भाषा और साहित्य देश और समाज का दर्पण होता: प्रो. सुरेंद्र दुबे

kapilvastupost reporter

सिद्धार्थनगर। सिद्धार्थ विश्वविद्यालय कपिलवस्तु में अखिल भारतीय साहित्य परिषद एवं उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान लखनऊ के संयुक्त तत्वाधान में सिद्धार्थ विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं प्रशिक्षण वर्ग के समापन समारोह को संबोधित करते हुए सिद्धार्थ विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं प्रतिष्ठित साहित्यकार प्रोफेसर सुरेंद्र दुबे ने कहा की भाषा और साहित्य देश और समाज का दर्पण होता है। राष्ट्र को जीवंत बनाने में साहित्य और भाषा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। आजादी के समय इसकी महत्ता को लोगों ने भली-भांति महसूस भी किया था। भारतीय स्वतंत्र आंदोलन को जागृत करने में भाषा और साहित्य ने रक्त संचार का काम किया। उन्होंने कहा कि अखिल भारतीय साहित्य परिषद केवल हिंदी भाषा ही नहीं अपितु अन्य भाषाओं के साहित्य को परिष्कृत एवं उत्थान में निरंतर संलग्न है। प्रोफेसर सुरेंद्र दुबे ने कहा कि भाषा अपने मूल स्वरूप में रहे तो राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बन जाती है, लेकिन वह जब संगठन के साथ जुड़ जाती है तो उसका अपना मूल स्वभाव और चरित्र नष्ट हो जाता है। क्योंकि यह संकुचित अर्थों में प्रयोग होने लगती है। लेकिन अखिल भारतीय साहित्य परिषद में भाषाई संकुचन के स्थान पर भाषा के व्यापक अर्थ को ग्रहण किया गया है।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के आचार्य डॉक्टर विमलेश मिश्र ने कहा कि भाषा साहित्य और संस्कृति की पहचान होती है। भाषा साहित्य और संस्कृति का स्वतंत्र स्वरूप राष्ट्र की प्रगति और समाज के चेतना के लिए आवश्यक है। भाषा राष्ट्र और समाज की सभ्यता और संस्कृति तथा समृद्धि का आधार स्वरूप है। भाषा राष्ट्र की शक्ति भी है और राष्ट्र का स्वरूप भी है। इस अवसर पर अखिल भारतीय साहित्य परिषद के प्रांत सह सचिव डॉ पवन पुत्र बादल ने कहा कि भारत में वैचारिक गुलामी और उपनिवेशवादी प्रवृत्ति से बाहर निकलने में साहित्य और भाषा का हमेशा से सर्वाधिक योगदान रहा है। साहित्य के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना और राष्ट्र गौरव के मूल स्वरूप की अभिव्यक्ति का प्रसार और विस्तार दोनों महत्वपूर्ण हो जाता है ।

साहित्य ही वह अवसर प्रदान करता है जिसके माध्यम से राष्ट्र के गौरव पूर्ण इतिहास और चेतना की महत्ता को इंगित कर राष्ट्रीय एकता की स्थापना करने में सहजता होती है। भारत में आजादी के इस अमृत महोत्सव का मूल उद्देश्य में से एक गुमनाम अनंत स्वतंत्र वीरों की पहचान करना और उन्हें इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम स्थान प्रदान करना है। इसमें साहित्य और भाषा की विशेष भूमिका है। गुलामी और दासता की प्रवृति से लिखे हुए साहित्य कभी भी राष्ट्र की वास्तविक अभिव्यक्त नहीं करते हैं। कार्यक्रम में आभार ज्ञापन कार्यक्रम संयोजक डॉ हरीश कुमार शर्मा द्वारा किया गया। संचालन डॉक्टर जय सिंह यादव ने किया और पूरे कार्यक्रम की रिपोर्ट प्रस्तुत डॉक्टर राम पांडे ने किया। इस अवसर पर प्रोफेसर प्रत्यूष दुबे सहित शोधार्थी विषय विशेषज्ञ एवं विश्वविद्यालय के शिक्षक कर्मचारी, अखिल भारतीय साहित्य परिषद के पदाधिकारीगण एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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