प्रचंड के हाथ में नेपाल की कमान , 136 सीटें लाने के बावजूद नेपाली कांग्रेस गठबंधन की सरकार नहीं

निजाम जिलानी

नेपाल के आम चुनाव में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था नेपाल की नई सरकार बनाने के आखिरी दिन का समय सीमा दिया गया था तमाम राजनीतिक खींचतान के बाद पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड की अगुवाई में दलों की बैठक हुई जिसमें शाम 4 बजे यह बताया गया कि प्रचंड नेपाल के अगले प्रधानमंत्री होंगे।

जिस बात का नेपाली कांग्रेस को डर था वही हुआ 136 सीटें लाने के बावजूद नेपाली कांग्रेस गठबंधन की सरकार नहीं बन पाई और न बन पाए शेर बहादुर देउबा नेपाल के पीएम, क्योंकि गठबंधन की ही एक पार्टी सीपीएन-माओवादी जिसकी कमान पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड के हाथों थी उसने अपना समर्थन के.पी ओली की CPN-UML को ढाई साल सत्ता चलाने के फार्मूले पर सहमती दोनों ही नेताओं ने बना लिया।

एक डील भी हुई शुरुआती ढाई साल तक प्रचंड प्रधानमंत्री रहेंगे अगला ढाई साल ओली की पार्टी सत्ता संभालेगी।

2008 में जब वह पहली बार नेपाल की सत्ता पर काबिज हुए तो उस वक्त उन्होंने भारत विरोधी रुख अपनाते हुए लगातार चीन के साथ संबंधों को मजबूत किया। उन्होंने स्थापित परम्परा को तोड़ते हुए बीजिंग ओलिंपिक के बहाने सबसे पहले चीन की यात्रा की।

उन्होंने 1950 की भारत-नेपाल शांति संधि में बदलाव के लिए आवाज उठाया और मधेश के उग्र आंदोलनों को भी भारत का आवाज बताया है।
ऐसे में सवाल ये है सत्ता पाने के बाद प्रचंड और ओली अपने नीतियाँ और भारत के संबंधों को कितना परवान चढ़ाते है।

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