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कपिलवस्तुपोस्ट रिपोर्टर
सिद्धार्थनगर। सिद्धार्थ विश्वविद्यालय कपिलवस्तु के अंतरराष्ट्रीय बौद्ध केंद्र तथा लुंबिनी विश्वविद्यालय लुंबिनी नेपाल के संयुक्त तत्वाधान में भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद द्वारा अनुदानित भारतीय ज्ञान परंपरा में राहुल सांस्कृत्यायन का योगदान विषय पर आयोजित तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कोलकाता विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं कोलकाता विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग के आचार्य प्रो दिलीप कुमार मोहन्ता ने कहा कि राहुल सांकृत्यायन का साहित्य भारत की ज्ञान परंपरा और दर्शन की वास्तविक अभिव्यक्ति है।
उनका भाषा के प्रति व्यापक अनुराग उनके भारतीयता के प्रति अद्भुत प्रेम का परिचायक है। उन्होंने विश्व ज्ञान परंपरा में भारतीय ज्ञान परंपरा का स्थान और उसके योगदान को स्थापित करने में अनुकरणीय योगदान दिया है।
राहुल सांस्कृत्यायन और उनका साहित्य भारत के युवा पीढ़ी के लिए अमृत के समान है। भारत के भविष्य का निर्माण और उसकी उन्नति राहुल सांकृत्यायन के साहित्य और भारतीय ज्ञान परंपरा और बौद्ध दर्शन के बीच समन्वय का भी अद्भुत संग्रह है।
राहुल सांस्कृत्यायन ने बौद्ध धर्म दर्शन के माध्यम से भारतीय ज्ञान परम्परा को व्यापक रूप में अपनी पहचान विश्व पटल पर स्थापित किया है।
राहुल सांस्कृत्यायन ने भारतीय ज्ञान परंपरा को विस्तार और व्यापक स्वरूप प्रदान करने के लिए दुनिया के देशों की यात्राएं कर और भारतीय ज्ञान परंपरा से संबंधित साहित्य का संग्रहण कर भारत की ज्ञान परंपरा को एक नई ऊंचाई प्रदान करने में विशेष रूप से संपूर्ण एशिया में बहुत यगदं दिया। भारत की ज्ञान परंपरा और बौद्ध दर्शन पर शोध करने वाले अड्यताओ के लिए उनका साहित्य जीवन संचारिका के समान है। लेकिन यह भी सही है कि राहुल सांस्कृत्यायन के साहित्य को भारतीय ज्ञान परंपरा मैं अभी वह स्थान नहीं मिला है जिनका वास्तव में वह हकदार है। राहुल सांस्कृत्यायन अहिंसा के भी बड़े उद्घोषक के रूप में पूरी दुनिया में उनकी ख्याति है।
उन्होंने मानविकी के सभी क्षेत्रों में साहित्य रचना की है। राहुल भारत के सर्वाधिक प्रतिष्ठित महापुरुषों में से एक है। इसलिए उनकी ज्ञान की अभिव्यक्ति उनके साहित्य को वह स्थान अवश्य मिलना चाहिए जिससे भारतीय ज्ञान संस्कृति का परचम पूरे विश्व में नवस्थापित कर सकती है। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सिद्धार्थ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर हरि बहादुर श्रीवास्तव ने कहा कि राहुल सांस्कृत्यायन का साहित्य और उनका ज्ञान उस वट वृक्ष के समान है जो भारतीय ज्ञान परंपरा में शोध करने की इच्छा रखने वालों को व्यापक आयाम प्रदान करती है।
उनका साहित्य भारतीय संस्कृति बौद्ध दर्शन को पुनर्स्थापित करने का एक सशक्त माध्यम हो सकता है। राहुल सांकृत्यायन महामानव थे इस पृथ्वी पर एक बहुत बड़े शिक्षक भी थे इतने महान व्यक्तित्व पर निश्चित रूप से संगोष्ठी सेमिनार और शोध के बहुत अवसर होते हैं वास्तव में राहुल सांस्कृत्यायन भारत के उन सर्वाधिक महत्वपूर्ण साहित्यकारों में एक है जिन्होंने राष्ट्र और राष्ट्रीयता के प्रति एक अलग अलग जगाई थी।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र के पूर्व आचार्य प्रोफेसर हरिशंकर प्रसाद ने कहा की वास्तव में दर्शन अज्ञानता की समाप्ति का मार्ग निर्मित करती है बुद्ध ने इसी दर्शन के माध्यम से अज्ञानता के अंधकार को दूर करके संपूर्ण दुनिया के सामने प्रकाश स्तंभ के रूप में बौद्ध धर्म दर्शन को प्रस्तुत किया। महात्मा गौतम बुद्ध का दर्शन और भारतीय ज्ञान परंपरा दोनों के बीच बहुत साम्यता है। बुद्ध ने जिस प्रकार से दुख को कष्ट का एक बड़ा कारण माना और दुख के निवारण की बात भी सी दुनिया में रहते हुए करने का दर्शन दिया है।
वास्तव में भारतीय ज्ञान परंपरा मनुष्यता का परिचायक है और महात्मा बुद्ध का दर्शन भी महा मानवता का परिचायक है। इस दृष्टि से बौद्ध धर्म दर्शन को पुनर्स्थापित करते हुए राहुल सांकृत्यायन ने भारतीय ज्ञान संस्कृति को पूरी दुनिया में स्थापित किया है। राहुल संस्कृत का साहित्य भारतीय ज्ञान संस्कृति की अभिव्यक्ति तो है ही भारत की ज्ञान परंपरा का मूल मंत्र भी है ।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर मध्य प्रदेश के दर्शन शास्त्र विभाग के आचार्य प्रोफेसर अंबिकादत्त शर्मा ने कहा कि भारत की ज्ञान परंपरा दुनिया की सबसे प्राचीनतम एवं अद्यतनव्यापक ज्ञान परंपरा है भारतीय ज्ञान परंपरा की आत्मा बहुत ही मूल निवासी है राहुल संस्कृत आएं अपने साहित्य के माध्यम से भारत की ज्ञान परंपरा की आत्मा को पहचानने की व्यापक दृष्टि है भारत की ज्ञान परंपरा को आजाद करने के लिए राहुल संस्कृत में बहुत साधना किया विश्व ज्ञान परंपरा में भारतीय ज्ञान परंपरा का सर्वाधिक योगदान है राहुल संस्कृत में शताब्दी वर्ष पहले अपने दर्शन नामक पुस्तक में भारतीय ज्ञान परंपरा को वैश्विक पटल पर स्थापित करने का प्रयास किया है उनका व्यापक विस्तार उनके ग्रंथों में निरंतर दिखाई पड़ता है |
उपनिषद से बुध और अरस्तू तक ज्ञान परंपरा को संस्कृत साहित्य में स्थान दिया है दोनों के बीच अद्भुत संगम कर भारतीय ज्ञान परंपरा को विज्ञान में ने दिया है साहित्यकार नहीं दे सका है सभ्यता और ज्ञान परंपरा को देखते हैं तो निश्चित रूप से साहित्य जाता है जिसमें भारतीय ज्ञान परंपरा का रूप और दोनों का संबंध है आवश्यक है के साथ समन्वय स्थापित कर कार्यक्रम में सम्बोधित करते हुए नेपाल के लुंबिनी विश्वविद्यालय के कार्यवाहक कुलपति प्रोफेसर ने कहा कि राहुल संस्कृत और उनका साहित्य भारत नेपाल के बीच न केवल राजनयिक संबंध वरुण ज्ञान परंपरा और साहित्य का भी संबंध विकसित करने की एक महत्वपूर्ण कड़ी है |
राहुल संस्कृत ने नेपाल में लंबे समय तक प्रवास के दौरान महात्मा गौतम बुद्ध के जीवन से संबंधित अनेक पक्षों का उद्धरण अपने साहित्य में किया है। राहुल साहित्य में नेपाली समाज को समझने और भारतीय ज्ञान परंपरा और नेपाल के बौद्ध धर्म दर्शन के बीच समन्वय स्थापित करने तथा उसके माध्यम से बौद्ध धर्म दर्शन और भारतीय संस्कृति की व्यापक संरचना देखने को मिलती है। भारत नेपाल संबंध के विविध पक्षों के विस्तार के लिए राहुल सांकृत्यायन का साहित्य और भारतीय ज्ञान परंपरा में उनके योगदान विषय पर आयोजित संगोष्ठी निश्चित रूप से दोनों देशों के शोधार्थियों विद्यार्थियों और नागरिकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण साबित होगी।
कार्यक्रम में विषय प्रस्तावना रखते हुए संगोष्ठी के समन्वयक और अंतरराष्ट्रीय बौद्ध केंद्र के कार्यकारी अध्यक्ष प्रो सुशील तिवारी ने कहा कि राहुल के साहित्य में वसुदेव कुटुंबकम जैसी अनेक सदिच्छा की वाक्यों की रचना वास्तव में भारतीय जीवन पद्धति का मूल आधार है। उनके चिंतन में विद्या से विनय का प्रादुर्भाव सही अर्थों में मनुष्यता और उसके निर्माण का मूल आधार है। अगर कहा जाए कि राहुल सांकृत्यायन एशियाई नवजागरण के सूत्रधार एवं पुरोधा थे। इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है भारत की ज्ञान परंपरा में राहुल सांस्कृत्यायन का साहित्य उसको बहुत ही व्यापक स्वरूप प्रदान करता है।
विराट व्यक्तित्व और उनका मर्मस्पर्शी साहित्य भारतीय ज्ञान परंपरा को वैश्विक स्वरूप प्रदान करने में अद्भुत योगदान करता है। भारतीय ज्ञान परंपरा के अतीत के गर्भ में लुप्त ज्ञान भंडार को खोज निकालने का प्रयास किया। दासता से मुक्ति का रास्ता दिखाने में राहुल सांस्कृत्यायन के साहित्य का विशेष योगदान है। इससे पूर्व कार्यक्रम में स्वागत उद्बोधन अधिष्ठाता छात्र कल्याण प्रोफेसर हरीश कुमार शर्मा तथा आभार ज्ञापन प्रोफेसर सौरव ने किया। कार्यक्रम के सह समन्वयक डॉक्टर पूर्णेश नारायण सिंह ने अतिथियों का माल्यार्पण व स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर शिवम शुक्ला ने किया। इस अवसर पर डॉक्टर नीता यादव डॉक्टर सरिता सिंह, डॉ विनीता रावत, कुलसचिव डॉ अमरेंद्र कुमार सिंह, वित्त अधिकारी अजय सोनकर, सहायक कुल सचिव शेख अंजुम सहित शिक्षक एवं स्वार्थी तथा विभिन्न विश्वविद्यालय से आए हुए शोधार्थी और विषय विशेषज्ञ उपस्थित रहे।
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