विश्व तम्बाकू निषेध दिवस के अवसर पर सिद्धार्थ विश्वविद्यालय में आयोजित हुई ऑनलाइन संगोष्ठी

जे पी गुप्ता

सिद्धार्थनगर। सिद्धार्थ विश्वविद्यालय कपिलवस्तु सिद्धार्थनगर में जन्तु विज्ञान विभाग द्वारा मंगलवार को विश्व तम्बाकू निषेध दिवस के अवसर पर एक ऑनलाइन संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी विश्वविद्यालय के
कुलपति प्रो0 एच. बी. श्रीवास्तव के निर्देश में संपन्न हुई, तथा इसका मार्गदर्शन प्रो0 प्रकृति राय ने किया। इस वर्ष विश्व तम्बाकू निषेध दिवस का विषय था पर्यावरण संरक्षण, इस अवसर पर विषय विशेषज्ञों द्वारा इस विषय पर प्रकाश डाला गया। विशेषज्ञों के अनुसार तम्बाकू न केवल उपभोग करने वाले को प्रत्यक्ष नुकसान पहुँचाता है, बल्कि यह देश की अर्थव्यवस्था, पर्यावरण, महिला स्वास्थ्य व बाल श्रम पर कहीं ज्यादा प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
इस संगोष्ठी का आयोजन जंतु विज्ञान विभाग के डॉ0 आशीष श्रीवास्तव तथा डॉ0 विनीता रावत द्वारा किया गया। आयोजन के प्रारम्भ में संजय गाधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एसजीपीजीआई) लखनऊ के डॉ0 आलोक कुमार ने तम्बाकू के उत्पादन, उपभोग व इससे होने वाले नुकसान के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की। डॉ0 आलोक के अनुसार, तम्बाकू का उपभोग न केवल व्यक्ति को तम्बाकू जनित रोगों से प्रभावित करता है बल्कि वे तमाम जटिल बीमारियों के प्रति अधिक संवदनशील हो जाते हैं, अर्थात ऐसे लोग कोविड, हार्ट अटैक आदि जैसी बीमारियों के चपेट में आसानी से आ जाते हैं।
तत्पश्चात वाराणसी कैंटोमेंट जनरल हॉस्पिटल के सीनियर दंत चिकित्सक डॉ0 जितेन्द्र शर्मा ने तम्बाकू से स्वास्थ्य पर होने वाले प्रतिकूल प्रभावों व विभिन्न प्रकार के कैंसर के बारे में जानकारी प्रदान की। डॉ0 शर्मा के अनुसार तंबाकू से लगभग 20 से अधिक प्रकार के कैंसर होते हैं और इससे हर साल पूरे विश्व में प्रत्यक्ष रूप से लगभग 80 लाख लोगों की मौत होती है। जो लोग धूम्रपान नहीं करते हैं वे लोग भी धूम्रपान करने वाले लोगों से प्रभावित होते हैं तथा इस प्रकार लगभग 12 लाख लोग तम्बाकू की चपेट में आ जाते हैं।
एमआईटी कॉलेज ऑफ फार्मेसी, मुरादाबाद के निदेशक प्रो0 शुभ्रांशु बी0 पांडा कार्यक्रम के तीसरे वक्ता थे। उन्होंने तम्बाकू के उद्योग व तम्बाकू उत्पादन से होने वाली हानियों पर चर्चा की। प्रो0 पांडा के अनुसार, सिर्फ दिवस मनाने से या कानून मौजूद होने से इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता जब तक कि इसके उपभोक्ता इसके उपभोग को हतोत्साहित नहीं करते।

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