उसका बाज़ार – शिव महापुराण में निकाली गई भगवान शिव की झांकी

devendra srivastav 

उसका बाजार सिद्धार्थनगर । प्राचीन शिव मंदिर रेहरा बाजार में हो रहे शिव महापुराण के चौथे दिन बड़े ही झूमझाम से निकाली गई भगवान शिव की झांकी इस कथा में शिव विवाह की चर्चा की गई इस महाशिव पुराण झांकी में सागर मोर नृत्य की टीम द्वारा बहुत अच्छा किरदार निभाया ।

कथा वाचक आचार्य ब्रह्मा नन्द जी ने भगवान शिव व माता पार्वती के विवाह की कथा सुनाई।उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति भगवान शिव व पार्वती जी के विवाह की कथा कहता है या श्रावण करता है उसका सर्वदा मंगल होता है। कथा में शिव पार्वती जी की भव्य झांकी ने सभी का मन मोह लिया।

कथा को आगे बढ़ाते हुए कथा वाचक ने कहा कि भगवान शिव का विवाह पर्वतराज हिमांचल व मैना की पुत्री पार्वती से हुआ था। विवाह में अद्भुत बरती गए थे। देव, गन्धर्व, नाग, पिशाच सभी बाराती बनकर गए थे।

भगवान शिवजी का भीषण रूप जब स्त्रियों ने देखा तो तमाम महिलायें भागने लगीं। मैना जी बेहोश हो गई। घर में जाकर अपनी पुत्री को गोद में लेकर निर्णय लिया कि कुछ भी हो परन्तु इस दूल्हे के साथ अपनी कन्या का कन्यादान कभी नहीं होने दूंगी। मेरी इतनी सुन्दर पुत्री का ऐसा दुल्हा! जो फल कल्पवृक्ष में लगना चाहिये वह क्या बबूल में लगेगा? मैना विधाता को दोष देने लगीं।

देवताओं ने शिवजी से कहा- ‘महाराज, आपके गले में सांप देख करके आपकी सास बेसुध हो गई हैं। कम से कम शादी पूरी होने तक तो इन्हें निकाल दो शिवजी ने कहा- मुझे महारानी पर दया आती है। मेरे गले में सर्प देख कर तो उसे खुश होना चाहिये। मैं काल को गले में लटका कर आया हूं।

अतः इनकी बेटी का सुहाग अखण्ड हो गया। मेरी सास को क्या ऐसा दामाद चाहिए जो उसकी बेटी के सुहाग का नाश करे? मेरे वेष में कोई परिवर्तन नहीं होगा।’ बाद में तो नारदजी और सप्तर्षि आते हैं। हिमाचल के भवन में जाकर मैना और हिमाचल को समझाते हैं, कि यह पार्वती आपकी पुत्री नहीं है, यह तो जगत की माता हैं और यह शिवजी तो अखण्डानन्द ब्रह्म हैं, जगत के पिता हैं। इतनी स्पष्टता के बाद हिमाचल और मैना की दृष्टि खुली। तब जाकर शिव पार्वती का विवाह संपन्न हुआ।

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