सिद्धार्थनगर/बढ़नी।
भारत-नेपाल सीमा पर स्थित प्रमुख बॉर्डर जैसे बहराइच का रुपईडीहा, सिद्धार्थनगर का बढ़नी, अलीगढ़वा और ककरहवा बॉर्डर आजकल केवल सीमाई आवाजाही का रास्ता ही नहीं रहे, बल्कि नेपाल में फैले कसीनो और नशे के जाल में फंसे भारतीय युवाओं की बर्बादी के रास्ते बन गए हैं।
नेपाल की सीमा में प्रवेश करते ही 15-20 किलोमीटर के दायरे में दर्जनों आलीशान कसीनो स्थापित हैं, जो मुख्यतः भारतीय ग्राहकों को ही लुभाते हैं। इन कसीनों में कार्यरत युवतियाँ परियों जैसे वेशभूषा में, अर्धनग्न अवस्था में, शराब परोसते हुए ग्राहकों को रिझाने का काम करती हैं। इनके व्यवहार, हाव-भाव और महंगे मेकअप से भ्रमित होकर भारतीय युवा अपने होश खो बैठते हैं।
नोटों की सीमा हटी, बढ़ा कैसीनो का आकर्षण
पहले नेपाल में ₹25,000 से अधिक भारतीय मुद्रा ले जाना प्रतिबंधित था, लेकिन अब लगभग ₹4 लाख तक की छूट मिल चुकी है, जिससे अब लोग भारी भरकम रकम लेकर कसीनो में जाते हैं और वहीं सारा पैसा हारकर लौटते हैं।
कई मामलों में तो कसीनो संचालकों द्वारा भारत में लग्जरी गाड़ियाँ भेजी जाती हैं, जो खास ग्राहकों को बॉर्डर से उठाकर सीधे कसीनो तक पहुंचाती हैं।
भारतीय युवाओं को ही क्यों मिलती है एंट्री?
चौंकाने वाली बात यह है कि नेपाल के नागरिकों को इन कसीनों में प्रवेश की अनुमति नहीं है। कसीनो केवल भारतीयों के लिए खुले हैं और उनका टारगेट सीधे भारतीय युवा होते हैं, जिनमें छात्र, व्यापारी, यहां तक कि शिक्षक और सरकारी कर्मचारी तक शामिल पाए गए हैं।
कसीनो की दलाली में सक्रिय गिरोह और वाहन चालक
कसीनो के लिए दलाली करने वाले गिरोह भारत-नेपाल सीमा पर तैनात रहते हैं। वे ग्राहकों को आकर्षक वादे करके कसीनो तक पहुंचाते हैं और कमीशन पाते हैं। ये लोग चार पहिया गाड़ियों के साथ बॉर्डर के पास हर समय तैयार रहते हैं।
सीमा पर नशीले पदार्थों का खुला कारोबार
नेपाल के कृष्णनगर से सटा भारत का बढ़नी कस्बा अब मादक पदार्थों के कारोबार का गढ़ बन चुका है। यहां स्मैक, चरस, गांजा, अफीम जैसे नशे खुलेआम बिकते हैं।
नगर पंचायत क्षेत्र में कुछ जगहें नशीली पदार्थों के विक्रेताओं की अघोषित दुकानें बन चुकी हैं। सूत्रों के अनुसार, यहां के कुछ नशा कारोबारी बाहरी हैं जिन्होंने हाल ही में आलीशान मकान भी बना लिए हैं।
हर सुबह लगती है नशेड़ियों की भीड़
प्राइवेट बस स्टैंड, स्टेशन के सामने की गली, मधवानगर और ब्लॉक रोड जैसे इलाकों में स्मैक बेचने वालों का जमावड़ा रहता है। 200 से 300 रुपये में बिकने वाली पुड़िया के लिए युवा अपनी जमा पूंजी गंवा रहे हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि अपराधों का बड़ा कारण नशा ही है। अधिकांश आपराधिक घटनाएं नशे की हालत में होती हैं। युवा नशे की लत में पड़कर चोरी, हत्या और आत्महत्या जैसी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। कई बार तो नशे के लिए पैसे न मिलने पर अपने ही माता-पिता की हत्या की घटनाएं सामने आई हैं।
बच्चों में बढ़ रही नशे की प्रवृत्ति
छोटे बच्चों में भी अब इनहेलेंट्स, सिरप, व्हाइटनर और अवैध नशीली दवाओं का प्रयोग बढ़ रहा है। यह समाज और देश के भविष्य के लिए बेहद घातक है।
युवाओं के इस खराब लत लगने से पहले अभिभावकों को चाहिए कि बच्चों के सामने संयमित व्यवहार करें।
बच्चों को मैदानों में खेलने, अच्छे संस्कार देने और मोबाइल, सोशल मीडिया की लत से दूर रखने की आवश्यकता है।
सरकारी तंत्र समय समय पर सीमा क्षेत्र में कसीनों और मादक पदार्थों की रोकथाम के लिए सख्त अभियान भी चलाता है। जो नाकाफी है। शिक्षा, स्वास्थ्य और समाजसेवी संस्थाओं को मिलकर युवाओं को जागरूक करना होगा।
बताते चलें कि भारत-नेपाल सीमा पर नशा, जुआ और कसीनो का जाल तेजी से फैलता जा रहा है। यह न केवल युवाओं का आर्थिक और मानसिक शोषण कर रहा है, बल्कि समाज में अपराध, आत्महत्या और सामाजिक विघटन को भी बढ़ावा दे रहा है। अब समय आ गया है कि सरकार, समाज और अभिभावक मिलकर इस खतरे के खिलाफ एकजुट होकर कदम उठाएं।