गांधार कला में बुद्ध विषयक छायाचित्र प्रदर्शनी का हुआ आयोजन
जे पी गुप्ता
सिद्धार्थनगर। आजादी का अमृत महोत्सव के अंतर्गत अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय सप्ताह के अवसर पर सोमवार को राजकीय बौद्ध संग्रहालय पिपराहा सिद्धार्थनगर में गांधार कला में बुद्ध विषयक छायाचित्र प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। भारतीय संस्कृति की यह एक मूल विशेषता है कि इसमें प्रत्येक संस्कृति की धारा चाहे वह स्वदेशी हो अथवा विदेशी जो भी इसके संपर्क में आती हैं उसके मूल तत्व इसमें पूर्णतया घुलमिल जाते हैं।
प्राचीन भारत के राजनीतिक इतिहास के अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि समय-समय पर विभिन्न कारणों से विदेशी यहां आते रहे पर आज उसमें के किसी के वंशज हमारे समाज में अलग नहीं दिखते हैं यह भी सत्य है कि वे यहां से वापस लौटे भी नहीं इसका एकमात्र कारण है की अपनी सांस्कृतिक विशेषताओं के साथ उन्होंने भी हिंदू संस्कृति को अपना लिया।
इन्हीं विदेशियों में कुषाण का भी एक दल भारत आया था। कनिष्क महान इन्हीं के वंश का एक सम्राट था, जिसने बौद्ध धर्म के उत्कर्ष में अपना विशेष सहयोग प्रदान किया और इसके साथ ही भारतीय कला में उसने एक नए अध्याय का श्रीगणेश किया जो गांधार प्रदेश में विशेष रूप से विकसित हुई इसी से इस काल की कला को कुषाण कालीन कला के नाम के साथ गांधार कला के नाम से मुख्य रूप से जाना जाता है।
इसमें एक नई कला शैली का उदय हुआ, जिसमें बुद्ध की प्रतिमाएं यूनान और रोम की मिश्रित शैली में बनाई गई। बुद्ध के बाल यूनानी शैली में आ गए। गांधार कला का प्रभाव मथुरा में भी पहुंचा वह मूलतः देसी कला का केंद्र था। प्रदर्शनी में गांधार शैली पर आधारित कलाकृतियों के छाया चित्रों का प्रदर्शन किया गया है।
प्रदर्शित चित्रों में भगवान बुद्ध की विविध मुद्राओं यथा धर्म चक्र प्रवर्तन, अपलाल नाग का शमन, महाभिनिष्क्रमण, उपदेश देते हुए, भूमि स्पर्श मुद्रा, ध्यानस्थ मुद्रा आदि का प्रदर्शन किया गया है। प्रदर्शनी के भ्रमण से जन सामान्य को गंधार कला की प्रमुख विशेषताओं एवं कलाकृतियों के विषय में अत्यंत सहज रूप से जानकारी प्राप्त हो सकेगी प्रदर्शनी दिनांक 16 मई 2022 से 20 मई 2022 तक तक दर्शकों के अवलोकनार्थ खुली रहेगी |
प्रदर्शनी का उद्घाटन धम्म प्रिय ने किया भारतीय महाबोधि विहार के संस्थापक एवं भन्ते धम्म प्रिय ने अपने उद्बबोधन मैं कहा कि प्रदर्शनियां ज्ञान के प्रसार का सशक्त माध्यम होती हैं संग्रहालय द्वारा लगाई गई प्रदर्शनी में गांधार कलाकृतियों की प्राप्ति के स्थलों मे तख्तेबाही, हुड्डा जमालगढी , तक्षशिला , चारसड्डा,होती मर्दन, शाहबाजगढ़ी, स्वात घाटी एवं पेशावर आदि स्थानों के कलाकृतियों का छायाचित्रों के माध्यम से प्रदर्शनी कर निश्चित रूप से जन सामान्य को लाभान्वित करने की दिशा में एक सार्थक प्रयास है।
संग्रहालय के संग्रहालयध्यक्ष डॉ0 तृप्ति राय ने मुख्य अतिथि एवं आगंतुकों का स्वागत करते हुए कहा कि आज संपूर्ण विश्व में बौद्ध धर्म के अहिंसा अस्तये अपरिग्रह जैसे सिद्धांतों को अपनाने की आवश्यकता महसूस की जा रही है उक्त प्रदर्शनी के उद्घाटन केअवसर पर लगभग 150 छात्र-छात्राओं के साथ ही सुनील चौधरी, प्रमोद चौधरी, जितेंद्र पांडे, धर्मेंद्र चौधरी, योगेंद्र शुक्ला, विनय सहेली, कैलाश साहनी, प्रदीप चौधरी, उपेंद्र चौधरी, मोहम्मद आसिफ, अब्दुल वाहिद, ओम प्रकाश पांडे, हिमांशु प्रजापति, रामसकल यादव, मीना पाठक, खुशबू शुक्ला, साधना चौधरी, ममता श्रीवास्तव आदि गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति रही।