सिद्धार्थनगर है अपना सौ स्वर्ग से सुंदर प्यारा, इसकी नदियों में हरदम बहती है प्रेम की धारा ।
जो रक्त बहा हो गद्दारी में, वो रक्त नहीं हो सकता है,
देश में हिंसा करने वाला, देशभक्त नहीं हो सकता है।
kapilvastupost reporter
सिद्धार्थनगर, बाल दिवस की पूर्व संध्या पर लोहिया कला भवन में आयोजित अखिल भारतीय कविसम्मेलन एवं मुशायरे में देश के मशहूर कवियों एवं शायरों ने देशप्रेम, भाईचारा श्रृंगार हास्य एवं वीर रस से ओतप्रोत रचनाएँ प्रस्तुत कर श्रोताओं की जबरदस्त तालियां बटोरीं।
कार्यक्रम का शुभारंभ प्रख्यात कवयित्री सलोनी उपाध्याय की सरस्वती वंदना से हुआ। तत्पश्चात अरूणेश विश्वकर्मा ने देशप्रेम और वीर रस की रचनाओं से वाहवाही लूटी। बाराबंकी से आए कवि संजय सांवरा की पंक्तियाँ “यूँ बसाएं चलो एक दुनिया जहाँ, आदमी बस रहे आदमी की तरह” श्रोताओं द्वारा खूब सराही गयीं।
वहीं सिद्धार्थ विश्वविद्यालय के ख्यातिलब्ध कवि प्रोफेसर डॉ शरदेन्दु त्रिपाठी की कविता “जो रक्त बहा हो गद्दारी में, वो रक्त नहीं हो सकता है,
देश में हिंसा करने वाला, देशभक्त नहीं हो सकता है।” ने पूरे माहौल को युवा बना कर झकझोर दिया और श्रोताओं ने तालियों की और वाह वाही की बौछार लगा दी। पुलिस विभाग में कार्यरत युवा कवि दिलीप कुमार द्विवेदी की धारदार पंक्तियों- क्यों नफरतों की हदें बढ़ाने लगे हैं लोग, जलते हुए चिराग बुझाने लगे हैं लोग, सुनकर श्रोताओं की तालियां देर तकगूंजती रहीं। गोरखपुर के मशहूर शायर वसीम मजहर ने इश्क और मोहब्बत में पगी रचनाओं से युवाओं को खूब गुदगुदाया। शायर शादाब शब्बीरी के शेर- जुर्म समझा है जिसे अहले ख़िरद ने शादाब, हाँ वही जुर्म सरे आम किया है मैंने, ने श्रोताओं को बहुत कुछ सोचने पर मजबूर किया।
देश की मशहूर शायरा गुले सबा फतेहपुरी ने युवाओं की फरमाइश पर एक से बढ़कर एक रचनाएँ खूबसूरत तरन्नुम में पेश कर मुशायरे को नयी ऊँचाइयों तक पहुंचाया।
प्रख्यात कवि डाक्टर ब्रह्मदेव शास्त्री पंकज ने बाल दिवस पर भूखा बचपन पूछ रहा था रोटी से, आखिर कब भरपेट मिलेगा भोजन मेरी आंतों को, सुनाकर बाल मजदूरी की सामाजिक समस्या की ओर ध्यान आकर्षित कराया। अपनी बारी में नियाज़ कपिलवस्तुवी ने बचपन को समर्पित रचना- नया पाने की चाहत में पुराना भूल न जाएं, बड़े हो जाएं तो बचपन सुहाना भूल न जाएं, बड़ा ओहदा, बड़ा सा घर बड़ी गाड़ी भी हो लेकिन, कभी औकात थी बस चार आना भूल न जाएं, सुनाकर श्रोताओं की जबरदस्त तालियां बटोरीं।
कविसम्मेलन/ मुशायरे का प्रमुख आकर्षण रहे मशहूर शायर अज्म शाकिरी ने कई खूबसूरत गजलें पेश कर कार्यक्रम को यादगार बना दिया। श्रोताओं की फरमाइश पर अज्म शाकिरी द्वारा पेश एक शेर- जब हम अपने घर आए, आंख में आंसू भर आए। सुनकर श्रोता काफी जज्बाती हो गये। प्रख्यात कवि रामप्रकाश गौतम ने मधुर स्वर में काव्यपाठ कर अपनी अलग छाप छोड़ी। कविसम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए मशहूर शायर डाक्टर जावेद कमाल एवं संचालन युवा कवि पंकज सिद्धार्थ ने बहुत ही सुंदर रचनाएँ प्रस्तुत कर श्रोताओं को प्रेम और भाईचारे का सशक्त संदेश दिया।
नूर कासमी, जावेद सरवर, अदनान कमर, रियाज कासिद आदि की रचनाएँ भी बहुत सराही गयीं। देर रात तक चले कार्यक्रम में डाक्टर अरूण प्रजापति, संतोष श्रीवास्तव, राजेश शर्मा, जय प्रकाश गुप्ता, डॉ रवि प्रकाश राणाप्रताप सिंह, नितेश पांडेय, डाक्टर एमपी गोस्वामी, मेराज अहमद, अमित जायसवाल आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।