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Niyamtullah khan
सिद्धार्थनगर देश में मौजूदा राजनीतिक हालात लगातार बदलते दिखाई नजर आ रहे हैं।अभी हाल ही में देश में पास हुए वक्फ अमेंडमेंट बिल लगातार सुर्खियों में है। इसको लेकर मुस्लिम समाज में खासी नाराजगी देखी जा रही है।
मुस्लिम समाज के नाराजगी से कई राजनीतिक पार्टियों के अस्तित्व पर भी सवाल खड़ा हो रहा है।ऐसे में भारतीय जनता पार्टी ने वक्फ अमेंडमेंट बिल तो पास करा लिया। लेकिन इससे अपने सहयोगी पार्टी के चंद्रबाबू नायडू ,नीतीश कुमार ,चिराग पासवान ,शिंदे, अजीत पवार ,जयंत चौधरी की राजनीति भी खतरे में दिखाई पड़ रही है।
आपको बताते चलें कि ये सभी दल खुद को सेक्यूलर बताते आए हैं। और इन पार्टियों का अच्छा खासा मुस्लिम वोट बैंक पर प्रभाव भी था। इसी वोट बैंक को लेकर भाजपा से अच्छा खासा समझौता भी होता था। और मौजूदा राजनीतिक हालात में यह देखा भी जा सकता है। कि पद और कुर्सी के लिए देश में तमाम इन पार्टियों के द्वारा मोल भाव किया गया।
लेकिन वक्फ अमेंडमेंट बिल पास होते ही इन सेक्युलर दलों के मुस्लिम नेताओं ने इन पार्टियों के भारतीय जनता पार्टी के सपोर्ट से पास हुए वक्फ अमेंडमेंट बिल से नाराज़ होकर मुस्लिम नेताओं का इस्तीफा शुरू हो गया है ।और मुस्लिम संगठनों ने इन दलों का विरोध भी शुरू कर दिया है।
जिससे इनकी राजनीति खतरे में दिखाई पड़ रही है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है । कि आगामी चुनाव में बीजेपी यह कहकर इन दलों को कम से कम सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए मजबूर कर सकती है । कि अब तुम्हारे पास तो अपना कोई वोट बैंक बचा ही नहीं है । इस प्रकार भाजपा ने एक तीर से दो निशाना साधा है।
इसी को देखते हुए उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी हड़कंप मचा हुआ है। राजनीति में छोटे दलों जो अपने आप को सेक्यूलर राजनीति वाले बताते हैं। उनमें हड़कंप मचा हुआ हैं। समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता और उतरौला विधानसभा से समाजवादी पार्टी के पूर्व प्रत्याशी हसीब खान की छोटे दलों में काफी चर्चा हो रही है।
समाजवादी पार्टी के पूर्व प्रत्याशी हसीब खान से लगातार छोटे दल मीटिंग पर मीटिंग कर रहे हैं । अब सबसे अहम सवाल यह है। कि समाजवादी पार्टी व कांग्रेस पार्टी दोनों का ही कार्यालय लखनऊ में ही है। तो फिर ऐसे में छोटे दल हसीब खान के कार्यालय पर लगातार क्यों मीटिंग करते दिखाई पड़ रहे हैं।
तो हम आपको इसके पीछे की कहानी समझते हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी का कई दलों से गठबंधन था । जिसमें केशव देव मौर्य की महान दल, नंदलाल निषाद की जय हिंद समाज पार्टी, पल्लवी पटेल की अपना दल कमेरा वादी पार्टी, संजय चौहान की जनवादी पार्टी और बहुत से दल थे। इनमें सबसे कमजोर पार्टी संजय चौहान की जनवादी पार्टी थी।
जिसे पूर्वांचल के अलावा प्रदेश भर में कोई जानता तक नहीं था। लेकिन इस पार्टी को जैसे ही हसीब खान ने मदद करना शुरू किया। पूरे प्रदेश में पार्टी नजर आने लगी और हसीब खान ने इस पार्टी को इतना मजबूत कर दिया । कि बलरामपुर की उतरौला विधान सभा सीट,गोरखपुर की खड्डा सीट, बलिया की रसड़ा विधानसभा तीन सीट जनवादी पार्टी को मिला ।जबकि केशव देव मौर्य को मात्र एक सीट, पलवी पटेल को मात्र एक सीट ,जय हिंद समाज पार्टी को कोई सीट नहीं मिला।
यही सबसे बड़ा कारण है।कि छोटे दल हसीब खान के माध्यम से ही अपना गठबंधन चाहते हैं। की हसीब खान ज्यादा से ज्यादा सीटे दिला सकते हैं । इसी उम्मीद में हसीब खान से लगातार कई पार्टियों के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उनके नेता संपर्क में है। इसी कारण से दो-तीन दिनों से तमाम छोटे दल जैसे जनता उन्नति पार्टी, एकलव्य पार्टी, स्वतंत्र भारत पार्टी, पृथ्वीराज चौहान संगठन, जनता प्रगति पार्टी, विकास शील पार्टी, आदि तमाम छोटे दल हसीब खान के माध्यम से गठबंधन के लिए लगातार मिल रहे हैं।
सवाल यह है कि मौजूदा राजनीतिक हालात में कई छोटे दल है जो सरकार का एक अहम अंग है। ऐसे में बदलते राजनीतिक समीकरण में छोटे दल 2027 के आने वाले उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में निर्णायक भूमिका भी गठबंधन के लिए निभा सकते हैं। ऐसे में हसीब खान इन छोटे दलों को लेकर एक महत्वपूर्ण भूमिका में दिखाई पड़ रहे हैं। ऐसे में हसीब खान छोटे दलों को गठबंधन कराने में कितना कामयाब होते हैं। और आगामी 2027 की रणनीति में इन पार्टियों की भूमिका कितनी रहेगी। यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
बीजेपी ने जिस प्रकार से सहयोगी सेक्युलर दलों की राजनीति खत्म की है। बीजेपी से जुड़े कई छोटे दल भी हबीब खान के संपर्क में है। अब देखना यह होगा कि हसीब खान 2027 में कितने दलों का गठबंधन कराने में और कितनी सीटें दिलाने में सफल होते हैं। यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
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