सनई चौराहे से बेलहिया-हुसैनगंज तक दर्जनों अस्पताल और पैथोलॉजी सेंटर अवैध रूप से संचालित
फर्जी अस्पताल आमजन के स्वास्थ्य और जीवन के लिए खतरा हैं। इन पर अगर समय रहते कड़ी कार्रवाई न की गई तो किसी बड़े जनहानि की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता।
kapilvastupost
सिद्धार्थनगर। जिला मुख्यालय इन दिनों बीमार स्वास्थ्य व्यवस्था की जीवंत तस्वीर बन गया है। सनई चौराहे से लेकर बेलहिया और हुसैनगंज तक स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर एक काला साम्राज्य पनप चुका है। दर्जनों फर्जी अस्पताल और बिना लाइसेंस के चल रहे पैथोलॉजी सेंटर न केवल कानून का मजाक उड़ा रहे हैं, बल्कि आमजन की जिंदगी से खुला खिलवाड़ कर रहे हैं।
जनपद के हुसैनगंज क्षेत्र अंतर्गत पोखरभिटवा में स्थित आयुष हॉस्पिटल एंड फैक्चर क्लिनिक पर गंभीर अनियमितताओं का पर्दाफाश हुआ है। सामने आए वीडियो और दस्तावेज़ों से यह साफ हो गया है कि इस अस्पताल में बिना किसी मेडिकल डिग्री वाले व्यक्ति द्वारा खुलेआम मरीजों का इलाज किया जा रहा है।
मामले में सबसे चौंकाने वाला नाम है — संतोष वर्मा उर्फ राहुल वर्मा, जो कि कथित रूप से OPD में खुद को डॉक्टर बताकर मरीजों को दवाएं लिखता है, इलाज करता है और इंजेक्शन तक लगाता है। 8 जून को भर्ती हुए मरीज आकाश के परिजनों ने इस फर्जीवाड़े का पर्दाफाश करते हुए वीडियो रिकॉर्डिंग और OPD पर्चा जिलाधिकारी को सौंपा है।
स्थानीय लोगों और स्वास्थ्य सूत्रों की मानें तो मुख्यालय क्षेत्र में लगभग 50 से अधिक छोटे-बड़े नर्सिंग होम, क्लीनिक और जांच केंद्र संचालित हैं। इनमें से आधे से अधिक बिना किसी वैध पंजीकरण या योग्य चिकित्सकों के चल रहे हैं। इलाज के नाम पर मरीजों से मोटी रकम वसूली जाती है और जब स्थितियां बिगड़ती हैं, तो उन्हें जिला अस्पताल या गोरखपुर रेफर कर दिया जाता है।
मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ सरकारी चुप्पी पर उठते सवाल
फर्जी अस्पतालों की बढ़ती संख्या पर स्वास्थ्य विभाग की भूमिका सवालों के घेरे में है। सीएमओ कार्यालय द्वारा बीते छह महीनों में मात्र 5 नोटिस जारी किए गए, जबकि आधा दर्जन अस्पतालों को खानापूर्ति के तौर पर सील किया गया। ज़मीनी हकीकत यह है कि स्वास्थ्य विभाग की टीमें जांच के नाम पर सिर्फ वही अस्पताल देखती हैं, जिनकी लिखित शिकायत हो।
हाल ही में जब इस विषय पर एसीएमओ से सवाल किया गया, तो उन्होंने इतना ही कहा, जांच की जा रही है, जल्द ही ठोस कार्रवाई होगी। और आने वाले समय में केवल योग्य डॉक्टर ही प्रैक्टिस कर सकेंगे |
सवालों के घेरे में प्रशासन
स्वास्थ्य विभाग के निरीक्षण और प्रशासनिक सक्रियता को लेकर कई गंभीर प्रश्न खड़े हो रहे हैं:
नियमित निरीक्षण क्यों नहीं हो रहा?
अवैध हॉस्पिटलों की सूची सार्वजनिक क्यों नहीं की गई?
जिन पर कार्रवाई हुई, उन पर FIR क्यों दर्ज नहीं हुई?
बताते चलें कि सिद्धार्थनगर जिला मुख्यालय पर फैला यह काला कारोबार तब तक फलता-फूलता रहेगा, जब तक शासन-प्रशासन अपनी आंखें मूंदे रहेगा। जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की निष्क्रियता आने वाले दिनों में किसी बड़े हादसे की ज़मीन तैयार कर रही है।
अब बड़ा सवाल यह है कि आखिर इलाज के नाम पर चल रहे इस ‘मौत के खेल’ को रोकने की जिम्मेदारी कौन लेगा?