अब पहुंचने लगीं हैं विद्यालयों में निःशुल्क पाठ्य पुस्तकें

परिषदीय विद्यालयों में किताब की कमी से बच्चों और अभिभावकों सहित गुरु जी लोगों को पढ़ाने समझाने में दिक्कत आती थी और नए बच्चों को अपने सीनियर से किताब मांगनी पड़ती थी पर अब यह कमी दूर होने को है।


गुरु जी की कलम से

परिषदीय विद्यालयों में निःशुल्क पाठ्य पुस्तकों को पहुंचाने का सिलसिला शुरू हो गया है। हालांकि अभी किताबें पूरी नहीं आई हैं। फिर भी जिन किताबों को पहुंचाया जा रहा है वे किताबें, शासन स्तर से जिले पर आए हुए कई महीने बीत गए, ठेकेदार की उदासीनता और विलम्ब की स्थिति को देखते हुए तमाम विद्यालयों के अध्यापक, स्वयं बीआरसी से किताबों को अपने वाहन और खर्चे से लेकर आए। शेष विद्यालयों में ठेकेदार द्वारा अपने वाहन से किताबों को पहुंचाने का काम शुरू कर दिया गया है।
प्रति वर्ष विभाग द्वारा निःशुल्क पाठ्य पुस्तकों को बीआरसी स्तर से विद्यालय तक पहुंचाने का ठेका होता है। किताब बीआरसी पर आए हुए महीना गुजर गया। किताबों को पहुंचाने में ठेकेदार की उदासीनता को देखते हुए तमाम अध्यापक छात्रहित में स्वयं बीआरसी से जाकर किताबों को लेकर आए।
किताबों को पहुंचाने में हो रहे विलम्ब को देखते हुए पूर्व माध्यमिक शिक्षक संघ के जिला महामंत्री कलीमुल्लाह ने जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी से बात की, तो उन्होंने सम्बन्धित पटल सहायक मिथलेश सिंह को तत्काल ठेकेदार से बात कर किताबों को हर हाल में विद्यालयों तक पहुंचाने का निर्देश दिया।
वार्ता के बाद विभाग हरकत में आया तो आज विकास क्षेत्र बर्डपुर के पूर्व माध्यमिक विद्यालय देवरा चौधरी मे आधी अधूरी ही सही परन्तु किताबें पहुंचाई गईं। जो किताबें आईं हैं उनमें कक्षा 7 की एक भी विषय नही आई है। कक्षा 6 की अक्षरा, इंग्लिश रीडर, सीखें गणित, महान व्यक्तित्व, संस्कृत निधि, कृषि विज्ञान, गृह शिल्प, खेल और स्वास्थ्य सहित मात्र 8 विषय की किताबें हैं। प्रज्ञा, कृषि विज्ञान, संस्कृत भारती, गृह दर्शिका, हमारा इतिहास और नागरिक जीवन, हमारे आदर्श सहित कक्षा 8 की कुल मात्र 06 विषय की ही किताबे विद्यालयों पर पहुंचाई जा रही है। शेष आने पर पुनः पहुंचाने का वादा किया जा रहा हैं।
आधे सत्र की समाप्ति पर आधी अधूरी किताबों के मिलने से शिक्षक काफी परेशान हैं। बाद में कक्षा 7 और अन्य कक्षा की शेष किताबें यदि जल्दी नही आई तो शिक्षकों को अभिवावकों के कोप भाजन का शिकार होने का अंदेशा सता रहा हैं। सूत्रों की मानें तो हर वर्ष किताबें बच्चों को आधी अधूरी ही मिली, कभी एक साथ पूरी किताबें नही आई हैं। इसलिए शिक्षकों के अंदर किताबों को लेकर संशय होना स्वाभाविक है।

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