ग्राम पंचायतों के टेंडर में भारी खेल, सचिवों की मनमानी से उजागर हो रहा बड़ा घोटाला चहेते अखबारों को बेचे जा रहे टेंडर, बीडीओ समेत जिम्मेदारों की चुप्पी संदिग्ध

जिन अख़बारों के नाम ब्रांड पर टेंडर दिया गया है यदि टेंडर उन अख़बारों में नहीं छपे तो जिम्मेदार कौन होगा | 

 

गुरु जी की कलम से बढ़नी, सिद्धार्थनगर।

विकासखंड बढ़नी की ग्राम पंचायतों में टेंडर प्रक्रिया पूरी तरह से मज़ाक बन चुकी है। टेंडर प्रकाशन के नाम पर सचिवों द्वारा चहेते और नाम मात्र के प्रसार वाले अखबारों को टेंडर बेचने का खेल जोरों पर है। हालत यह है कि कई पत्रकार जो स्थानीय नहीं हैं, केवल पीडीएफ फॉर्मेट में अखबार लेकर घूमते हैं और उन्हीं में टेंडर छपवा दिए जाते हैं, ताकि खानापूर्ति हो जाए और मनपसंद ठेकेदारों को काम मिल सके।

मुख्यालय पर टेंडर की खबर के लिए दिनभर दौड़ते दर्जनों पत्रकार देखे जा सकते हैं, लेकिन टेंडर किसे दिया गया, कहां छापा गया—यह जानकारी सिर्फ टेंडर देने और छापने वाले के पास ही होती है।

सूत्र बताते हैं कि सचिवों की आपसी खींचतान और कमीशनबाजी के चलते अब तक कई टेंडर प्रक्रिया लटकी हुई है। कुछ सचिव बीडीओ, कुछ एडीओ पंचायत और कुछ अपने चहेते “साहबों” के कहने पर टेंडर की बैठकें टालते जा रहे हैं। कभी कहा जाता है कि सूची बन रही है, तो कभी किसी सचिव के आने का इंतजार होता है।

प्रदेश शासन द्वारा ग्राम पंचायतों में एक लाख रुपये से अधिक के कार्यों के लिए निविदा निकालने का स्पष्ट आदेश है, पर बढ़नी में यह आदेश कागजों तक ही सीमित रह गया है।

प्रथम श्रेणी ईंट, सरिया, सीमेंट, मोरंग, बालू, पेंट जैसी निर्माण सामग्री के लिए हर साल लाखों रुपये की निविदा आमंत्रित की जाती है, लेकिन इन निविदाओं को स्थानीय और प्रसारित अखबारों में छपवाने के बजाय, गैर-प्रसारित और मनमर्जी के अखबारों में छपवाकर टेंडर प्रक्रिया को बंद कमरे में पूरा कर लिया जाता है।

एक स्थानीय ठेकेदार ने बताया, मैं लगातार यहां बिकने वाले सभी अखबारों को देख रहा हूं, लेकिन अब तक किसी में भी टेंडर नहीं मिला। पहले सबको जानकारी मिलती थी, अब सब कुछ छिपाया जा रहा है। यह पूरी प्रक्रिया ही आपत्तिजनक बन चुकी है।

सूत्रों की मानें तो 77 ग्राम पंचायतों में से अधिकांश के टेंडर उसी अखबार में छपवाए जा रहे हैं जिसकी प्रसार संख्या नाम मात्र की है और जो बढ़नी क्षेत्र में उपलब्ध ही नहीं है। यानी टेंडर का मकसद पारदर्शिता के बजाय ‘प्रायोजित बंदरबांट’ बन गया है।

बीडीओ की भूमिका पर भी उठ रहे सवाल
पूरे मामले में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या बीडीओ इस खेल से अनजान हैं? क्या उन्हें नहीं पता कि किन अखबारों में टेंडर छप रहे हैं और किनमें नहीं? अगर पता है तो चुप्पी क्यों?
स्थानीय लोगों और ठेकेदारों ने इस पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है और दोषी सचिवों व अधिकारियों पर कठोर कार्रवाई की मांग उठाई है।

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