रेणु जी की शैक्षणिक यात्रा केपी कोइराला द्वारा नेपाल में स्थापित विद्यालय से प्रारंभ हुआ:प्रो.सुरेंद्र दुबे

“फणीश्वर नाथ रेणु और उनका साहित्य” विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न

जे पी गुप्ता

सिद्धार्थनगर।हिंदी विभाग के तत्वाधान में सिद्धार्थ विश्वविद्यालय में “फणीश्वर नाथ रेणु और उनका साहित्य” विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन सत्र विश्वविद्यालय के प्रशासनिक भवन स्थित प्रस्तुतीकरण कक्ष में मञ्चस्थ अतिथियों द्वारा माॅं सरस्स्वती के दीप प्रज्ज्वलन, वन्दना एवं कुलगीत के साथ संपन्न हुआ।

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि पूर्व कुलपति प्रोफेसर सुरेंद्र दुबे ने फणीश्वर नाथ रेणु एवं उनके साहित्य विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन अवसर पर कहा कि मेरा यह सपना था कि उक्त राष्ट्रीय संगोष्ठी मेरे ही कार्यकाल में संपन्न हो किंतु 2020 से प्रस्तावित यह संगोष्ठी कोरोना संक्रमण कि अतितीव्रता के कारण स्थगित होती चली गई अंततः मेरे कार्यकाल के समाप्त होने पर आज संपन्न हुई।

फणीश्वर नाथ रेणु ने अपनी साहित्यिक रचनाओं को सन 1930 से 1936 के बीच आदर्शवादी लेखक की उपाधि को प्राप्त कर चुके थे, जिन्होंने भारतीय समाज का यथार्थ चित्रण प्रस्तुत किया था। ठेस कहानी के नायक का जो स्वाभिमान है वह भारतीय समाज के आदर्शों को प्रस्तुत करता है। उन्होंने कहा कि रेनू जी की शैक्षणिक यात्रा केपी कोइराला द्वारा नेपाल में स्थापित विद्यालय से प्रारंभ हुआ।

भारतीय चित्र भारतीय गौरव भारत माता का गान गरीबी और जहालत से जूझ रहा गांव इनकी हर कहानियों में देखने को मिलता है। ‘वट बाबा’ में फणीश्वर नाथ रेणु की लोकजीवन, संस्कृति, राष्ट्रवाद और आदर्शवाद की झलक स्पष्ट रूप से दिखाई देती। स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व भारतीय सांस्कृतिक परिवर्तन को उन्होंने अपनी रचनाओं में बिखेरा है।

उन्होंने कहा कि प्रेम का जो सबसे कोमल तंतु है वह फणीश्वर नाथ रेणु की रचनाओं में उत्कृष्ट रूप से दिखाई देता है। अपनी कला संस्कृति और सभ्यता को बचाने की इच्छा रेनू जी की रचनाओं में देखने को मिलता है। रेड के समकालीन कथा कारों में रेणुका विकल्प नहीं मिल पाया। अशिक्षा आदि को बचाने का कार्य फणीश्वर नाथ रेणु जी ने किया है।

नानी दादी की कहानियां पत्रिकाएं घरों में आज उपलब्ध नहीं है इसलिए गांव दिन-ब-दिन टूट रहे। विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर नंदकिशोर ने अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा कि रेनू जी के साथ साथ पूरी युवा पीढ़ी उस समय लिख रही थी। लेखन कला इनमें बाल्यकाल से ही झलक रही थी। 32 33 वर्ष की आयु में इन्होंने राजनीति से दूरी बना कर पुनः लेखन कार्य प्रारंभ कर दिया।

अधिष्ठाता कला संकाय प्रोफेसर हरीश कुमार शर्मा ने फणीश्वर नाथ रेणु की साहित्य और रचनाओं की आधुनिक समाज हेतु प्रासंगिकता बतलाते हुए इस संगोष्ठी में आये हुए अतिथियों और देश के समस्त राज्यों से आए हुए हिंदी भाषा के विद्वानों एवं शोधार्थियों का धन्यवाद एवं आभार प्रकट किया। सहयुक्त अचार्य डॉक्टर सत्येंद्र कुमार दुबे ने संगोष्ठी सारांश को प्रस्तुत किया। मंच संचालन सहायक आचार्य डॉक्टर जय सिंह यादव ने किया।


इसके पूर्व एक तकनीकी सत्र का आयोजन किया गया जिसमें मुख्य वक्ता डॉ अखिल कुमार मिश्र दीन दयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय गोरखपुर तथा अध्यक्षता प्रोफेसर प्रत्यूष दुबे हिंदी विभाग गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर एवं तकनीकी सत्र का संचालन डॉक्टर विश्वजीत कुमार मिश्र राजीव गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय एटानगर ने किया। लगभग 10 शोध पत्रों का ऑफलाइन एवं ऑनलाइन वाचन सदस्यों द्वारा किया गया।

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