पूरे जिले में शांतिपूर्ण तरीके से मनाया गया ईद उल अजहा का त्यौहार जनप्रतिनिधियों ने दी मुबारकबाद

इन्द्रेश तिवारी / विशाल दुबे

आज देश और दुनिया के साथ ईदुल अज़हा क़ुरबानी का त्योहार पूरे जिले में मनाया जा रहा है । जिले की संवेदांधीलता को देखते हुवे जिले के नवागत कप्तान अमित कुमार आनंद ने शोहरतगढ़ ,बढ़नी ,डुमरियागंज सहित अन्य कस्बे और प्रमुख चौराहों की जानकारी ली और  नगर में होने वाली सूचना पर निगाह रखी। शोहरतगढ़ कस्बे  में ईदगाह पर नमाज 7 बजे कारी राजिउल्लाह  ने और कस्बा स्थित जामा मस्जिद में 8 बजे कारी साहब के कयादत मैं  पढ़ाई गई। थानाक्षेत्र के तमाम गाओं और कस्बों में लोगों ने ईदुल अज़हा का त्योहार शांतिपूर्ण तरीके से मनाया। किसी तरह की अप्रिय घटना का समाचार नहीं हैं।

त्योहार को शकुशल सम्पन कराने के दौरान एस डी एम उत्कर्ष श्रीवास्तव ,सी ओ शोहरतगढ़ हरिश्चंद ,  , थानाध्यक्ष जय प्रकाश दुबे , एस आई रविकांत मणि त्रिपाठी सदर लेखपाल अनिरुद्ध चौधरी आदि उपस्थित रहे।

अपने आप में वृहद लोकतंत्र समाये हुवे इस्लाम धर्म में इस्लाम की पवित्र पुस्तक कुरान में बकरीद का स्पष्ट वर्णन मिलता है ऐसा बताया जाता है कि अल्लाह ने एक दिन हजरत इब्राहिम से सपने में उनकी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी मांगी. हजरत इब्राहिम अपने बेटे से बहुत प्यार करते थे, लिहाजा उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया|

अल्लाह का हुकुम मानते हुए हजरत इब्राहिम जैसे ही अपने बेटे की गर्दन पर वार करने गए, अल्लाह ने उसे बचाकर एक बकरे की कुर्बानी दिलवा दी. तभी से इस्लाम धर्म में बकरीद मनाने का प्रचलन शुरू हो गया.

ईद-उल-जुहा यानी बकरीद हजरत इब्राहिम की कुर्बानी की याद में ही मनाया जाता है. हजरत इब्राहिम अल्लाह के हुकुम पर अपनी वफादारी दिखाने के लिए बेटे इस्माइल की कुर्बानी देने को तैयार हुए थे.

बकरीद का पर्व इस्लाम के पांचवें सिद्धान्त हज को भी मान्यता देता है. बकरीद के दिन मुस्लिम बकरा, भेड़, ऊंट जैसे  जानवर की कुर्बानी देते हैं. बकरीद के दिन कुर्बानी के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है. एक खुद के लिए, दूसरा सगे-संबंधियों के लिए और तीसरा गरीबों के लिए.

इस पर्व पर इस्लाम धर्म के लोग साफ-पाक होकर नए कपड़े पहनकर नमाज पढ़ते हैं. नमाज पढ़ने के बाद कुर्बानी की प्रक्रिया शुरू होती है.

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