupost reporter

सिद्धार्थनगर। सिद्धार्थ विश्वविद्यालय कपिलवस्तु सिद्धार्थनगर में शनिवार को अखिल भारतीय साहित्य परिषद एवं उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान लखनऊ के संयुक्त तत्वाधान में सिद्धार्थ विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा आयोजित आजादी का अमृत महोत्सव और हिंदी भाषा एवं साहित्य विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं प्रशिक्षण वर्ग आयोजन किया गया। प्रथम दिन शनिवार को संगोष्ठी के उद्घाटन अवसर पर मुख्य अतिथि प्रोफेसर ऋषि कुमार मिश्र ने कहा कि हिंदी भाषा और साहित्य हमेशा से भारत के लिए मूल्यवान रहे हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व और उसके पश्चात हिंदी भाषा और साहित्य की अवधारणा पर वर्तमान समय में चिंतन आवश्यक है, क्योंकि समाज की उन्नति के लिए हिंदी भाषा और साहित्य की भूमिका भारतवर्ष में हमेशा से महत्वपूर्ण रही है। स्वतंत्र साहित्य की रचना के लिए स्वाधीन वातावरण होना अपरिहार्य है। वैचारिक स्वतंत्रता न केवल सृजनशील साहित्य निर्मित करने में महत्वपूर्ण होती है अपितु सामाजिक राजनीतिक आर्थिक स्वतंत्रता का मार्ग भी प्रशस्त करती है। विशिष्ट अतिथि उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री एवं शिक्षाविद डॉ सतीश द्विवेदी ने कहा कि भारत में परंपरा और संस्कृति के मध्य अत्यंत घनिष्ट संबंध रहा है। यह संबंध निरंतर प्रवाह मान रहने से राष्ट्र भी निरंतर प्रगति की ओर बढ़ता रहता है। परंपरा और संस्कृति ही राष्ट्र निर्माण के वास्तविक वाहक है, हम देख सकते हैं कि संस्कृत पालि प्राकृत अपभ्रंश से हिंदी की विकास यात्रा को इसी संदर्भ में समझने की आवश्यकता है। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए अंतरराष्ट्रीय बौद्ध केंद्र के कार्याधिकारी अधिकारी डॉ. सुशील तिवारी ने कहा कि साहित्य निरंतर समन्वय की भूमिका का आधार तैयार करता है। यही समन्वय राष्ट्र की सकारात्मक 19 उन्नति सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण रहा है, साहित्य के माध्यम से स्व की पहचान और आत्मबोध पैदा करने की अवधारणा विकसित होती है। राष्ट्र के विकास के लिए यह ईश्वर की पहचान और आप वोट की भावना विशेष महत्वपूर्ण मानी जाती है। हिंदी भाषा और साहित्य की भूमिका इस दृष्टि से हमेशा से महत्वपूर्ण रही है। विशेष रूप से वर्तमान में इसकी प्रासंगिकता और भी महत्वपूर्ण है विषय प्रस्ताव की रखते हुए संगोष्ठी के समन्वयक एवं सिद्धार्थ विश्वविद्यालय हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष हरीश कुमार शर्मा ने कहा कि आजादी का अमृत महोत्सव आज समाज सहित शिक्षण संस्थाओं में उल्लास और उत्साह का वातावरण सृजित करने में महत्वपूर्ण है अंग्रेजी दासता से मुक्ति में हिंदी भाषा और साहित्य का अतुलनीय योगदान रहा है स्वतंत्र आंदोलन को गति देने और देश पर मर मिटने का जुनून पैदा करने में हिंदी साहित्य के उडान से हम सब परिचित हैं। हिंदी साहित्य और भाषा का विकास हम इस रूप में देख सकते हैं कि आज संपूर्ण भारतवर्ष में हिंदी बोली जा रही है, पढ़ी जा रही है, यहां तक की वैश्विक स्तर पर भी हिंदी भाषा और साहित्य को प्रमुख स्थान प्राप्त हो रहा है। कार्यक्रम में गोरखपुर विश्वविद्यालय के आचार्य अखिल भारतीय साहित्य परिषद के गोरक्ष प्रांत के महामंत्री प्रो. प्रत्युष दुबे ने कहा कि हमारी संस्कृति और हमारी परंपरा ही हमारा मूल है यही हमारी पहचान को निरंतर और अस्थाई स्वरूप प्रदान करने में विशेष महत्व रखता है या संस्कृति और परंपरा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी और वर्तमान समाज में निरंतर आत्माओं का बोध कराने में हिंदी भाषा और साहित्य का विशेष योगदान है। इसलिए ऐसे विषयों पर निरंतर विचार विमर्श चिंतन और विशेष रूप से शिक्षण संस्थाओं में इस प्रकार के आयोजन की विशेष भूमिका होती है। कार्यक्रम में दीनदयाल पोर्ट के निदेशक मंजू मिश्रा सहित विश्वविद्यालय के शिक्षक एवं अनेक प्रांतों से आए हुए शोधार्थी तथा विषय विशेषज्ञ सम्मिलित हुए उद्घाटन समारोह के उपरांत विशेष तकनीकी सत्र में अखिल भारतीय साहित्य परिषद गोरक्षप्रान्त के अध्यक्ष डॉक्टर रणवीर सिंह सहित अन्य विषय विशेषज्ञों ने अपना विचार प्रस्तुत किया।

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