मीडिया संचार का साधन है और परिवर्तन का वाहक भी
देश की आजादी दिवस के अवसर पर आयोजित भारतीय मीडिया एवं वर्तमान परिप्रेक्ष्य विषय पर ऑनलाइन संगोष्ठी को संबोधित करते हुए इंडियन एक्सप्रेस के सहायक संपादक हरिकिशन शर्मा ने कहा की मीडिया की दशा और दिशा को लेकर गंभीर चिंतन मनन की आवश्यकता है।
जे पी गुप्ता की विशेष रिपोर्ट
सिद्धार्थनगर। सिद्धार्थ विश्वविद्यालय कपिलवस्तु सिद्धार्थनगर में राजनीति विज्ञान विभाग के तत्वाधान में आजादी का अमृत महोत्सव वर्ष के अंतर्गत देश की आजादी दिवस के अवसर पर आयोजित भारतीय मीडिया एवं वर्तमान परिप्रेक्ष्य विषय पर ऑनलाइन संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
संगोष्ठी को संबोधित करते हुए इंडियन एक्सप्रेस के सहायक संपादक हरिकिशन शर्मा ने कहा की मीडिया की दशा और दिशा को लेकर गंभीर चिंतन मनन की आवश्यकता है। मीडिया संचार का साधन है और परिवर्तन का वाहक भी है। प्रेस की स्वतंत्रता से सीधा संबंध तथ्यपरक रिपोर्ट जो सच को ढूंढने और उसे लोगों को बताने तथा अपने काम में उसे आधार बनाने के उद्देश्य से निहित है।
कोविड काल में भारत में पत्रकारों एवं मीडिया कर्मियों ने अदम्य साहस का परिचय दिया है। समाज की सुरक्षा और महामारी से बचाव में प्रेस की भूमिका अनुकरणीय रही है। प्रेस की स्वतंत्रता के क्रम में स्वतंत्र बहुलतावादी और मुक्त प्रेस की स्थापना महत्वपूर्ण है। लेकिन हाल के वर्षों में पत्रकारों और पत्रकारिता जगत के ऊपर जिस प्रकार से शारीरिक हमलों के साथ-साथ डिजिटल मीडिएट सर्विलांस हमले बढ़े हैं, वह पत्रकारिता समाज के समक्ष एक बड़ी चुनौती है।
पत्रकारों के फोन टैपिंग और हैक की घटनाएं भी आज बड़ी है। यद्यपि की पत्रकारों का कार्य सदैव जोखिम भरा रहता है। समय के साथ यह जोखिम बढ़ता जा रहा है। तमाम रिपोर्टो में यह बात सामने आई है कि पत्रकारों की हत्याएं विगत वर्षों में बढ़ी हैं।
हरकिशन शर्मा ने कहा कि वर्तमान समय में मीडिया के सामने सबसे बड़ी चुनौती मिस इंफॉर्मेशन के वायरस का है। सोशल मीडिया के माध्यम से आज समाज का प्रत्येक व्यक्ति प्रकाशक की भूमिका में आ गया है। इसलिए मीडिया लिटरेसी बहुत आवश्यक है। पत्रकार की महत्ता और संपादक की महत्ता इस संदर्भ में और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। पत्रकार सत्य का संचालक होता है।
न्यू मीडिया के दौर में संपादक के अभाव को जन्म दिया है। जो समाज के समक्ष सत्य और विश्लेषक घटनाओं से वंचित करने वाला है। वर्तमान परिदृश्य में सोशल मीडिया में सेल्फ एडिट करने का गुण को बढ़ाने की परम आवश्यकता है। अन्यथा मिस इंफॉर्मेशन वायरस समाज को और भी मानसिक रूप से विकृत करता रहेगा। फेक न्यूज़ देश की अखंडता और एकता के लिए एक बड़ा खतरा है। हालांकि अभी तक फेक न्यूज़ को रोकने के लिए कोई प्रभावी समाधान और ठोस कार्यवाही सामने नहीं आई है।
समय-समय पर लोकसभा में और विभिन्न प्लेटफार्म पर इसको लेकर चिंता व्यक्त की गई है। वहीं भारत के पड़ोसी देश चीन में मीडिया की स्वतंत्रता अत्यंत ही सीमित है। सभी प्रकार के समाचारों पर सेंसर का कड़ा पहरा होता है। कम्युनिस्ट पार्टी से हरी झंडी मिलने के बाद ही समाज के समक्ष सूचनाएं आती हैं। स्वतंत्र पत्रकारिता स्वस्थ लोकतंत्र की सूचक है। जैसे स्वस्थ लोकतंत्र स्वच्छ पत्रकारिता के लिए अपरिहार्य है।
भारत में अभी तक मीडिया का चरित्र विविधता से भरा हुआ रहा है। हालांकि सेंसरशिप का खतरा हमेशा बना रहता है। विज्ञापन दाताओं का दबाव भी मीडिया के समक्ष एक बड़ी चुनौती है। भारतीय समाज में मीडिया के प्रति उदासीनता का भाव पत्रकारिता जगत के लिए एक बड़ा संकट है। पत्रकार और पत्रकारिता जहां समाज के प्रति अत्यंत संवेदनशील है वहीं बड़ी सीमा तक समाज मीडिया के प्रति उदासीनता देखने को मिलती है।
सरकारी बजट में बहुत सीमित मात्रा पत्रकारिता मीडिया और प्रेस के लिए निर्धारित किया गया है। समाज को आगे बढ़कर पत्रकारिता जगत को विकसित करने तथा ऊंचा उठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए अधिष्ठाता कला संकाय प्रो हरीश कुमार शर्मा ने कहा की आलोचना के प्रति समाज के सभी अवयवों को सहनशीलता और सहिष्णुता का भाव विकसित करना चाहिए।
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में देश की आजादी दिलाने में प्रेस और मीडिया की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। तमाम बार मीडिया की भूमिका बड़े से बड़े शक्तिशाली अस्त्रों से भी अधिक होती है। इसकी अनुभूति भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को जन आंदोलन बनाने में मीडिया की भूमिका के रूप में देखा जा सकता है। मीडिया के सामने यद्यपि समाज द्वारा अपेक्षित सहयोग न मिलने की रही है फिर भी समाज में मीडिया के प्रति आस्था और सम्मान का भाव निरंतर बढ़ा है।
लोगों का आज भी मीडिया के ऊपर व्यापक भरोसा है। स्वतंत्रता का अभिप्राय केवल एक व्यक्ति के स्वतंत्रता से नहीं बल्कि समूह समाज और देश के उत्थान में निहित है। इसलिए सबको अतिवाद से बचने की जरूरत है ।सामान्य तौर पर यह देखने को मिलता है कि कभी-कभी मीडिया भी इस अतिवाद का शिकार हो जाती है। और जिस तरह से टीआरपी को बढ़ाने के लिए समाचारों या घटनाओं का लगातार और तोड़मरोड़कर चैनलों पर दिखाया जाता है, उससे दर्शक का न केवल समय बर्बाद होता है उसके स्वतंत्रता एवं अभिव्यक्ति की आजादी का हनन होता है।
मीडिया को पश्चिम की अंतरराष्ट्रीय वैचारिक दबाव से मुक्त होकर कार्य करना चाहिए। मीडिया और समाज दोनों को संवेदनशील और संयमित व्यवहार एवं आचरण के द्वारा भारत को एकता और अखंडता के साथ आगे बढ़ाने में अपनी महती उपयोगिता का निर्वहन के प्रति सतत प्रयत्नशील होना अत्यंत आवश्यक है।
कार्यक्रम में विशिष्ट वक्ता के रूप में दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय राजनीति विज्ञान विभाग के सहायक आचार्य एवं सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी डॉ महेंद्र सिंह ने कहा कि आज संपूर्ण समाज ट्रांजिशन के फेस से गुजर रहा है। लोकतंत्र की गुणवत्ता और मीडिया की गुणवत्ता एक-दूसरे के पर्याय हैं। लोकतांत्रिक मूल्यों को सजाने में मीडिया एवं पत्रकारिता की भूमिका हमेशा से अहम रही है।
समाज के वंचित निर्धन गरीब और मुख्यधारा से दूर लोगों की आवाज बन कर मीडिया सामाजिक समरसता का प्रमुख स्तंभ की भूमिका में है । भारतीय मीडिया सामाजिक परिवर्तन की एक बड़ी शक्ति के रूप में भी रही है। भारत में विविध पूर्ण समाज के संकट और चुनौतियों का समाधान करने में मीडिया की लगातार सकारात्मक भूमिका अनुकरणीय है। बदल रहे सामाजिक प्रवृत्तियों के साथ मीडिया भी अपने को परिवर्तित कर रही है ।
वर्तमान समाज सूचना का संसार है। सूचना विस्फोट में न्यू मीडिया की भूमिका जो साइबर डिजिटल वर्ल्ड के रूप में जानी जा रही है वह बड़ी है। मीडिया भी बदलते हुए परिवेश और वैश्विक समाज के अनुरूप अपने को विस्तार प्रदान कर रहा है। सोशल मीडिया ने मीडिया की स्वतंत्रता को अवश्य ही मजबूत किया है। लेकिन इसके साथ-साथ उन्होंने चुनौती भी उत्पन्न की है। इसलिए कुशल प्रबंधन के द्वारा सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोका जा सकता है।
फेक न्यूज़ की चुनौती का समाधान करना अत्यंत आवश्यक है ।आज मीडिया जिस प्रकार से न्यायिक प्रक्रिया को भी प्रभावित कर रही है वह अत्यंत चिंतनीय है। सूचनाओं के साथ जिस प्रकार से बड़े पैमाने पर छेड़छाड़ किया जा रहा है उसके नाते समाज के सम्मुख तथ्य और सत्य को सही-सही प्रस्तुत करने में समस्याएं आ रही हैं। टीआरपी बटोरने की प्रवित्ति कारण रिमोट और रीजनल समस्याओं की अनदेखी एक बड़ी चुनौती के रूप में देखा जा सकता है। सत्य और तथ्यपरक घटनाओं की अपेक्षा मीडिया मनोरंजन केंद्र की इंडस्ट्री की तरफ भी बढ़ रही है।
मीडिया के सामने एक और बड़ी चुनौती साइबर संचार के कारण पाठकों को पहले से ही घटना का पता रहता है। ऐसे में विश्लेषण और शोध द्वारा घटनाओं को उल्लिखित करना महत्वपूर्ण हो जाता है। प्रिंट मीडिया के अपेक्षा डिजिटल मीडिया का प्रभाव निरंतर बढ़ता जा रहा है। जबकि पारंपरिक मीडिया की भूमिका से नकारा नहीं जा सकता। मीडिया को तटस्थ रहकर लोगों की वास्तविक समस्याओं के लिए निरंतर प्रयत्न करने चाहिए।
विशेष रूप से अंग्रेजी मीडिया विदेशी विचारधारा से प्रभावित रही है। इसलिए किसी विचारधारा के रंग में भी दिखाई पड़ती है। हम सब जानते हैं कि सरकार को नियंत्रित करने के साथ-साथ समाज की समस्याओं और समाज की एकता अखंडता को चुनौती देने वाले सभी बिंदुओं पर मीडिया को सजग रहना चाहिए। सामाजिक सौहार्द बनाने में मीडिया की भूमिका अहम है।
कार्यक्रम संयोजक अविनाश प्रताप सिंह ने बताया की प्रेस की आजादी का उद्देश्य ही मुक्त स्वतंत्र और बहुलवादी प्रेस के विकास का प्रयास था। भारत में प्रेस की स्वतंत्रता का मूलाधार भारतीय संविधान के अंतर्गत मौलिक अधिकार में उल्लिखित स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के माध्यम से प्राप्त होता है। भारतीय संविधान में विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ-साथ उस पर लगाम भी लगाई गई है।
वर्तमान समय में अधिकांश मीडिया निजी हाथों में है और बड़ी कंपनियों द्वारा नियंत्रित हो रही हैं। इसलिए मीडिया का व्यवसायिक दृष्टि बढ़ा है।इसलिए मीडिया की प्रमाणिकता और उसकी सत्य निष्ठा पर प्रश्न भी खड़े किए जा रहें हैं। आज भारत विश्व का सबसे बड़ी मीडिया बाजार बना है। मीडिया की स्वतंत्रता का कदापि यह मतलब नहीं है कि किसी भी परिस्थिति में व स्वच्छंद रहे।
मीडिया की अति सक्रियता भी लोकतंत्र के समक्ष निरंतर चुनौती पैदा कर रही है और कभी कभी घातक भी सिद्ध हो रही है। इसलिए मीडिया की स्वतंत्रता उसकी कार्यपद्धती और उसके विकास को लेकर सकारात्मक एवं संवेदनशील दृष्टि अपनाने की जरूरत है।वास्तव में मीडिया भारतीय लोकतंत्र का प्रमुख आधार स्तम्भ है।
कार्यक्रम में आभार ज्ञापन डॉ सरिता सिंह ने किया। इस अवसर पर डॉ नीता यादव, डॉ सुनीता त्रिपाठी, डॉ रेनू त्रिपाठी, डॉक्टर हृदय कांत पांडे, डॉ अरविंद रावत, डॉक्टर प्रदीप पांडे, डॉक्टर विमल वर्मा, डॉ जय सिंह यादव, डॉक्टर आभा दिवेदी, डॉ धर्मेंद्र, डॉक्टर मयंक कुशवाहा, डॉ आशीष लाल, डॉ शरदेन्दु त्रिपाठी, डॉ रविकांत, डॉ नीरज, डॉ आदित्य प्रताप सिंह, डॉ राहुल सिंह, डॉ अंबुज मिश्रा, डॉ भावना सिन्हा, डॉ मनोज भारतीय, डॉ दीपक सिंह, डॉ शैलेंद्र त्रिपाठी, डॉ सुधीर शुक्ला, सहित सिद्धार्थ विश्वविद्यालय से संबद्ध महाविद्यालयों के शिक्षक विद्यार्थी तथा दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय एवं उससे संबद्ध महाविद्यालयों के शिक्षक एवं विद्यार्थी जुड़े रहे।