साउथ का पॉयजन न्यायपालिका में बढ़ते राजनीतिक दखल से न्याय की अवधारणा एक पार्टी वर्कर के समान

विगत कई हफ्तों से सुप्रीम कोर्ट कोलोजियम और दक्षिण पंथी पार्टी बी जे पी के बीच तकरार बढ़ी है ।
सत्ता पक्ष के नेता कोलोजियम सिस्टम का लगातार विरोध कर रहे हैं। केंद्र सरकार चाहती है कि भारत के न्यायपालिका सहित तमाम स्वतंत्र इकाइयों पर बी जे पी और आर एस एस के लोगों का कब्जा हो जाए और वह सरकार का हर गलत सही फैसलों को न्यायपालिका और स्वतंत्र इकाइयां उसको आगे बढ़ाए।


ताजा विवाद मद्रास हाई कोर्ट में भारतीय जनता पार्टी की महिला मोर्चा की नेता व वकील लक्ष्मण चन्द विक्टोरिया गौरी की मुख्य न्यायधीश के पद आसीन करने को लेकर है।

वकीलों ने किया विरोध
एडवोकेट लक्ष्मण चंद्रा विक्टोरिया गौरी को मद्रास हाईकोर्ट में जज बनाए जाने की सिफारिश पर बवाल मच गया है। हाई कोर्ट के कुछ बार वकीलों ने गौरी की सिफारिश का विरोध किया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को संबोधित अलग- अलग लेटर्स में अधिवक्ताओं के समूह ने कॉल नियकट की सिफारिश पर यह कहते हुए आपत्ति जताई कि उनकी नियुक्ति न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर करेगी। गौरी खुद को बीजेपी महिला मोर्चा की राष्ट्रीय महासचिव बताती हैं। इन पत्रों पर 22 वकीलों ने हस्ताक्षर किए हैं। इनमें वरिष्ठ अधिवक्ता एनजीआर प्रसाद, आर वैगई, अन्ना मैथ्यू, डी नागासैला और सुधा रामलिंगम भी शामिल हैं।

पत्रों में कहा गया कि हम इन्हें मुश्किल वक्त में पूर्वाभास की भावना के साथ लिख रहे हैं। न्यायपालिका को कार्यपालिका की ओर से अभूतपूर्व और अनुचित आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। हम आशंकित हैं कि इस तरह की नियुक्तियां न्यायपालिका की स्वतंत्रता को करन करने प्रशस्त कर सकती हैं। इस समय यह

संस्थान को अपनी प्रशासनिक कार्रवाई से कमजोर होने से बचाया जाए। दरअसल, जनवरी में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने हाई कोर्ट की जज के रूप में 49 वर्षीय लक्ष्मण चंद्रा विक्टोरिया गौरी के नाम की सिफारिश की थी। अगर सरकार मंजूरी देती है, तो उनका कार्यकाल 13 साल का होगा। वह सुप्रीम कोर्ट में प्रमोशन के लिए भी पात्र होंगी।

कोलेजियम के प्रस्ताव पर  इंटेलिजेंस ब्यूरो की प्रतिकूल रिपोर्ट

गौरी के अलावा सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने न्यायाधीश के रुप में चार अन्य वकीलों – वेंकटचारी लक्ष्मीनारायणन, पिल्लर्डपक्कम बहुकुटुम्बी बालाजी, रामास्वामी नीलकंदन और कंघधासामी कुलंदिवलु रामकृष्णन – के नामों को भी जज के रुप में मंजूरी दी है.

शीर्ष अदालत की कॉलेजिंयम ने एडवोकेट आर. जॉन सत्यन की नियुक्ति मद्रास हाईकोर्ट के जज के रुप में करने संबंधी अपनी 6 फरवरी 2022 की सिफारिश को भी दोहराया, इसके बावजूद भी कि इंटेलिजेंस ब्यूरो ने उनके सोशल मीडिया पोस्टों पर आपत्ति जताई थी, जिनमें एक पोस्ट में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना वाला एक लेख शेयर किया था,

सत्यन अकेले वकील नहीं हैं, जिनके खिलाफ ईटेलिंजेंस ब्यूरो (आईबी) ने प्रतिकूल हनपुट दिए हैं. कथित तौर पर आईबी की रिपोर्ट के कारण एक अन्य वकील अब्दुल हमीद का नाम कॉलेजिंयम द्वारा मद्रास हाईकोर्ट के जज के रुप में दोहराया नहीं गया है. हमीद अतीत में पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी. चिंदंबरम की पत्नी नलिंनी चिदंबरम के साथ काम कर चुके हैं।

बताते चलें की भारतीय जनता पार्टी और आर एस एस का शीर्ष नेतृत्व एक तानाशाही शासन व्यवस्था के तहत अपने को हमेशा हमेशा ही इस देश पर कब्जे को लेकर एक अलग ढांचे और शासन मॉडल को लागू करना चाहती है ।

उसकी इस व्यवस्था और भारतीय संविधान की मूल धारणा समान कानून और न्याय व्यवस्था , सामाजिक भाई चारा , शिक्षा स्वास्थ्य और रोजगार में बिना भेद भाव की अवधारणा में विरोधाभास है । 

भारतीय जनता पार्टी और आर एस एस को क्या आकाशवाणी प्राप्त हुई है या ईश्वरीय दस्तावेज कि भारत जैसे लोकतांत्रिक मूल्य वाले देश पर वह सदा सदा के लिए विराजमान होंगे। यह देश और उनका ईश्वर अब इनके द्वारा जाना जाएगा। जैसा कि वर्तमान समय में बी जे पी ही धर्म हो गई है। कोई अन्य दल और नीतियों को पसंद करने वाला हिंदू समाज का व्यक्ति हिंदू और सनातनी नहीं माना जाता है ।

इस देश के लोकतांत्रिक मूल्यों को देश के संविधान को ताकत के दम पर कुचलकर कर अपने आप को इस देश पर शासन करने के अनुकूल बनाना बहुत ही खतरनाक होगा।

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