Skip to content

निज़ाम अंसारी
सिद्धार्थनगर: जिले के बाँसी नगर पालिका क्षेत्र के मंगल बाजार में आज जो नज़ारा दिखा, उसने इंसाफ और प्रशासनिक कार्यशैली दोनों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। भारी पुलिस बल की मौजूदगी में तहसील और नगर पालिका प्रशासन ने अतिक्रमण हटाओ अभियान के नाम पर एक दर्जन से अधिक घरों और दुकानों को जमींदोज कर दिया।
प्रशासन का दावा है कि ये करोड़ों की ज़मीन रामलीला समिति की है, जिस पर कथित तौर पर अवैध कब्जा किया गया था। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि जब वहां रह रहे लोगों के पास दशकों पुराने कागजात, लगान रसीदें, यहाँ तक कि पक्की रजिस्ट्री तक मौजूद हैं, तो क्या ये कार्रवाई वाकई “न्यायिक” थी?
स्थानीय निवासियों का कहना है कि उनके पूर्वजों ने यह ज़मीन बाँसी के राजा से ली थी और वे चार पीढ़ियों से यहाँ रह रहे हैं। उनके पास न सिर्फ उस समय के वैध दस्तावेज़ हैं, बल्कि कुछ के पास तो बाकायदा रजिस्ट्री और बैनामा तक है। इसके बावजूद प्रशासन ने बिना किसी ठोस पैमाइश और बिना कानूनी सुनवाई के उनके घरों पर बुलडोजर चला दिया।
क्या अब दस्तावेज़ों की कोई अहमियत नहीं रह गई है?
क्या बुलडोजर की ताकत, कानून और इंसाफ दोनों से ऊपर हो गई है?
पीड़ितों का यह भी आरोप है कि प्रशासन ने मौके पर किसी भी प्रकार की निष्पक्ष पैमाइश नहीं कराई। अगर जमीन वाकई अतिक्रमण की थी, तो कम से कम एक निष्पक्ष सर्वे और नोटिस के बाद कार्रवाई होनी चाहिए थी। लेकिन यहाँ तो प्रशासन ने पहले गिराया, और सवालों पर चुप्पी साध ली।
जब मौके पर अधिकारियों से मीडिया ने बात करनी चाही, तो जवाब मिला –
“जो भी हो रहा है, न्यायपूर्ण तरीके से हो रहा है। आप अपने हिसाब से खबर चला सकते हैं।”
तो क्या अब प्रशासन खुद मीडिया को खुलकर यह कह रहा है कि उसे जवाबदेह नहीं बनाना, जो चाहे चलाओ?
बाँसी की यह कार्रवाई प्रशासनिक मनमानी का जीता-जागता उदाहरण बन गई है।
जब गरीबों के सिर से छत छीन ली जाती है, और उनके दस्तावेज़ों को अनदेखा कर दिया जाता है – तब इंसाफ कहाँ खड़ा होता है?
यह सवाल अब सिर्फ बाँसी के लोगों का नहीं है, बल्कि पूरे सिस्टम से है –
कहीं ऐसा तो नहीं कि ज़मीन की कीमत ने इंसाफ को खरीद लिया है?
error: Content is protected !!