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kapilvastupost reporter
सिद्धार्थनगर। सिद्धार्थ विश्वविद्यालय कपिलवस्तु सिद्धार्थनगर के दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ के तत्वाधान में स्वामी विवेकानंद एवं पंडित दीनदयाल उपाध्याय के राष्ट्रवाद में अंतर संबंध विषय पर आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए नई दिल्ली से पधारे प्रख्यात चिंतक एवं विचारक डॉ शिवकुमार ने कहा कि समाज की सेवा ही वास्तव में राष्ट्रीयता है।
स्वामी विवेकानंद और दीन दयाल उपाध्याय दोनों भारत की राष्ट्रीयता के आधार स्तंभ है। आधुनिक भारत में राष्ट्रीयता और राष्ट्रवाद के प्रति स्थापना में दोनों की महती भूमिका है। जिस राष्ट्रीयता का आधार स्तंभ विवेकानंद ने अपने चिंतन में रखा था दीनदयाल उपाध्याय ने उसे अपने दर्शन के माध्यम से पूर्णता प्रदान की। दीनदयाल उपाध्याय के चिंतन में समग्र राष्ट्र की अवधारणा निहित है।
दीनदयाल उपाध्याय जी का मानना था कि राष्ट्र केवल भूमि का टुकड़ा नहीं है और ना ही यह केवल भौगोलिक रूप से संगठित देश है। राष्ट्र की अपनी संस्कृति और संस्कार होते हैं। भारत की राष्ट्रीयता दुनिया के अन्य देशों से अलग है। राष्ट्रीयता का समग्र चिंतन दीनदयाल उपाध्याय और स्वामी विवेकानंद दोनों का एक ही है।
डॉ शिवकुमार ने कहा व्यक्ति के माध्यम से राष्ट्र और राष्ट्र के माध्यम से व्यक्ति का निर्माण होता है। शरीर से आत्मा तक की यात्रा के जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह यात्रा जितनी सार्थक होगी उतना ही राष्ट्र उतना ही व्यापक होगा। परमात्मा की प्राप्ति में राष्ट्र की भूमिका महत्वपूर्ण है। दीनदयाल उपाध्याय का अंत्योदय का विचार भारतीय जीवन दर्शन है जो पीड़ित वंचित की सेवा रहता है। अंतोदय का दर्शन उनके चिंतन का मूल तत्व है।
विशिष्ट अतिथि के रुप में उपस्थित राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं भौतिक वैज्ञानिक प्रोफेसर रामअचल सिंह ने कहा कि मनुष्य की जीवन यात्रा बहुत लंबी होती है। इस लंबे जीवन यात्रा में और मोक्ष की प्राप्ति के लिए राष्ट्र की महत्ता बहुत है। मनुष्य होना ही अपने आप में गर्व की बात है इसलिए मनुष्य के रूप में उसके दायित्व निर्वहन भी किसी भी राष्ट्र में महत्वपूर्ण है।
व्यक्ति को राष्ट्र सेवा के लिए जीना चाहिए। मानव जीवन का उद्देश्य सिर्फ भौतिक सुख की प्राप्ति नहीं है अपितु भावात्मक और आत्मिक सुख भी उसके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। जो राष्ट्र सेवा के माध्यम से मानव सेवा के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। उद्देश्य हमेशा बड़ा और पवित्र होना चाहिए ।राष्ट्र आत्म सुख प्राप्ति का एक महत्वपूर्ण अधिष्ठान है।
कार्यक्रम को दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्राणी विज्ञान के पूर्व अध्यक्ष एवं प्रख्यात पर्यावरणविद प्रोफेसर दिनेश कुमार सिंह ने भी संबोधित किया। उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि व्यक्ति के उत्थान के लिए व्यक्ति के स्वयं का आचरण का बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है।
अपने श्रेष्ठ आचरण के द्वारा वह जागृति निर्मित कर सकता है। जागृत चेतना ही राष्ट्र समाज को जागृत कर सकती है। जागृत चेतना के द्वारा ऊर्जा प्रवाह होता है। यही ऊर्जा प्रवाह से समाज और राष्ट्र चलता है। आत्मानुशासन पर विशेष बल दिया जाना चाहिए। इंद्रिय निग्रह से ही आत्मा का निर्माण कर सकते हैं। और यही आत्मा के रूप में प्रतिष्ठित होती है। भारत के संदर्भ में इसी पर आधारित है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर हरि बहादुर श्रीवास्तव ने किया। विषय प्रस्तावना संगोष्ठी के संयोजक प्रोफेसर मंजू द्विवेदी तथा स्वागत उद्बोधन अधिष्ठाता कला संकाय प्रवेश कुमार शर्मा, आभार ज्ञापन प्रोफेसर दीपक बाबू एवं संचालन शिवम शुक्ला ने किया इससे पूर्व पूर्वांचल में पौधारोपण एवं पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए प्रोफेसर दिनेश कुमार सिंह को विश्वविद्यालय की ओर से प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया।
प्रशस्ति पत्र का वाचन एमबीए के अध्यक्ष डॉक्टर सौरव के द्वारा किया गया। सांस्कृतिक कार्यक्रम सांस्कृतिक समिति जिसमें साकेत निवेदिता एवं विद्यालय के विद्यार्थी सम्मिलित थे किया गया समापन समारोह से पूर्व तकनीकी सत्रों का भी संचालन किया गया। जिसमें विशेष रूप से भारत अध्ययन केंद्र के बीएचयू के डॉक्टर अनूप तिवारी का शोध पत्र बहुत सराहा गया।
इसी के साथ डॉ राज श्री श्रीवास्तव एवं अन्य ने भी अपना शोध पत्र प्रस्तुत संगोष्ठी में प्रोफ़ेसर प्रकृति राय, डॉक्टर नीता यादव, डॉक्टर सुनीता त्रिपाठी, डॉ मनीष शर्मा, जसवंत यादव, मयंक कुशवाहा, डॉक्टर वंदना गुप्ता, आभा द्विवेदी सहित विश्व विद्यालय के शिक्षक विद्यार्थी शोधार्थियों प्रतिभागी उपस्थित रहे।
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