अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष : महिलाओं के सम्मान से एक बेहतर राष्ट्र निर्माण संभव – डॉ0 सीमा श्रीवास्तव
निज़ाम अंसारी
शोहरतगढ़।
क्या सिर्फ़ एक दिन ही हम महिलाओं का दिन है? चाहे वह राष्ट्रीय हो या अंतरराष्ट्रीय, हम महिलाओं का प्रत्येक दिन होना चाहिए। हमें हर दिन इज्जत, शोहरत मिलने का अधिकार है।
जिस दिन जिस देश की महिलाएं जागरूक हुईं, उनमें स्वावलंबन की भावना, अधिकार लेने की प्रवृत्ति जागृत हुई, वो कुछ कर गुजरने की हिम्मत रखते हुए आगे आयी, वहीं दिन, वही तारीख उस देश के लिए महिला दिवस के रूप मे घोषित हो गई। अंततः सर्वसम्मति से 8 मार्च अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस बना।
हमारे देश में 13 फरवरी को, सरोजिनी नायडू के जन्म दिन के उपलक्ष्य में, महिला दिवस मनाया जाता है।
ऐसे ही समय समय पर, पर्दे के पीछे रह कर भी, संसाधन- सुविधा न होते हुए भी, बहुत ही परिश्रम से हमारे देश की महिलाएं आगे बढ़ी एवं अपनी पहचान बनाई। जैसे अहिल्याबाई, बछेंद्री पाल, लक्ष्मी बाई, जीजाबाई, गार्गी इत्यादि।
महिलाओं ने जरूरत के हिसाब से कलम भी चलाई और तलवारे भी। और आज की महिलाएं भी हर जगह चाहे वह देश की सीमा हो या हवाई जहाज चाहे वह विज्ञान हो या खेलकूद हर जगह अपना परचम लहरा रही है। और ऐसे ही महिलाओं के लिए साल के 365 दिन अर्थ वान होते हैं।
औरत तो खुद आदिशक्ति है खुद ही सृष्टि की निर्मात्री है। जिस पुरुष से कंधे से कंधा मिलाकर बराबरी कर चलने की बात करती है वह तो खुद उस पुरुष की जन्म दात्री है। जिस पुरुष का अस्तित्व निर्माण ही महिला से हुआ है उससे बराबरी कैसी।
परंतु आज भी समाज का एक वर्ग ऐसा है जो महिलाओं को खिलने नहीं देता आगे बढ़ने नहीं देता उन पर किंतु परंतु लेकिन और कई सवाल उठाता है। और यही वर्ग आगे बढ़ने की चाह रखने वाले वर्ग के चिंता का विषय भी बनता है।
तो आज 8 मार्च को ही संकल्प दिवस मानकर पहला कदम बढ़ाने आगे बढ़ने अपने अधिकार को पाने के लिए कुछ भी करने का संकल्प लेते हैं।
जिस प्रकार एक गाड़ी के चलने के लिए उसके पहियों को बराबर होने की जरूरत होती है उसी प्रकार इस समाज के चलने के लिए भी हर क्षेत्र में महिलाओं पुरुषों एवं अन्य वर्गों के समान अधिकार होने की जरूरत है। तो मेरा सभी महिलाओं से निवेदन है कि अपने अधिकारों को समझे और उन्हें पाने के लिए हमेशा प्रयासरत रहे।