भैयादूज पर बहनों ने की मंगल कामना,पूजे गए कायस्थों के आराध्य देव चित्रगुप्त
देवेन्द्र श्रीवास्तव उसका बाजार
क्षेत्र में गुरुवार को भाई दूज पर्व पर बहन अपने भाई को तिलक कर , भोजन पकवान खिलाकर उनकी लंबी उम्र की कामना की है। भाई अपनी बहन की रक्षा का वादा किये व उन्हें यथा शक्ति तोहफा भी दिया हैं। क्षेत्र के सेखुईया में आंशिका सिंह अपने भाई हरिप्रीत सिंह को , मोगलहा में दीप्ति मिश्रा अपने भाइयों , अनुराग, अभिषेक, अनन्त को तिलक लगाकर, पकवान मिष्ठान खिलाकर दीर्घायु की कामना की है। इसीतरह अन्य स्थानों पर भाई दूज पर्व मनाया गया है।भाई दूज को मनाने के पीछे धार्मिक मान्यता है कि यमराज ने भी इसी तिथि को अपनी बहन यमुना से आशीर्वाद लिया था।
भाइयों द्वारा बहनों के हाथों खाने के बाद यथासंभव उपहार दिया जाता है और बहनों के हाथों से भोजन ग्रहण किया जाता है। इस पर्व की प्रचलित कथा इसप्रकार है। भगवान सूर्य नारायण की पत्नी का नाम छाया था। उनकी कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ था। यमुना यमराज से बड़ा स्नेह करती थी। वह उससे बराबर निवेदन करती कि इष्ट मित्रों सहित उसके घर आकर भोजन करो। अपने कार्य में व्यस्त यमराज बात को टालते रहे। कार्तिक शुक्ला का दिन आया। यमुना ने उस दिन फिर यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण देकर, उसे अपने घर आने के लिए वचनबद्ध कर लिया।यमराज ने सोचा कि मैं तो प्राणों को हरने वाला हूं। मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता। बहन जिस सद्भावना से मुझे बुला रही है, उसका पालन करना मेरा धर्म है।
बहन के घर आते समय यमराज ने नरक निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। यमराज को अपने घर आया देखकर यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने स्नान कर पूजन करके व्यंजन परोसकर भोजन कराया। यमुना द्वारा किए गए आतिथ्य से यमराज ने प्रसन्न होकर बहन को वर मांगने का आदेश दिया।यमुना ने कहा कि भइया आप प्रति वर्ष इसी दिन मेरे घर आया करो। मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई को आदर सत्कार करके टीका करें, उसे तुम्हारा भय न रहे। यमराज ने तथास्तु कहकर यमुना को अमूल्य वस्त्राभूषण देकर यमलोक की राह की। इसी दिन से इस पर्व की परम्परा शुरू हुई।
गौरतलब है कि यम द्वितीया के दिन ही कायस्थ कुल से ताल्लुक रखने वाले परिवारों में परम्परानुसार पाप पुण्य का लेखा जोखा रखने वाले भगवान चित्रगुप्त की
विधिवत पूजा अर्चना कर विराम पड़ी अपनी कलम को पुनः चलाया गया।ज्ञातव्य हो कि कायस्थ कुल रीति के अनुसार अमावस्या की सायं दीपक जलाने के बाद से इस कुल के लोग अपनी लेखनी को पूजन स्थान पर द्वितीया तिथि तक विराम दे देते हैं।
इसी कड़ी में भगवान चित्रगुप्त की पूजा अर्चना के साथ दीपावली के दिन से विराम पड़ी
अपनी लेखनी को कायस्थों ने उठाकर ॐ श्री चित्र गुप्ताय नमः तथा मर्यादा
पुरुषोत्तम श्रीराम का स्मरण करते हुए अपने आराध्य से मंगल कामनाओं को पूर्ण करने की प्रार्थना करते हुए पुनः लेखनी का प्रयोग शुरू किया।