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घृणा से घृणा कभी शांत नहीं होती, प्रेम से होती है; यही सनातन सत्य है।
परमात्मा उपाध्याय की रिपोर्ट:
बुद्ध पूर्णिमा केवल एक पर्व नहीं, बल्कि यह अहिंसा, शांति, करुणा और मानवता की गूंज है, जो सदियों से युद्धों और अत्याचारों के बीच भी समरसता का मार्ग दिखाती रही है। परमात्मा उपाध्याय द्वारा प्रस्तुत यह विशेष रिपोर्ट आज के समय में और भी प्रासंगिक है, जब विश्व एक बार फिर संघर्षों से घिरा हुआ है।
कलिंग युद्ध बना बुद्ध की राह का मोड़
सम्राट अशोक, जिन्होंने कलिंग (आधुनिक ओडिशा) में हुए विनाशकारी युद्ध के बाद रक्तपात की विभीषिका देखी, उन्हें बौद्ध भिक्षु उपगुप्त के माध्यम से बौद्ध धर्म अपनाने की प्रेरणा मिली। इसके बाद अशोक ने न केवल युद्ध का रास्ता छोड़ा, बल्कि धम्म की नीति के अंतर्गत शांति, अहिंसा और मानव कल्याण के सिद्धांतों को अपना कर बौद्ध धर्म का प्रचार पूरी दुनिया में किया।
बुद्ध का धर्म – मानवता का धर्म
गौतम बुद्ध ने उस समय समाज को नया दर्शन दिया, जब वर्ग, जाति और उत्पीड़न चरम पर था। उन्होंने धर्म को सत्ता या कर्मकांड से नहीं, बल्कि मानव मूल्यों से जोड़ा। बुद्ध का धर्म अंत्यजों, शोषितों और वंचितों की आवाज बना। यही कारण है कि बुद्ध आज भी दुनिया के सबसे बड़े क्रांतिकारी विचारक माने जाते हैं।
बुद्ध के जीवन की तीन महत्वपूर्ण घटनाएं
बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण — ये तीनों ही घटनाएं वैशाख पूर्णिमा के दिन घटित हुईं।
जन्म: 563 ईसा पूर्व, लुंबिनी (वर्तमान नेपाल)
ज्ञान प्राप्ति: 528 ईसा पूर्व, बोधगया (भारत)
महापरिनिर्वाण: 483 ईसा पूर्व, कुशीनगर (उत्तर प्रदेश)
राजा से संन्यासी बनने की यात्रा
कपिलवस्तु के राजा शुद्धोदन के पुत्र सिद्धार्थ का जीवन विलासिता में बीता, परंतु वैराग्य ने उन्हें 29 वर्ष की उम्र में सत्य की खोज के लिए राजपथ छोड़ने को विवश कर दिया। गोरखपुर के पास आमी नदी के किनारे उन्होंने संन्यास लिया और वर्षों की तपस्या के बाद बोधगया में ज्ञान प्राप्त किया। वह महात्मा बुद्ध बन गए।
अशोक से लेकर वैश्विक धर्म तक
बुद्ध का संदेश इतना सशक्त था कि अशोक जैसे सम्राट भी उनके अनुयायी बन गए। बुद्ध के उपदेशों ने सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि एशिया, यूरोप और अमेरिका तक में अपना प्रभाव फैलाया। आज भी जापान, चीन, थाईलैंड, श्रीलंका, तिब्बत जैसे देशों में बौद्ध धर्म प्रमुख रूप से विद्यमान है।
बुद्ध धर्म और शोध का वैश्विक प्रभाव
विश्व के हर कोने में बुद्ध की मूर्तियाँ, उनके ध्यान की मुद्राएँ और उनके विचार खुदाई में मिलते हैं। कहा जाता है कि दुनिया की सबसे अधिक मूर्तियाँ महात्मा बुद्ध की हैं। ‘बुत परस्ती’ शब्द की उत्पत्ति भी ‘बुद्ध’ शब्द से ही मानी जाती है।
बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद बौद्ध संघ का गठन हुआ, जिसमें महिला भिक्षुणियों को भी स्थान दिया गया। बाद में संघ दो भागों में विभाजित हो गया — हीनयान और महायान, परंतु दोनों ही धारा बुद्ध के मूल दर्शन को आगे बढ़ाती हैं।
बुद्ध – युद्ध के खिलाफ एक शाश्वत संदेश
आज जब विश्व फिर संघर्षों, युद्धों और हिंसा से जूझ रहा है, तब बुद्ध का यह वाक्य सबसे अधिक प्रासंगिक हो जाता है —
“न हि वेरेण वेरानि, सम्मन्तीध कुदाचनं; अवेरेण च सम्मन्ति, एष धम्मो सनंतनो।”
(“घृणा से घृणा कभी शांत नहीं होती, प्रेम से होती है; यही सनातन सत्य है।”)
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